बाबा जयगुरुदेव की अमृतवाणी

जयगुरुदेव
याद रखो गुरु के वचन 

34. विश्वास 

शराब पीने के बाद मान्स खाने की इच्छा और मान्स खाने के बाद शराब पीने की इच्छा होती है, शराब पीने के बाद वासना जागती है, ये एक दूसरे से सम्बन्धित हैं और शराब में एक हजार बुराईयां होती हैं।
मान्साहारी व्यक्ति, शराबी व्यक्ति यदि गंगा नदी में लगातार अपने एक पैर पर खड़ा रह कर बारह वर्ष तक भी कोई बात कहे, कोई आश्वाशन दे, कोई प्रतिज्ञा करे तो उसकी बात का कतई विश्वास मत करना। बारह वर्ष तक एक पैर पर खड़ा गंगा जी में रहने पर भी उसकी कही हुई बात कभी भी विश्वसनीय नही हेाती, हमेशा ही झूठी साबित होती है।

35. स्वार्थी व्यक्ति

एक स्वार्थी व्यक्ति में एक हजार चोरों की बुद्धि होती है। स्वार्थी प्रकृति वाले इंसान पर कभी विश्वास मत करना। वह अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता है, उसको उचित या अनुचित करने का तनिक भी विचार नहीं होता।

36. साधना

मैं तो यह चाहता हूं कि तुम अच्छा से अच्छा भोजन खाओ, अच्छा से अच्छा कपड़ा पहनो और अच्छा से अच्छा घर में रहो और मैं यह देख रहा हूं कि जब मैं तुमसे मिला था तो तुम्हारी कैसी हालत थी, जब तुमको नामदान मिला तुम सतसंग में आने जाने लगे, सेवा करने लगे तो मुझे तुमको देख कर बहुत प्रसन्नता होती है कि अब तुम्हारे कपड़े अच्छे हैं अब तुम अच्छा खाते हो, तुम्हारे मकान भी अब पहले से अच्छा हो गया है तो यह प्रभु की कृपा है तुम्हें अब अधिक से अधिक साधन भजन में लगना चाहिए।

पहले के महात्माओं को बड़े कठिनाई में साधना करना पड़ता था। मैं अपनी बात बताता हूं कि इतनी सूखी कड़क रोटियां होती थी कि दांत से नहीं कटती थी। उन्हें पानी मे भिगों कर भूख लगने पर उनको खा खा कर साधना किया। एक एक हफ्ते और दो-दो हफ्ते की रोटियों को सुखा करके रख लिया करता था और भजन करता था। 

गुरु महाराज खाने में रोटी देते तो दाल ऐसी होती कि दाल जैसे पानी हो बिल्कुल पतली फिर भी उनकी ऐसी दया कि तनिक भी कमजोरी नहीं अठारह अठारह घण्टे खेतों में बैठ कर भजन करता रहा । इसलिये उनकी भारी कृपा है इस शरीर से भजन कर लो।

37. प्रारब्ध

गुरु आज्ञा में रह कर पूरी ईमानदारी के साथ मेहनत करो और अपने प्रारब्ध पर पूरा भरोसा रखो। इस शरीर में जो प्रारब्ध लेकर आये हो वह अच्छा और बुरा कर्म  भोग अवश्य मिलेगा। इसमें जो तुम्हारी तकलीफ है उसको तो बारह आना कम कर दिया जाता है और केवल चार आना भोगने के लिये छोड़ते हैं और उसको सहने के लिये भी ताकत देते हैं लेकिन यह चार आने के जो ऐसे भोग तुम्हारे हैं उसको जरूर लगे रहने देते हैं.

इसलिये कि यदि उसे भी हटा दें तो फिर तुम यहां नहीं आओगे और जब सतसंग से दूर हो जाओगे तो गिर पड़ोगे और फिर भजन नहीं बनेगा इसलिये बराबर सतसंग में आओ, आप दर्शन दो और दर्शन लो,  इसी दरस परस में तुम्हारा काम हो जायेगा। सतसंग में आओ तो जो भी सेवा मिल जाय, सेवा जरूर करो।  तन से सेवा, मन से सेवा, और धन से सेवा बाहर में और सुरत की सेवा अन्तर से बिना नागा करना चाहिए।

38. आनंद

आनंद रोटी यानी अनाज में या फलों में नहीं होता है। जब हम रोटी खाते हैं या कोई फल खाते हैं तो उसको चबाते है। उसमें अन्दर से रस आता है, पीने मे भी रस आता है, उस रस में आत्मा का प्रभाव आता है। यह आत्मा आनन्द और प्रेम के स्रोत भण्डार परमात्मा की अंश है इसलिये खाने पीने में जब आत्मा के किरणों यानी आत्मा के धार का प्रवेश होता है तब हमें रोटी में अन्न में या फल में आनन्द या स्वाद आता है। बिना आत्मा के मिले हमें किसी चीज के खाने पीने में स्वाद नहीं मिलता क्योंकि इन वस्तुओं में आनन्द नहीं है, ये सभी जड़ हैं और आत्मा चेतन है।  शरीर जड़ है और आत्मा चेतन है। 

चेतन के धार के कारण ही हमारे सभी अंग काम करते हैं। चेतन की धार जब हमारे इन्द्रियों के द्वार पर उतरती है तभी हमें उस वस्तु का क्षणिक आनन्द मिलता है जिसका भोग हम प्राप्त करते हैं। वैसे तो जीभ हमेशा खुश्क ही रहती है कुछ भी खाओ पीओ खाने पीने के बाद तृप्तता खतम हो जाती है जीभ फिर खुश्क हो जाती है इसलिए यह समझ लो कि आनन्द आत्मा में रोटी में नहीं है।

जयगुरुदेव
sant  bodh....

baba Jaigurudev ki vani 


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