बाबा जी की वाणी
परमात्मा इस पिण्ड लोक में इस धरती पर नहीं आता है। वह आज तक कभी नही आया और आगे भी वह कभी नही आयेगा। इस पूरे दुनिया में मनुष्य द्वारा बनाया गया परमात्मा का कोई भी स्थान, पूजाघर, मन्दिर, मस्जिद गिरिजाघर, गुरु द्वारा आदि नहीं है। जितने भी पूजा प्रार्थना आदि करने के इस संसार में स्थान दिखाई देते हैं, बनाये गये हैं उनमें किसी में भी परमात्मा की पूजा नहीं होती है।
इस धरती पर परमात्मा का मन्दिर पूजा घर जो है वह परमात्मा द्वारा ही बनाया गया है और वह मनुष्य शरीर है। मनुष्य शरीर ही एक ऐसा मन्दिर है जिसमें परमात्मा की पूजा की जा सकती है। मनुष्य शरीर के अन्दर ही वह मिलता है और कहीं नही मिलता । वह इस मनुष्य मन्दिर में अखण्ड रूप से बोलता है इसी शरीर मेंचौबीसो घण्टे उसकी आरती होती है। घण्टे घड़ियाल बाजे गाजे ढोल मृदंग किंगरी सारंगी बांसुरी बंशी बीन बजते हैं, कभी बन्द नहीं होता है। वक्त के सन्त सतगुरु की मदद से कोई भी मनुष्य अपने शरीर में परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। बाहर परमात्मा कहीं नहीं मिलता।
22. मन को मारना
मन को मारने के लिये अर्थात मन को जीतने के लिये पिछले युगों मे ऋषि मुनि महर्षि योगी आदि महात्माओं ने अनेक तरह के उपाय निकाले, युक्तियां कीं, कठिन से कठिन साधनाओं को किया, हजारों वर्ष तपस्या में गुजार दिया लेकिन वे मन को वश में नहीं कर सके। जिन ऋषियों ने मन को थोड़ा यातना देकर सुस्त बनाया वह अवसर पाते ही भड़क उठा। मन सदैव इन्द्रियों के दरवाजों पर बैठ कर काम क्रोध लोभ मोह अहंकार के भोग में तपस्या को भंग करके गिर गये।
मन को वष में करने का केवल एक ही उपाय है। वह यह है कि मन पिण्ड लोक और अण्ड लोक के परे ईश्वर लोक के भी परे ब्रह्म लोक का निवासी है, मन का वह त्रिकुटी ब्रह्मलोक निज घर है। वह ब्रह्म का ताकत रखता है, मामूली शक्ति वाला नहीं है। उसे जब उसके घर त्रिकुटी में शब्द के रास्ते से पहुंचा दिया जाता है तो उसके निज घर के आनन्द को पाकर बिल्कुल शांत हो जाता है और साधक के पूरी तरह वश में हो जाता है, वह मर जाता है। यह रास्ता केवल सच्चे सतलोक के रसाई वाले संतो के पास है उनके कृपा से उनकी युक्ति से मन को त्रिकुटी पद में पंहुचा दो तो मन को पूरी तरह से जीत लोगे। दूसरा उपाय नही है।
23. शंका
यहां आओ तो अपने बुद्धि को अपने घर में ताखे पर रख करके आओ,और यहां जो दिया जा रहा है उसे ले लो। कोई शंका मत करो, सच्चा रास्ता है, पूरा रास्ता है, ले लोगे इसके रास्ते पर चलोगे तो तुम्हारी मंजिल मिल जायेगी, सच्चा आनंद और प्रेम मिल जायेगा। जिसकी खोज में चाह में दिन रात तुम दुनियावी सामान ओर रिश्तों में लगे रहते हो परंतु वह मिलता नहीं। क्योंकि प्रेम, वह आंनद इनमें नहीं है। सच्चा आनंद, सच्चा प्रेम नाम में हैं, शब्द में है। जो परमात्मा के मुखारबिन्द से अनवरत निकलता रहता है और इस मनुष्य शरीर में तुम्हारे कानों में दिन रात प्रति क्षण सुनाई देता है किन्तु तुम्हारा ध्यान उधर नही है।
परमात्मा के पाने का रास्ता एक और केवल एक ही है, दो या अनेक रास्ते नहीं हैं। जिस रास्ते से तुम्हें तुम्हारे निजदेश परमात्मा के लोक से यहां उतारा गया है उसी रास्ते से तुम नीचे से ऊपर पंहुच जाओगे। वह रास्ता शब्द का है, नाम का है। शब्द की डोरी परमात्मा से तुम्हारे शरीर के भीतर बैठी आत्मा तक एक तार लगी हुई है। सन्त इसकी युक्ति जानते हैं जब प्रभु की कृपा होती है तो तुम्हारे बीच मनुष्य शरीर में सन्त आते हैं और तुमसे प्रेम करते हैं और तुम्हें अमोलक नामदान देकर तुमको उस शब्द की सीढ़ी पर बैठा देते हैं रास्ता बता देते हैं युक्ति सिखा देते हैं उस शब्द की डोरी पर चढ़कर सीढी दर सीढी तुम जीते जी परमात्मा के लोक में जहां से शब्द आता है तुम पहुंच जाते हो जो तुम्हारा निज देश है फिर जन्म मरण का चक्कर हमेशा के लिये समाप्त हो जाता है। तुम्हारी मुक्ति हो जाती है। इसके अलावा संसार में जितने भीरास्ते पाये जाते हैं, बताये जाते हैं , वे सब के सब काल के जाल में हैं, भ्रम हैं, असत्य हैं।
25. पूजा स्थल
इस धरती पर मनुष्य ने जितने भी मन्दिर बनाये हैं, मूर्तियां बनाई हैं, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा पूजाघर बनाये हैं वे सभी उनके हैं जो इस धरती पर आये हैं, जो धरती पर पैदा हुए हैं, और उनकी मृत्यु हो चुकी है। जिस जिस स्थान पर वे आये, रहे, घूमे-फिरे जन्में या मरे वे ही स्थान उनके पूजा के स्थान हो गये, तीर्थ कहे गये। उनसे सम्बन्धित जो भी दिन रहे वे दिन उनसे संबन्धित व्रत के दिन बना दिये गये। जो यहां नहीं आये हैं उनका कोई स्थान या नामोनिशान नहीं है। पूजन के इन स्थानों में उनकी पूजा अर्चना अनेक विधि विधान से की जाती है. जिस देवी देवता महापुरुष अवतार पैगम्बर का स्थान बनाया गया होता हे। और जो यहां पैदा हुए उसके बाद ही उनका नामेंनिशान, स्थान, बना उसके पहले उनका कोई स्थान नहीं बनाया गया है।
26. शब्द
इस दुनिया में पूजा पाठ में जितने पदार्थ परमात्मा को अर्पित करते है।, वह कोई भी परमात्मा के देश में नहीं पहुंचता । इस मृत्यु लोक के सभी सामान यहीं रह जाते हैं। यहां तक कि यह शरीर भी नहीं जाता, मरने वाले के साथ में, यहीं रह जाता है।
परमात्मा का लोक अविनाशी है। परमात्मा के शब्द धार से ही पार ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड, अण्ड और पिण्ड लोक बने हैं तथा सभी के सभी लोक उसी धार पर टिके हुए हैं, तथा परमात्मा अपने शब्द धार के द्वारा ही इन सभी लाको के धनियों यानी ब्रह्मों में शक्तियों देवी देवताओं में और समस्त सुरतों में व्याप्त है। कोई भी आत्मा परमात्मा के शब्द से खाली नहीं है। और समस्त लोकों के कण कण में उसी का धार समाया हुया है। चर-अचर सबका आधार शब्द ही है, नाम ही है।
इसलिये शब्द ही मूल है। केवल शब्द ही ऊपर से नीचे तक और नीचे से ऊपर तक आता और जाता है। शब्द के अलावा किसी भी लोक का कोई भी चीज परमात्मा के अमर सच्चखण्ड में नहीं जाता है। अतएव शब्द स्वरूपी परमात्मा की पूजा अनश्वर शब्द से ही करना चाहिये, मनुष्य शरीर रूपी मन्दिर में बैठकर।
27.विनाशी अविनाशी
परमात्मा के देश यानी अनामी धाम, अगम लोक, अलख लोक, और सतलोक यानी इस दयाल देश के अलावा इनके नीचे के जितने भी लोक चाहे महाकाल पुरुष, महासुन्न का मण्डल हो, पारब्रह्माण्ड को लोक हो, ब्रह्माण्ड में ब्रह्म या ईश्वर के लोक हों, चाहे शक्ति लोक, बैकुण्ड और स्वर्गके अण्ड लोक हों, अथवा यह पिण्ड लोक यानी मृत्युलोक हो, सभी के सभी देर या सवेर नश्वर हैं.व सिमटाव के अन्दर आने वाले हैं इसलिये मनुष्य को इन किसी भी लोक का या इन लोकों के अधिष्ठाता काआशा नही बांधना चाहिाये। अपितु मनुष्य कोहमेशा परमात्मा को और परमात्मा का लोक सच्चखण्ड दयाल देश का ही आशा बांधना चाहिये क्योंकि वहीं इस जीवात्मा का निज घर है, वहीं से इसको धीरे धीरे इस मृत्युलोक में उतारा गया है। और जब तक यह आत्मा अपने धाम सच्चखण्ड में नही पहुंचती उसको किसी भी अन्य लोक में पहुंच कर उसका निज आनन्द और परम चैन नही मिल सकता।
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