जयगुरुदेव प्रार्थना 177.
*Tere nam ka sumiran karke*
●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●
तेरे नाम का सुमिरन करके, मेरे मन में सुख भर आया।
तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया।।
दुनिया की ठोकर खाकर, जब मिला न कहीं सहारा।
ना पाकर अपना कोई तब मैंने तुम्हें पुकारा।।
हे नाथ मेरे सिर ऊपर तूने अमृत रस बरसाया।।
तेरी दया को मैंने पाया, तेरी कृपा को मैंने पाया।।
भवसागर की लहरों में जब अटकी मेरी नैया।
तट छूना भी मुश्किल था नही दिखे कोई खिवैया।
तू केवट बनकर स्वामी, मेरी नांव किनारे लाया।।।
तेरी दया को मैंने पाया, तेरी कृपा को मैंने पाया।।
तू संग में था नित मेरे ये नयन देख न पाए।
चंचल माया के रंग में ये नयन रहे उलझाए।
कितनी ही बार गिरी हूं तूने पग पग मुझे संभाला।
तेरी दया को मैंने पाया, तेरी कृपा को मैंने पाया।।
हर तरफ तुम्हीं हो मेरे, हर तरफ तेरा उजियारा,
निरलेप गुरुजी मेरे, हर रूप तुम्हीं ने धारा।
गुरुदेव दया के दाता, मैं शरण तुम्हारी आया,
तेरी दया को मैने पाया, तेरी कृपा को मैने पाया।।
जयगुरुदेव प्रार्थना 178.
*He mere gurudev ab sudh lijiye*
●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●
हे मेरे गुरुदेव अब सुध लीजिए,
प्यारे जयगुरुदेव अब सुध लीजिए।
दासी अपनी पर कृपा अब कीजिए।
पार होने को सहारा दीजिए।
प्यारे जयगुरुदेव अब सुध लीजिए।।
बेरहम दुनिया सताती है मुझे,
इस मुसीबत से बचा अब लीजिए।
प्यारे जयगुरुदेव अब सुध लीजिए।।
आप के बिन कोई हमारा है नही,
तेरे बिन कोई भी मेरा है नही।
अपने चरणों में जगह अब दीजिए।
प्यारे जयगुरुदेव अब सुध लीजिए।।
हर समय प्रभु आपका दर्शन मिले,
हर समय गुरु आपका दर्शन मिले।
ये विनय अब मेरी भी सुन लीजिए।
दासी अपनी पर कृपा अब कीजिए।।
जयगुरुदेव प्रार्थना 179.
*Satguru par Lagao meri naiya*
●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●
सतगुरु पार लगाओ मोरी नैया.....
सतगुरु पार लगाओ मोरी नैया, मैं तो बहि मझधार,
लगाओ मोरी नैया सतगुरु पार |
जित जाऊ उत काल सतावे, भरम रही हर बार,
लगाओ मोरी नैया सतगुरु पार |
मैं अनजानी तुम सब जानो, गुरु मेरे अगम अपार,
लगाओ मोरी नैया सतगुरु पार |
मैं दुखयारी तड़प रही हूँ, आई हूँ तेरे दरबार,
लगाओ मोरी नैया सतगुरु पार |
समरथ जान सरन में आई, ऐ मेरे सरकार,
लगाओ मोरी नैया सतगुरु पार |
मुझ अबला की लाज बचाओ, समरथ दीन दयाल,
लगाओ मोरी नैया सतगुरु पार |
जयगुरुदेव दया के सागर,अब सुन लो मोरी पुकार,
लगाओ मोरी नैया सतगुरु पार |
जय गुरु देव.....
जयगुरुदेव प्रार्थना 180.
*Sab Rajan k raj*
●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●
सब राजन के राज, गुरु महाराज, बड़े उपकारी।
मैं बार बार बलिहारी।।
जिस ओर को गुरुवर जाते हैं,
कलयुग में सतयुग लाते हैं।
जयगुरुदेव जहां से जाते हैं, कलयुग में सतयुग लाते हैं।
दर्शन को आते दौड़ दौड़ नर नारी।
मैं बार बार बलिहारी।।
घर घर में धरम फैलाया है,
प्राणियों को प्रेम सिखाया है।
नही तो चलती खट पट की तेज कटारी।
मैं बार बार बलिहारी।।
लाखों में एकही साधु हैं, बोली पर चलता जादू है।
वाणी है आपकी अमृत से भी प्यारी।
मैं बार बार बलिहारी।।
इस भारत भूमी पर जनम लिया,
निज भक्तों का कल्याण किया।
अभिनन्दन होवे जयगुरुदेव तुम्हारी।
मैं बार बार बलिहारी।
जयगुरुदेव प्रार्थना 181.
*Kavan kasur hamse*
●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●
कवन कसूर हमसे होई गई नजरिया से छुप गया है स्वामी।
अंखियां से देख स्वामी दुखड़ा सुनाऊं तेऊ,
दुखड़ा सुनाऊं दिल घाव दिखाऊं तेव।
अब तो सारा जग लागे अंधियार, नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
कवन कसूर हमसे होई गई नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
काम क्रोध मद लोभ सतावें,
इह लगावें चुनरिया में दाग,
नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
सतसंग सुनाऊं अमृत जल बरसावा,
मोरी धोवा चुनरिया के दाग नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
कवन कसूर हमसे...
सुमिरन करूं तो स्वामी कुंजी लगावा,
सुमिरन पे बैठूं स्वामी कुंजी लगावा।
मोरी खोल दो सूरतिया के लाक नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
कवन कसूर हमसे...
भजन पे बैठूं स्वामी घंटा सुनावा,
भजन पे बैठूं घंटा शंख सुनावा।
मोरी खोल वा बजरिया किबाड़ नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
मोरी तोड़ दे बजरिया किबाड़ नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
कवन कसूर हमसे...
ध्यान पे बैठूं स्वामी दर्शन दे दो,
मोरी सुरत का होता उद्धार नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
पिता कहे बेटी ससुर कहे बहुआ,
पिया कहे यह धन हमारी बिहौआ।
अस बन्धन से लेऊ छुड़ाए नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
कवन कसूर हमसे होई गई नजरिया से छुप गया है स्वामी।।
jaigurudev
visit more prarthna-
शेष क्रमशः पोस्ट न. 31 में पढ़ें 👇🏽
पिछली पोस्ट न. 29 की लिंक...
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev