*करवाचौथ पुरुष और स्त्री दोनों का है त्योहार।*

*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट/ दिनांक 23.10.2021*

*सतसंग स्थलः बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश / दिनांक: 04.नवम्बर.2020*

*करवाचौथ पुरुष और स्त्री दोनों का है त्योहार।*
*नामदान लेकर साधना कर अपने असली पति परमात्मा की सुहागन बनो।*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

त्यौहारों के पीछे छिपे असली मतलब को बताने और समझाने वाले, ताकि सभी जीव इनसे पूरा भौतिक और आध्यात्मिक लाभ ले सकें, ऐसे ही आदि से अंत तक हर चीज का पूरा भेद जानने वाले, सतलोक आने-जाने वाले, इस समय के पूरे संत सतगुरु,

उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 04 नवंबर 2020 को आश्रम उज्जैन, मध्यप्रदेश में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,
यह करवा चौथ, कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विवाहिता महिलाएं मनाती हैं। दिन भर कुछ नहीं खाती-पीती और शाम को चंद्रमा का दर्शन कर कुछ खाती-पीती हैं।

एक तरह से तपस्या करती हैं फिर चंद्रमा से अपने अंदर शीतलता के लिए प्रार्थना करती हैं कि हमारे अंदर गर्मी, क्रोध न आवे, सहनशीलता रहे। हमारा शील स्वभाव, संयमित जीवन रहे कि हमारे पति हमसे हमेशा प्रेम करते रहें, साथ न छूटे।

ये सिंदूर, श्रृंगार, लाल रंग का कपड़ा ही क्यों पहनती है? यह जितने भी रंग लाल, पीला, हरा, सफेद आदि हैं, सब ऊपरी लोको के रंग हैं। दूसरे स्थान का जो *नामदान* में बताया गया, लाल ही बताया गया।
जब मीरा ने साधना में शरीर को छोड़ा और दूसरे स्थान पर पहुंचीं तो देखा कि सब लाल ही लाल है। तब बोलीं -
*लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल।*
*लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल।।*
कहा कि यहां तो सब लाल ही लाल हैं। लाल रंग शुभ माना गया है।
जैसे पति जब मांग में सिंदूर भर दे तो वह उसकी ब्याहता हो जाती है, उस पर और किसी की नजर नहीं जाती। *ऐसे ही गुरु जिसको जब अपना लेते हैं तो मोहर-ठप्पा लगा देते हैं कि यह हमारा जीव हो गया तो उस पर किसी की नजर नहीं जाती है।* 

*पुरानी चीजों का मतलब होता है, इन्हें छोड़ने से गृहस्थी की गाड़ी डिसबैलेंस होने लग गई।*
अशुभ माना जाने पर भी काले रंग के काजल को आंखों में लगाती हैं बच्चियां। *क्यों?*
अगर गलत नजर देखेगा तो तेरा मुंह भी काला हो जाएगा। तो यह जितनी भी चीजें हैं इनका कोई न कोई मतलब है, अर्थ है।
*इस समय पर पुरानी पद्धति, पुरानी चीजों को छोड़ने से यह गृहस्थी की गाड़ी डिसबैलेंस होने लग गई।*

*ये त्यौहार क्या याद दिलाता है?*
इन तीज और त्यौहार का महत्व होता है, ये याद दिलाते हैं। जिस पुरुष से ब्याह किया, आपको प्रेम का जीवन बिताना है, एक-दूसरे को खुश रखना है, एक दूसरे के अंदर कोई कमी आ जाए तो उसको दूर करना है, और साथ जिंदगी निभाना है।

*संत मत बाहर की बजाय अंतर की चीजों पर ध्यान देता है।*
संत मत बाहरी चीजों, रीति-रिवाज, पद्धति जो ज्यादा जरूरी नहीं है, उस पर ध्यान नहीं देता है।
आप जो संतमत से जुड़ी हुई हों, *नामदान* मिल गया है, तो आप अंतर के लाल रंग में रंगने की कोशिश करो।
जिसको पति परमेश्वर कहा गया है तो आप अपनी जीवात्मा को उससे जोड़ने की कोशिश करो कि उनके साथ हमेशा रहें, जिससे वो अपना लें।

*संत ही बताते हैं, करवाचौथ का पूरा और वास्तविक अर्थ।*
अपनी जीवात्मा को ध्यान, भजन, सुमिरन कर के जगा लो और प्रभु को प्राप्त कर असली सुहागिन बन जाओ। भजन, ध्यान और सिमरन आज आपको खूब करना चाहिए और जब तक अगला करवा चौथ न आ जाए तब तक बराबर उस मालिक की सुहागन बनना चाहिए।
जितनी जीवात्मा हैं सब स्त्री है। *पुरुष कौन हैं?*

वही परमेश्वर, परमात्मा, सतपुरूष कहा गया। आप जितने भी नामदानी पुरुष हो, आप भी अपनी सुरत को जगा कर उनसे सगाई कर लो जिससे बराबर संभाल करते रहें।
जैसे पति का धर्म होता है, पत्नी को संभालना, दुख-सुख में शामिल रहना, उनको हर तरह से बुराइयों से बचाना।
ऐसे ही जब आपका साथ असली पति परमेश्वर, भगवान, परमात्मा से जब हो जाएगा तब आपका शरीर अपवित्र नहीं होगा, बुराइयों से बचा रहेगा। *फिर इसको सजा नहीं मिलेगी।* 

*वो असला पति, जब समय पूरा हो जाएगा, तब भी संभाल करेंगे।*
जैसे सुहागन अपने पति से कहती है कि हम जीवन भर आपके साथ रहे और हमारा प्राण भी आपकी गोद में ही निकले।
ऐसे ही जीवात्मा, परमात्मा से जुड़ने पर जब समय पूरा होगा तो वो हाजिर-नाजिर रहेंगे और वह इसकी संभाल कर लेंगे।
फिर यह नीचे की योनियों में नहीं जाएगी। आज जितने भी बच्चे और बच्चियां नामदानी हो, *सबको अपनी सुरत को शब्द के साथ जोड़ने की जरूरत है जो पति परमात्मा को आपसे मिलवा दे।*

*पुरुष और स्त्री, दोनों आज ये संकल्प बनाओ।*
एक सिक्के के दो पहलू हैं, पुरुष और स्त्री। ये आप दोनों का त्यौहार है करवा चौथ।
*इसलिए दोनों आज संकल्प बनाओ कि हमारा असला काम हो जाए। जिनको रास्ता 'नामदान' नहीं मिला वो रास्ता ले कर अपने असला काम में लग जाओ।*



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