बाबा जयगुरुदेव की वाणी

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश 

16- रिश्ता 

इस दुनिया में तुम्हारे जितने भी रिश्ते हैं घर परिवार कुटुम्ब आदि समाज,देश किसी का कोई हो उसका रिश्ता तुमसे कच्चे धागे के समान है वह अवश्य टूट जाता है। इसलिये इसके लिये रोना धोना, मोह में अपना जीवन का समय बर्बाद करना तुम्हारे लिये ठीक नहीं। 
इस दुनिया में पैदा होने से लेकर मरने के पहले तक जितने भी रिश्ते हैं सभी का संग साथ स्वार्थ का भी, जन जन्मांतरों के कर्मों के हिसाब से लेन देन का है। इसलिये सबके सब अपना जो कर्तव्य है उसको कर दो । बाकि अपने अनमोल श्वांसों को अपने काम में ही लगाओ। केवल वक्त गुरु सच्चे संत का ही यदि साथ हो जाय तो वह बिना किसी स्वार्थ का होता है। 

वे मनुष्य शरीर में तुम्हारे लिये तुम्हारे निज धाम सतलोक से यहां उतरते हैं । तुम्हारे ऊपर कृपा करके तुमको पकड़ते हैं। तुम्हें मनाकर प्रभु का नाम देते हैं। और शब्द की डोर तुम पर बैठा कर तुम्हारी आत्मा को अपना बल देकर मदद करके निज धाम में पंहुचाते हैै। मनुष्य देह तो कच्चा धागा ही है। लेकिन वे जीते जी तुम्हारे साथ रहते हैें। और शरीर छोड़ने के बाद भी सदा सदा के लिये तुम्हारे साथ रहते हैं, उनकी प्रीति सच्ची और निच्छल, निःस्वार्थ होती है।


17- जीवित गुरु

परमात्मा कभी सीधे नहीं मिलता। वह हमेशा उन महापुरुषों के जरिये ही मिलता है जो जीते जी परमात्मा के दरबार में सत्तलोक में बराबर आते जाते रहते हैं। वे ही सच्चे संत हैं। इसलिये सन्त हमेषा मनुष्य को वापस उनके घर पहुंचाने के लिये मनुष्य शरीर में इस मृत्युलोक में आते हैं। वे मनुष्य शरीर में होकर मनुष्यों के बीच जाते हैं।  उनसे मिलते हैं, उनको चेताते हैं, उनको निज घर की याद दिलाते हैं, उन्हें उनके घर जाने का, परमात्मा से मिलने का सच्चा रास्ता, शब्द का, नाम का रास्ता बताते हैं और उनको मदद करके उन्हें यानि उनके शरीर में रहने वाली जीवात्मा यानाी सुरत को परमात्मा से जीते जी मिला देते हैं।

इसलिये इस संसार में आप जो मनुष्य शरीर में जीवित सन्त हैं यानी वक्त गुरु हैं, उनकी तलाश करिये, मिल जाते हैं तो उनके चरण कमलों में अपने को समर्पित कर दीजिये वे कृपा करके आपको जो रास्ता बताते हैं तो उसको प्राप्त करके साधना कीजिये और मरने के पहले परमात्मा को प्राप्त कर लें, यानी आप उस अपने निज घर में पहुंच जाने का प्रयास करिये जिस घर से आपको इस दुनिया में उतारा गया है और इस वक्त आप उसकी कृपा से मनुष्य देह में हैं।


18. मांसाहार
मत सताओ गरीब को वह रो देगा।
जब सुनेगा उसका मालिक तुमको जड़ से खोदेगा।।

ऐ इंसान! तुम इन बेजुबान पशु पक्षियों जानवरों को क्रूरता से मार कर अपने जीभ के स्वाद में खा जाते हो, तुम्हें जरा भी इन पर दया नहीं आती। तुम्हें जरा सा सुई चुभती है तो चिल्लाते हो मगर जब तुम इनके गर्दन पर छुरी चलाते हो, ये ऐसे रोते है कि रूह कांपती है परन्तु तुम्हारे ऊपर कोई असर नहीं पड़ता। इनके मुर्दा मांस को अपने पेट में डाल कर कब्रिस्तान शमशान  घाट बना देते हो। 
अपने मंदिर मस्जिद चर्च जिसको इंट पत्थरों से बनाते हो उसमें तनिक भी गन्दगी हो, हाड़ मांस लहू हो तो कितना लड़ाई करते हो किन्तु जो परमात्मा ने तुम्हारा यह मनुष्य शरीर का अनमोल मंदिर पूजा घर बनाया है उसमें तुम मुर्दा भरते रहते हो और इसका तुम्हारे दिल में तनिक भी बगावत नहीं होता। याद रखो, तुम्हारे एक एक करनी का ऐसा दुखदाई कष्ट मिलेगा जिसका बयान नहीं हो सकता। इसलिये संभल जाओ।


19. अधिकार
केवल मनुष्य को ही यह अधिकार है कि वह इस मृत्यु लोक से परमात्मा के दरबार में यानी अपने निज घर में पहुंच सकता है। यह अधिकार इस पिण्ड लोक के परे अण्ड लोक के देवी देवताओं ब्रह्मा विष्णु शंकर और आद्या महाशक्ति  और उनके लोक के वासी ऋषि मुनियों को भी नहीं है। इस अण्ड लोक के परे ब्रह्माण्ड सृष्टि में ईश्वर खुदा या गाॅड यानी काल भगवान को और उनके लोक के निवासी योगियों को और इसके परे ब्रह्मलोक के वासियों और ब्रह्म को भी जिनसे वेद की उतपत्ती हुई है को यह अधिकार नहीं है और ब्रह्मण्ड के परे पार ब्रह्माण्ड लोक के वासियों  को और पारब्रह्म को भी यह अधिकाार प्राप्त नहीं है तथा पारब्रह्म के परे मानसरोवर पद के परे  महाकाल पुरुष और वहां के लोक के वासी हंस रूप सुरतों को भी यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वे परमात्मा के देश में जा सकें। 
अर्थात सतलोक के नीचे जितने  भी मृत्युलोक के ऊपर के लोक हैं उनमें रहने वाले कोई भी देवी देवता, शक्ति, ईश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म, महाकाल पुरुष बगैरह परमात्मा के लोक सचखण्ड में नहीं जा सकते। लेकिन अहोभाग्य हैं इस मनुष्य शरीर में रहने वाली आत्मा के जो इस शरीर में बैठकर जीते जी सच्चे संत के या और सहयोग से अपने निज देश  सतलोक में परमात्मा सतपुरुष के पास पहुंच सकती है। इसलिये यह मानव देह अनमोल है, जो आपको उस प्रभु की कृपा से मिला है, इससे सच्चा लाभ उठा लो, अपने घर वापस पहुंच जाओ। रोना धोना खत्म हो जायेगा, जन्म लेना न मरना।


20. मुक्ति
परमात्मा मरने के बाद नहीं मिलता, मुक्ति और मोक्ष मरने के बाद नहीं मिलता। परमात्मा जीते जी यानी मरने के पहले ही मिलता है, मोक्ष जीते जी ही मिलता है। इस दुनिया में जो भी यह कहते हैं कि मरने के बाद मुक्ति मिलती है वह सभी केसभी झूठे हैं भ्रम में हैं। इसलिये अगर तुम मोक्ष चाहते हो, परमात्मा को चाहते हो, सच्चा प्रेम और सच्चा आनंद चाहते हो तो जीते जी इस मनुष्य शरीर में ही किसी वक्त गुरु सच्चे सन्त के चरणों में बैठकर प्राप्त करो।

जो सन्त महात्मा इस दुनिया में अब जीवित नहीं है वे तुम्हारी मदद नही कर सकते उनके जहाज पर तुम नही बैठ सकते और तुम्हारे मरने के बाद जो  सन्त महात्मा इस दुनिया में पैदा होंगे उनसे भी तुम्हारा काम नही होगा इसलिये इस अमोलक  मानव जीवन में सच्चे सन्त वक्त गुरु की तलाश कर लो, भाग्य से  वे मिल जाये तो उनकी कृपा लेकर उनके नाम रूपी जहाज में बैठ जाओ तुम्हारा काम पूरा हो जायेगा। वक्त के सच्चे संत सतगुरु के बाहरी भेष भूषा को मत देखो, उनका भेष कैसा भी हो सच्चे यानी पूरे सन्त हैं तो उनके चरणों में अपने को समर्पित कर दो। अपने घर पहुंच जाओगे। जन्मना मरना खत्म हो जायेगा।

–बाबा जयगुरुदेव जी महाराज
- Sant Bodh




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