*अवतारी शक्तियां तो शुभ-अशुभ कर्म फल देती हैं।*

*जयगुरुदेव*
*सन्देश / दिनांक 13.10.2021*

*सतसंग स्थल: देवरिया, उत्तरप्रदेश*
*सतसंग दिनांक: 10.दिसम्बर.2021*

*"भागवत गीता के चौथे स्कंद के चौंतीसवें श्लोक में लिखा है कि,*
*समरथ गुरु को खोजो, उनके बिना तुम ऊपर नहीं जा सकते, दिव्य दृष्टि नहीं खुल सकती..."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

इस समय के पूरे महापुरुष, मनुष्य शरीर में मौजूद त्रिकालदर्शी समरथ संत सतगुरु, उज्जैन वाले पूज्य *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 10 दिसम्बर 2021 को जिला देवरिया, उत्तरप्रदेश में सतसंग वचनों की बरसात करते हुए बताया कि,
राम कृष्ण की कथा चरित्र पढ़ने के साथ-साथ उनका अनुकरण भी करना चाहिए। इसीलिए इतिहास बनता है कि उसे पढ़ो और उसके अनुसार चलो। 

*"केवल संतों को माफी का अधिकार होता है,*
*अवतारी शक्तियां तो शुभ-अशुभ कर्म फल देती हैं।*
संतों में केवल दयाल अंग होता है लेकिन अवतारी शक्ति में दयाल और काल अंग दोनों होते हैं।
राम ने दया करके पत्थर को नारी बना दिया और जब युद्ध करने को हुआ तो धनुष उठा कर विनाश किया। इन्होंने भी बहुत समझाया लेकिन कौरवों द्वारा नहीं समझने पर सुदर्शन चलाया।

उस चक्र को या तो बर्बरीक देखे थे या अर्जुन देखे थे। जब अर्जुन लड़ने से मना किये तो बोले; इतने दिन साथ रहे लेकिन अभी तक हमको पहचाना नहीं?
बैठो! ध्यान लगाओ, महाभारत दिखाता हूं जब ध्यान में कुछ नहीं दिखा तो दोनों आंखों के बीच जहां तीसरा नेत्र, दिव्य चक्षु है, वहां पर ठोका और कर्मों के पर्दे को अपनी ताकत से हटाया।

शिव नेत्र पर मनुष्य के कर्म चोरी, व्यभिचार, हत्या, लूटपाट, झूठ, मारकाट ये कर्म जमा हो जाते हैं। जब अर्जुन को दिखाया कि सब मरे पड़े हैं, महाभारत तो पहले ही हो गया तब गांडीव उठाया।
युद्ध के बाद अहंकार में पांडव बोले; मैने मारा, मैंने मारा तो कृष्ण बोले; जिसने पूरे युद्ध को देखा वो बताएगा।
बर्बरीक के सिर के पास गए तो बोला कि केवल चक्र सुदर्शन चल रहा था और बाकी सब मुंह फैलाये खड़े थे, किसी का हाथ-पांव भी नहीं हिल रहा था।

बोला अब जाने दो तो कृष्ण बोले; मेरा भी समय पूरा हो गया, मैं भी जाऊंगा। तब पांडव बोले हमें भी लेते चलिए।
स्पष्ट मना किया की जीवों को पार करने का काम केवल संतों का होता है। इसलिए कृष्ण ने भी गुरु बनाया। बाहरी विद्या के गुरु संदीपनी और आध्यात्मिक गुरु सुपच को बनाया।
कृष्ण मार नहीं सकते थे कौरवों को। उस समय जो सुपच संत थे, उनसे प्रार्थना किया कि आप अपनी दया की धार को समेटो नहीं तो पापियों का खात्मा नही हो पाएगा।
*वक़्त के संत अपनी दया की धार को मनुष्यों की रक्षा के लिए फैलाए रहते हैं।*

*कृष्ण भगवान के साथ रहने वाले पांडवों को नर्क चौरासी में जाना पड़ा..."*
कृष्ण भगवान जब जाने लगे थे तो पांडव बोले; हमको अपने धाम साथ ले चलो। तब कृष्ण ने कहा; तुम त्रिकाल दर्शी संत की खोज करो, उनसे रास्ता लेकर योग करोगे तब ही तुम मेरे धाम, अपने धाम पहुंच सकते हो।
चौबीसों घंटा साथ रहने वाले पांडवों को नर्कों में जाना पड़ा। तो आप यह सोचते हैं कि इनकी हम पूजा कर लेंगे, जिनको देखा भी नहीं आदमी ने और मूर्ति बना कर स्थापित करके मान्यता दे दिया तो आप कैसे पार हो पाएंगे?

*"स्वयं कृष्ण ने गीता में कहा है कि समर्थ गुरु को खोजो, वो ही मुक्ति मोक्ष दे सकते हैं..."*
आपको अगर विश्वास न हो तो यदि संस्कृत के जानकार हो तो गीता के चौथे स्कंद के चौंतीसवें श्लोक में यही लिखा हुआ है।
कृष्ण ने कहा था कि समरथ गुरु के बगैर ऊपर नहीं जा सकते हो, यही रह जाओगे, तुम्हारी दिव्य दृष्टि नहीं खुल सकती है।
*धार्मिक ग्रंथ जब इनको समझने की कोशिश करोगे तब तो आपका काम बनेगा नहीं तो नर्क और चौरासी में चक्कर लगाते रह जाओगे।*

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