बहुत ही सुंदर-सटीक और भाव वाली चेतावनी 22.

    जयगुरुदेव  चेतावनी 118.
★ Man ko lagale re manva 
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मन को लगाले रे मनवा, गुरु नाम से,
भूल गया तू आया किस काम से।।

नौ महीने तक कष्ट उठाया, जग में आके क्यों भरमाया।
करता भलाई बुराई सुबह शाम में।
मन को लगाले रे मनवा गुरु नाम से।।

सुमिरन करले ध्यान लगा ले, सतगुरु के सतसंग में नहा ले।
मैेल छुड़ाले प्राणी तन चाम से।।
मन को लगाले रे मनवा...

सतगुरु सा नही साथी दूजा, दिल से करले इनकी पूजा।
पार लगाएंगे नैया आराम से, पार लगेगी नैया आराम से।। 
मन को लगाले रे मनवा...

जयगुरुदेव का हो जा दीवाना, मिट जाएगा आना जाना।
आयेंगे लेने स्वामी सतधाम से।।
मन को लगाले रे मनवा...

प्रेमी दर दर क्यों भटकावे, गुरु दर्शन बिन चैन न आवे।
दरश मिलेगा बन्दे गुरु जाम से।।
मन को लगाले रे मनवा...

मीरा दीवानी महलों की रानी, उसने किसी की एक न मानी।
लगन लगाई उसने गुरु नाम से...
मन को लगा ले रे मनवा गुरु नाम से।
भूल गया तू आया किस काम से।।


     चेतावनी 119.
★ Satguru dayi nav lagaye 
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सतगुरु दयी नाव लगाय, लगाय,
मुसाफिर इसमें बैठ चलो।।

कर लेवो भजन जो करना है,
जहाँ रहते हो ये घर ना है।
क्यों जग में रहयो भुलाय, भुलाय, 
मुसाफिर इसमें बैठ चलो।।

जब नाम गुरु जी देते हैं,
सब कुछ प्रगट कर देते हैं।
तेरा देंगे टिकट बनाय, बनाय, 
मुसाफिर इसमें बैठ चलो।।

अजब रंग की है फुलवारी, 
तोहे देंगे चंदा दिखाय, दिखाय, 
मुसाफिर इसमें बैठ चलो।।

घण्टा शंख सुनाये सतगुरु ने, 
घण्टा शंख सुनाये सतगुरु ने।
तेरा देंगे संशय मिटाय, मिटाय, 
मुसाफिर इसमें बैठ चलो।।

बीन बाँसुरी खूब सुनायी, 
बीन बांसुरी खूब सुनायी।
तोहे देंगे अनहद सुनाय, सुनाय, 
मुसाफिर इसमें बैठ चलो।।

संत सतलोक तक जाते हैं, 
तेरी वहाँ भी फतह कराते हैं।
तोहे ले जाय संग लिवाय, लिवाय, 
मुसाफिर इसमें बैठ चलो।



     चेतावनी 120.
★ Mout se darat raho din rat 
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मौत से डरत रहो दिन रात।।

इक दिन भारी भीड़ पड़ेगी।
जम कूदेंगे धर धर लात। 

वा दिन की तुम याद बिसारी, 
अब भोगन में रहत भुलात।

इक दिन काठी बने तुम्हारी, 
चार कहरवा लादे जात।

भाई बंधू कुटुम्ब परिवारा,
सो सब पीछे भागे जात।

आगे मरघट जाए उतारा, 
तिरिया रोवे बिखेरे लाट।

वहां जमपुर में नरक निवासा, 
यहां अग्नि में फूके जात।

दोनों दीन बिगाड़े अपने,
अब नहीं सुनता सतगुरु बात।

वा दिन बहुत पछतावा होगा,
अब तुम करते अपनी घात।

ज्वानी गई वृद्धता आई, 
अब के दिन के इनके साथ।
 
जयगुरुदेव स्वामी कहत सुनाई,
अब तुम्हे बहू विधि समझात।

मौत से डरत रहो दिन रात।।



 चेतावनी 121.
Hote hain jo guru k
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होते हैं जो गुरु के दीवाने, वो मौज निहारा करते हैं।
गुरु का आदेश बजाने में, तन-मन-धन वारा करते हैं।।

हर वक्त मसलहत पर चलना, आदेशों पर मरना मिटना।
मंजिल पर आँखें मूँद चलें, वे कुछ ना विचारा करते हैं।।

पपीहा की तरह टेरा करते, पिछली करनी पर रोते हैं।
माफी के लिए उल्फत दिल में, तस्वीर उतारा करते हैं।।

जो भी बद-नेक करम फल सब, गुरु को अर्पित कर देते हैं।
जो सैन-बैन में मिल जाए, पावन आशीष समझते हैं।

जिस ओर इशारा हो जाए, बेखौफ सिधारा करते हैं।।
जिसने यह बात पकड़ली है, वे दिल में इरादे रखते हैं।।
दुनिया उल्टी हो जाय भले, न प्यार नकारा करते हैं।।

आदेश अमल करने वालों का, कुछ न बिगड़ता बनता है।
गुरुदेव कृपा करि कमलों से, प्रेमी को सहारा करते हैं।।


चेतावनी 122.
Jab neev dharm ki hilti he
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जब नींव धर्म की हिलती है, 
कोई  हस्ती खुदा से उतरती है।
भूले भटके इंसानों पर,
रहमत की नजर वो करती है।।

रूहें जो गुनाहों से रहती हैं दबी, 
वो पास में आती डरती हैं। 
उनसे भी मोहब्बत ये करती, 
सब माफ गुनाहें करती हैं।।

कोई  गैर नहीं सब अपने हैं, 
यह ख्याल सभी में भरती हैं।
इंसान व सब मखलूके जहां, 
हिलमिलकर जहां में रहती हैं।।

रुहानी तरक्की करती हुई, 
दीदार अनलहक करती हैं।
ऐसी रुहानी हस्ती यहां, 
जब आके जहां में चमकती है।।

रहमान उन्हें सब कहते हैं, 
रूहों पर रहम वो करती है।
रहमत व मोहब्बत की दुनिया, 
एक बार दोबारा बनती है।।

हर तरफ सकून है फैल जाता, 
बन जाती स्वर्ग यह धरती है।
दुनिया का नजारा आज जो है, 
इसे देख निगाहें झुकती हैं।।

आज मर्द तो क्या है जनाना भी, 
शर्म हया का पर्दा उठाये चलती हैं।
कोई धर्म नहीं अब इनका रहा, 
दिन रात गुनाहें करती हैं।।

मखलूकों की गर्दन कटती है, 
खातूनों की अस्मत लुटती है।
अल्लाह का ईमान वालों पर, 
अब दुनिया ताने कसती है।।

आमिर, आलिम व बुजुर्गों की, 
कोई बात न दुनिया सुनती है।
हर तरफ गुनाहों के बोझों से, 
तब आज दबी ये धरती है।।

तब जयगुरुदेव अनलहक से, 
नूरानी हस्ती उतरती है।
जब नींव धर्म की हिलती है, 
कोई हस्ती खुदा से उतरती है।।

Jaigurudev ★
शेष क्रमशः पोस्ट 23. में पढ़ें 🙏🏻👇🏼



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