*शिक्षक वही जो ज्ञान दे*
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महादेव गोविंद रानाडे मुंबई हाईकोर्ट के जज थे। उन्हें नई-नई
भाषायें सीखने में रुचि थी।
जब उन्हें पता चला कि उनका नाई बहुत अच्छी बांग्ला जानता है, तो उन्होंने उसे गुरु बना लिया। जितनी देर
नाई उनकी हजामत करता वह उससे बांग्ला सीखते थे।
यह देखकर एक दिन जज साहब की पत्नी बोली,
'जब लोगों को पता चलेगा कि हाईकोर्ट के जज साहब एक साधारण नाई से
भाषा सीख रहे हैं तो सभी आप पर हँसेंगे।
यदि आपने बांग्ला सीखनी ही है तो किसी योग्य विद्वान से सीख सकते हैं।'
रानाडे ने मुस्कुराते हुये पत्नी को समझाया-
'ज्ञान तो किसी से भी लिया जा सकता है चाहे वह एक साधारण व्यक्ति ही क्यों न हो।
मुझे इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि मैं एक साधारण नाई से
भाषा सीख रहा हूँ।
मुझे भाषा का ज्ञान देते समय वह मेरा गुरु है।'
ज्ञान की चाह रखने वाले किसी से भी शिक्षित होकर स्वयं को धन्य मानते हैं और ज्ञान देने वाले का गुरुतुल्य सम्मान करते हुये उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखते हैं।
इसलिये ज्ञान कहीं से भी मिले, नि:संकोच कृतज्ञ भाव से लेना चाहिये।
प्रणाम जयगुरुदेव ।
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AdhyatmikSandesh
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Jaigurudev