*"बड़े गुरु महाराज ने भी प्रेमियों की रक्षा के लिए उनके कर्मों को खुद भोगा...."*

*जयगुरुदेव*
*सन्देश / दिनांक 05.12.2021*

*सतसंग स्थल: छपिया, जिला गोरखपुर, उत्तरप्रदेश*
*सतसंग दिनांक: 05.दिसम्बर.2021*

*"वक्त का संकेत मिल रहा है कि अब काल का डंका बजने ही वाला है, बहुत मरेंगे....."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

वक़्त का संकेत की अब और भारी जन हानि होगी, इसको बताने वाले और इससे बचाने के लिए लोगों को अनमोल *नामदान* का दान देकर आधार बनाने वाले, इस समय के पूरे समरथ संत सतगुरु,
उज्जैन वाले पूज्य *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 05 दिसंबर 2021 को उत्तरप्रदेश में जिला गोरखपुर के छपिया कस्बे में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,

*"नामदान" क्या होता है?*
नाम का दान किया जाता है। कोई चीज के बदले में कोई चीज देनी होती है, जैसे सामान खरीदने पर रुपया देते हो लेकिन *नामदान* ऐसी चीज है इसके बदले में कोई कुछ दे ही नहीं सकता।
दुनिया की सारी दौलत दे दें तो भी इस नाम के बदले कुछ नहीं। यह विधान है कि जब *नामदान* दीक्षा मंत्र लो तो दीक्षा में कुछ दो। तो उसको भी संतों ने खत्म नहीं किया।
गुरु महाराज भी मर्यादा में थे। मैं भी मर्यादा का पालन करता हूं। दान जो दिया जाता है,*नाम बताया जाता है उसके बदले में जो दक्षिणा ली जाती है, वह महत्वपूर्ण होती है।*

*"दक्षिणा में जो आपके बड़े भारी बुरे कर्म हैं उन को योग अग्नि में जलाते हैं और कभी-कभी खुद भोगते हैं...."*
वह क्या है? यही जान-अनजान में आदमी जो कर्म कर बैठता है उसको दक्षिणा में लेते हैं। ये तो बात छोटी है।
आपने मुझसे कह दिया कि कर्म हम दे दिए लेकिन वह कर्म बहुत भारी पड़ता है। वह कर्म उसी तरह से जैसे दाल में हींग डाल दो, ऐसे ही समझो यह बुरे कर्म है, यह बड़े असरदार होते हैं।
ऐसे-ऐसे कर्म होते हैं जिससे आदमी परेशान हो जाता है, भोगना पड़ता है। लेकिन जो वक्त के सतगुरु होते हैं, दक्षिणा में ले लेते हैं।
*आदमी जब उनको दे देता है तब वो अपनी ज्ञान अग्नि के द्वारा जलाते हैं नहीं तो समय-समय पर भोग लिया करते हैं।*

*"बड़े गुरु महाराज ने भी प्रेमियों की रक्षा के लिए उनके कर्मों को खुद भोगा...."*
आपका यही गोरखपुर है। चालीस पैंतालीस साल पहले की बात है, गुरु महाराज ने कहा "बच्चों! मुझे बुखार तेज था तो हमने अपने बुखार से कहा कि थोड़ी देर रुक जा, मुझे प्रेमियों की सेवा कर लेने दे और बोले बच्चा! मुझे मालूम है कि ये बुखार आप लोगों के कर्मों का बुखार अभी चढ़ेगा।"
सतसंग के बाद गुरु महाराज जब मंच से उतर कर के आए, रजाई ओढ़ करके लेटे, जब उनका बदन छुआ गया जैसे आग जल रहा हो।

तो प्रेमियों! आप समझो कर्मों को दक्षिणा के रूप में लिया करते हैं। इसीलिए तो कहा गया है कि ये *नामदान* देना बड़ा कठिन काम है। मन नहीं कह रहा था *नामदान* देने के लिए, बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी लेकिन गुरु का आदेश हो गया।

*"अब मालूम पड़ रहा है कि महात्मागिरी कितनी कठिन है..."*
गुरु महाराज के पास जब पहुंचा था तो बहुत खुश रहता था, आगे-पीछे दौड़ता था, बड़ा सम्मान-इज्जत मिलती है।
कोई चीज की कमी नहीं है संतों के पास। और गुरु महाराज को जब देखता था तो सोचता था बहुत पावरफुल है। यह पावर अगर हमको मिल जाता तो कितना अच्छा होता।
लेकिन अब पता चल रहा है कि महात्मा गिरी क्या चीज होती है। *लेकिन अब गुरु का आदेश पालन ही गुरु भक्ति है।*

*"वक्त का संकेत मिल रहा है कि अब काल का डंका बजने ही वाला है, बहुत लोग मरेंगे..."*
मार पड़ने वाला है। बहुत से लोग मरेंगे। बचेंगे साध जन कोई जो सत से लौ लगाएगा, भजन करने लग जाएगा। *सत कौन है?* वह परमात्मा है। उससे जो लौ लगा लेगा, उससे जो प्रेम करने लग जाएगा वह बच जाएगा।

*"नामदान देकर आधार बनाया जा रहा है कि आने वाले बहुत बुरे समय में आपकी रक्षा हो जाये...."*
कबीर साहब ने कहा- "दो पाटों के बीच में साबुत बचा न कोई। चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय।।"
लेकिन उनके लड़के कमाल ने कहा- "चलती चक्की देख कर, हँसा कमाल ठठाय। कील सहारे जो रहे, सो साबुत बच जाए।।"
हाथ की चक्की में दो पाटे होते हैं तो पाटों में जो गेहूं जाते हैं, पिस जाते हैं। *लेकिन बचते कौन हैं?*
जो बीच में एक आधार होता है, चाहे लोहे का हो या चाहे लकड़ी का हो, उसके किनारे-किनारे जो गेहूं होते हैं, वह सब बच जाते हैं।

तो कील का सहारा देना जरूरी है जिससे लोगों की जान तो बच जाए। क्योंकि फिर यह मनुष्य शरीर जल्दी मिलने वाला नहीं है।
*नर्कों-चौरासी में कहां चले जाना पड़ेगा? आपको कुछ पता नही। इसलिए 'नामदान' आपको दान में दूंगा, 'नामदान' आपको बताऊंगा।*



Pujya sant umakantji maharaj


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