*"श्रद्धा भाव भक्ति के अनुसार ही विश्वास के हिसाब से फल मिल जाता है..."*

*जयगुरुदेव*
*सन्देश / दिनांक 23.12.2021*

*सतसंग स्थलः रजौला, चित्रकूट, जिला सतना, मध्यप्रदेश*
*सतसंग दिनांक: 21.दिसम्बर.2021*

*"जैसे दूध में घी है लेकिन दिखता नहीं है, ऐसे ही मनुष्य शरीर में भगवान है।*
*जब युक्ति बताने वाले गुरु मिल जाएंगे तो आपको उनका दर्शन हो सकता है..."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

विश्व विख्यात परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, वर्तमान के मौजूदा संत सतगुरु परम पूज्य *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 21 दिसंबर 2021 को चित्रकूट, जिला सतना, मध्यप्रदेश में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,

आप रामचरित मानस पढ़ते हो लेकिन उसको अमल नहीं करते हो। जैसे उसमें राम ने काम किया बताया है वैसे काम जब करोगे तब तो उसका फल मिलेगा। भाई, भाई के लिए जंगल चला गया था और आज भाई, भाई के खून का प्यासा हो रहा है।

राम पिता के आदेश पर राजगद्दी पर ठोकर मार कर जंगल चले गए थे। अब जो यह फटा पैंट पहनने वाले लड़के हैं यह तो पिता को घर से बाहर निकाल दे रहे हैं तो कहां से राम राज्य आएगा? राम के राज्य का कैसे सुख मिलेगा?
इसलिए इसको पढ़ो और वैसा आचरण करो और अर्थ न समझ में आए तो उतनी योग्यता वाले संत के पास चले जाओ जितनी गोस्वामी जी महाराज में थी। उन्होंने जो लिखा था वह आपको अर्थ समझा देंगे।

*"इस शरीर को जब शुद्ध रखोगे कोई गंदी चीज इसके अंदर नहीं डालोगे तो अच्छे-बुरे का ज्ञान हो जाएगा..."*
जब इस शरीर को शुद्ध रखोगे, इसके अंदर कोई गंदी चीज नहीं डालोगे और अच्छे-बुरे का ज्ञान जब आपको हो जाएगा, अच्छा कर्म करोगे तब दिल-दिमाग, बुद्धि सही रहेगी।
तब आप किसी भी देवी-देवता का पूजा-पाठ करोगे तो आपके लिए फायदे मंद होगा वरना आपका जीवन का समय बेकार चला जाएगा। 

*"श्रद्धा भाव भक्ति के अनुसार ही विश्वास के हिसाब से फल मिल जाता है..."*
फायदा तो आदमी को कुछ न कुछ मिलता है। कोई न कोई, कहीं न कहीं से जुड़ा हुआ होता है। जहां जैसा माहौल, बताने वाले होते हैं वैसा उन्हीं पर आदमी को विश्वास हो जाता है।
किसी ने बता दिया पेड़, पौधे, पत्थर, किताब, नदी, तालाब में भगवान है तो आदमी को वैसा विश्वास हो जाता है। और *विश्वास फलदायकम।*
जितना विश्वास होता है उसी हिसाब से कुछ न कुछ फल मिलता है। लेकिन ये स्थाई फल नहीं होता है। इसीलिए झकोले खाते रहते हैं। फायदा थोड़ा सा हुआ फिर वैसे हो गए, फिर कर्म खराब हो गए।

*"शरीर को तो बाहर से साफ कर लेते हो तो लेकिन अंतःकरण गंदा है,*
*उसको धुलाने के लिए वक्त के समरथ गुरु के पास जाना ही पड़ेगा..."*
अंदर अगर मैल रहेगी तो आप देवताओं का दर्शन न कर पाओगे और न अपने घर की जानकारी कर पाओगे।
जब अंदर में मैल को धोने वाले समरथ गुरु मिल जाएंगे, आपकी मदद कर देंगे तो इसी मनुष्य शरीर में ही प्रभु का दर्शन आपको हो जाएगा। फिर तो कहीं जाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।
कबीर साहब ने कहा है,

*ज्यों तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा साईं तुझमें, जान सके तो जान।।*
जैसे चकमक में आग, अलसी के तिल में बहुत तेल होता है लेकिन दिखता नहीं है। लेकिन है, ऐसे ही प्रभु अंदर में है। लेकिन कैसे दिखेगा? कैसे मिलेगा?

उसके लिए आपको युक्ति करनी पड़ेगी। युक्ति से मुक्ति मिलती है। दूध में से घी युक्ति से ही निकलता है। ऐसे ही युक्ति बताने वाले गुरु जब आपको मिल जाएंगे तो बता देंगे।
देवी देवताओं का दर्शन जिसको भी आज तक हुआ, इसी मानव शरीर में हुआ है। वह अनहद वाणी, वेद वाणी, आकाश वाणी जो हमेशा हो रही है।

जो सिखाये उसको गुरु कहते हैं। दुनियावी ज्ञान या विद्या या कोई फायदे की चीज बता दे तो उसको भी गुरु मान लेता है।
*सातवें शब्दभेदी गुरु को ढूंढ कर अपनी आत्मा का कल्याण करा लो नहीं तो बार-बार चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा।*



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