*"संत मत की शिक्षाओं को समझ कर अमल में लाने की है जरूरत, इसलिए इस समय के समरथ गुरु को खोजो..."*

*जयगुरुदेव*
*सन्देश / दिनांक 23.11.2021*

*सतसंग स्थलः सुरति शब्द योग साधना धाम, ठीकरिया, जयपुर, राजस्थान*
*सतसंग दिनांक: 19.नवम्बर.2021, कार्तिक पूर्णिमा पर्व*

*"संत मत की शिक्षाओं को समझ कर अमल में लाने की है जरूरत, इसलिए इस समय के समरथ गुरु को खोजो..."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

परम पूज्य परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, केवल किस्से कहानियों को पढ़ने तक ही सीमित न रहने और उनके पीछे छुपे हुए गहरे सच्चे अर्थ को बता कर और समझा कर, जीवों को अपने आत्म कल्याण के लिए मार्ग दर्शन देने वाले,
इस समय के मनुष्य शरीर में मौजूद पूरे समरथ संत सतगुरु उज्जैन वाले परम पूज्य *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 19 नवंबर 2021 को सुरति शब्द योग साधना धाम, जयपुर, राजस्थान में कार्तिक पूर्णिमा पर्व को दिए संदेश में गुरु तेग बहादुर जी के प्रसंग से गुरुमुख बनने का संदेश दिया।

*आध्यात्मिक उत्तराधिकारी गुरु तेग बहादुर जी का प्रसंग....*
गुरु हरकिशन जी पंजाब में हुए। जब उनको शरीर छोड़ना हुआ तो सब लोगों ने पूछा;
*अब हम लोगों की संभाल कौन करेगा?*
*परमार्थी रास्ते पर कौन चलाएगा?*
*नामदान कौन देगा?*
तब उन्होंने कहा की बाबा बकाला गांव में वह मिलेगा, वह संभालेगा, वह उपदेश करेगा।
हरकिशन जी के मुरीद शिष्य थे मक्खन शाह। व्यापार करने के लिए विदेश गए हुए थे। वहां से बड़े जहाज में माल लेकर आ रहे थे। तूफान में जहाज खूब डगमगाया। जब लगा कि अब डूब जाएगा तो गुरु को याद किया कहा कोई अब आपके अलावा बचाने वाला नहीं है, आप ही बचाओगे तो जान-माल दोनों बचेगा।

*जिसका कोई सहारा नहीं होता उसका वह मालिक होता है। परमात्मा से वक्त के संत सतगुरु जुड़े हुए होते हैं।*
हरकिशन महाराज के बहुत शिष्य थे लेकिन उन्होंने वो रूहानी दौलत गुरु तेग बहादुर जी दिया था। जब अधिकार दूसरे को दे देते हैं तो पावर भी उनको दे देते हैं।
जब मक्खन शाह वक्त के गुरु को याद किए तब सुनवाई हो गयी। कहते हैं नींबू को जब निचोड़ते हैं तो रस निकलता है। कुछ लोगों का ऐसा ही स्वाभाव होता है। जब जान के ऊपर आफत आती है तब भगवान को याद करते हैं, तब चाहे धन-दौलत सब कुछ चली जाए।

तो बोले अगर जान-माल बच गया तो पांच सौ अशर्फीयां (सोने का सिक्का) गुरु जी को भेंट करेंगे। तो दया हो गई जान बच गई। विश्वास तो हो ही गया था कि गुरु जी ने ही बचाया है तो चलो उनका कर्जा पांच सौ अशर्फीयों का, दे आवें।

*गुरु से कपट, मित्र से चोरी। या हो निर्धन या हो कोढ़ी।।*
संकल्प बनाया, पहुंचे तो पता चला कि गुरुजी तो शरीर छोड़ दिए। सोचे ये कर्जा किसको कहां अदा करें?
तो कहा बकाला गांव में मिलेगा। नाम तो किसी का लिया नहीं था। तो कुछ मनमुखी शिष्यों ने अपनी अपनी दुकान लगा दिया। बाइस लोग हो गए। सब अपने को उत्तराधिकारी घोषित कर दिए।

*मनमुखी कौन होते हैं?*
मन मुखी वो जो मन के अनुसार ही चलता है। मन का ही गुलाम हो जाता है। महात्माओं के पास कई तरह के जीव आते हैं।
कुछ अच्छे भाव वाले कि नाम दान लेकर भजन करेंगे, जो समरथ गुरु कहेंगे, पालन करेंगे। सेवा भी करते हैं तन, मन, धन से कि बढ़ जाएगा।

मेहनत कम करनी पड़ेगी क्योंकि गुरु किसी का रखते नहीं हैं। एक का दस गुना करके वापस कर देते हैं। किसी को जरूरत पड़ी तो गुरु महाराज ने पचास गुना भी करके दिया।
जब वहां पहुंचे तो बोले के उत्तराधिकारी तो एक ही होता है। हमको तो आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के पास जाना है। तो फिर सोचा कि चलो थोड़ा-थोड़ा अशर्फी सबको दे दें। जो हम को बचाया होगा वह कुछ न कुछ बोलेगा, चर्चा करेगा।

अब मन बदल गया, पांच सौ से पांच पर आ गया।जब उसने दिया तो सब लोग आशीर्वाद देते चले गए। कोई बोला ही नहीं की हमने आपकी जान बचाई थी।
पूछा की कोई और महात्मा है जो ध्यान, भजन, सुमिरन करता हो? तो कहा तेगा है, चुपचाप बैठा रहता है, खूब भजन करता है।

तो उनको भी पांच अशर्फी दिया। देखा तो कहा बाकी कहां गया? कपड़े को पीठ से हटाया और दिखाया कि देख! कितने कीले के निशान बने हुए हैं तेरा जहाज उठाने में, कितनी मेहनत पड़ी और तू वादा को भूल गया, मन के कहने में आ गया?
क्या गुरु महाराज ने यही सिखाया था कि मन मुखी बन जाओ, गुरु मुखता छोड़ दो, जो गुरु कहें उसको न करो?
*तो ऐसे यह मन धोखा दे देता है।*

*इससे क्या शिक्षा मिलती है?*
गुरु के पास तो कहते हैं भजन करेंगे, *नामदान* दे दो, लेकिन फिर खानपान, विचार, भावना गलत हो जाती है और काम क्रोध की अग्नि में साधक जलने लग जाता है। *इसलिए गुरुमुख बनो।*

जयगुरुदेव
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