*"मनुष्य शरीर खाने पीने और मौज मस्ती के लिए नहीं बल्कि जीते जी प्रभु प्राप्ति के विशेष काम के लिए मिला है...."*

*जयगुरुदेव*
*सन्देश / दिनांक 07.12.2021*

*सतसंग स्थल: बरेली मोड, जिला शाहजहांपुर, उप्र.*
*सतसंग दिनांक: 02.दिसम्बर.2021*

*"मनुष्य शरीर खाने पीने और मौज मस्ती के लिए नहीं बल्कि जीते जी प्रभु प्राप्ति के विशेष काम के लिए मिला है...."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

दुनियां की दौलत कमाने के साथ-साथ आध्यात्मिक दौलत कमाने की भी प्रेरणा देने वाले, इसी मनुष्य शरीर में मौजूद वर्तमान समय के पूरे समरथ संत सतगुरु,
उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 02 दिसम्बर 2021 को उत्तरप्रदेश के जिला शाहजहांपुर के बरेली मोड स्थली में प्रेमी भक्तों को दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,

यह मनुष्य शरीर खाने पीने और मौज मस्ती के लिए नहीं मिला है। यह भजन, पूजन, इबादत के लिए मिला है। अपनी जीवात्मा का कल्याण करने के लिए उस प्रभु से आप ने मांगा है। आप याद करो जब मां के पेट में उल्टा लटके थे जब,
*उल्टा जीव रहा लटकाना। दादुर पक्षी के समाना।।*
तब उस प्रभु से वादा किया था कि सतगुरु की खोज कर के, उनसे रास्ता ले कर के अपने घर चले जाएंगे। क्योंकि मां के पेट में बच्चे को यह मालूम रहता है कि *वह मालिक संत रूप में हमेशा इस धरती पर रहते हैं।*

*"देखो! यह मनुष्य शरीर जो आपको मिला है, यह जल्दी मिलने वाला नहीं है...."*
कोटि जनम जब भटका खाया। तब यह नर तन दुर्लभ पाया।।
बहुत दिनों तक इधर-उधर भटकते रहे। देखो! इस शरीर के अंदर जो जीवात्मा है, वो परमात्मा की अंश है, बहुत छोटी है।
जब जीवात्मा इस मनुष्य शरीर को छोड़ती है तब कीड़ा, मकोड़ा, गोजर, सांप, बिच्छू आदि के शरीर में आत्मा सजा भोगने के लिए डाल दी जाती है।
जान बचाते हुए इधर-उधर भटकते रहते हैं तो आप यह समझो कि उन्हीं योनियों में भटकना पड़ता है।

*"आपका घर सतलोक है, वहां से आए हुए बहुत दिन हो गए, वहां चलो, वहां सुख ही सुख है...."*
आप जितने भी लोग हो पहले के समय में किसी न किसी योनि में, कहीं न कहीं रहे हो। चाहे स्वर्ग बैकुंठ में ही रहे हो।
क्योंकि स्वर्ग और बैकुंठ की आत्माओं को भी... *पुण्य क्षीणे मृत्यु लोके* मृत्युलोक में आना पड़ता है। जहां भी रहे होंगे, वहीं तकलीफ में रहे होंगे, सतलोक में कोई गंदगी नहीं, कोई दु:ख नहीं, कोई रोना धोना भी नहीं है।
वहां सुख ही सुख है। वहां ईर्ष्या द्वेष, वैमनस्यता, जातिवाद, भाई-भतीजा वाद, भाषावाद, कुछ झंझट नहीं है। बहुत आराम से रहने, खाने, घूमने, आराम करने का खूब बढ़िया साधन है।

*"ये मिट्टी-पत्थर का घर आपका नहीं है। अपना अपना कहते पूर्वज चले गए... उनका नहीं हुआ तो आपका कैसे होगा?*
लेकिन उनको ज्ञान है इस बात का कि हम यहां भेज दिए गए हैं, यह हमारी जगह, घर नहीं है। उनको अपने घर की याद है और आप अपने घर को भूल गए हो।
*कौन से घर?*
यह मिट्टी और पत्थर का घर यह आपका नहीं है। इसी को बाप-दादा यह घर मेरा, यह घर मेरा कहते चले गए।
तो देवताओं को अपने घर जाने की याद, फिक्र और चिंता है, कोशिश भी करते हैं लेकिन वह जा नहीं सकते हैं। वह रास्ता उनके अंदर नहीं है।

आपका यह शरीर पांच तत्वों का है। उनका सत्रह तत्वों का है। लेकिन सत्रह तत्वों के लिंग शरीर में ऐसा कोई रास्ता नहीं है, जिससे वह प्रभु के पास जा सके लेकिन आप जा सकते हो।
साधना का घर, पूजा का मंदिर इसे बताया गया है। साधना का धाम, पूजा का मंदिर, मुक्ति का द्वार, मोक्ष का दरवाजा इसी मनुष्य शरीर में है। लेकिन आपको इस बात का ज्ञान कराने वाला कोई नहीं मिला।
*मां के पेट में जो प्रभु से वादा किया था, वो याद करो कि सतगुरु की खोज करके 'नामदान' लेकर साधना कर अपने घर चले जाएंगे।*

*अगर आप सुनोगे और सुन कर चले जाओगे, बात को याद नहीं रखोगे तो उसी माया और काल के जाल में फंसे रह जाओगे।*

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