*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट/ दिनांक 27.10.2021*
*सतसंग स्थलः ग्राम माता बरोडी, तहसील हातोद, जिला इन्दौर, मध्यप्रदेश / दिनांक 26.अक्तूबर.2021*
*"गुरु-शिष्य का रिश्ता माता-पिता के रिश्ते से भी होता है ऊंचा..." - बाबा उमाकान्त जी महाराज*
शरण में आये हुए जीव की हर तरह से, पिता समान भौतिक और आध्यात्मिक सम्भाल करने वाले, जीव हित में कई तरीकों से कर्मों को कटवा कर जीवात्मा को सतलोक जाने लायक बनाने वाले, इस समय के त्रिकालदर्शी महापुरुष,
उज्जैन वाले *संत बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 26 अक्टूबर 2021 को ग्राम माता बरोडी, तहसील हातोद, जिला इन्दौर में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि गुरुजी महाराज *बाबा जयगुरुदेव जी महाराज* पूरे संत थे। उन्होंने बहुत से लोगों को रास्ता बताया, रास्ते पर चलाया और मंजिल तक पहुंचा दिया।
निज धाम जाने से पहले मेरे लिए कह गए थे कि मैं "नामदान" दूंगा। गुरु का आदेश चाहे रैन में हो, चाहे बैन में हो चाहे सैन में हो, करना चाहिए।
*गुरु त्रिकालदर्शी होते हैं। आगे क्या होने वाला है? इस समय क्या हो रहा है? और पीछे जो हो गया, सब देखते हैं।*
*संतों ने सेवा का विधान इसलिये बनाया कि तन, मन, धन से बने बुरे कर्मों को सेवा द्वारा काटा जा सके।*
संत सतगुरू त्रिकालदर्शी होते हैं, शिष्य के कर्मों को कटवाने के लिए, भले के लिए आदेश दे कर, कर्मों का लेन-देन चुकता करवा कर निज धाम ले चलते हैं।
*सेवा का विधान इसलिए बनाया गया है।*
जो शरीर से बुरे कर्म कहीं बन गए हों? जो धन कहीं गलत जगह लग गया, मन कहीं गलत जगह चला गया हो तो तन-मन-धन से सेवा करा कर बुरे कर्मो को कटवाते हैं।
*जीव को उसी हिसाब से बताते हैं जिस हिसाब से उसका भला होने को होता है।*
*जो गुरु कहै, करो तुम सोई। मन के कहै, करो मत कोई।।*
जब जीव दास, सेवक हो जाता है तो जो हुकुम गुरु, मालिक करता है, उसे पूरा करता है। जो अपने को समर्पित कर देता है मन से, धन से, शरीर से, जब सब कुछ उनके अधीन कर दिया जाता है तो गुरु के आदेश का पालन सबको करना चाहिए।
प्रेमियों! गुरु का आदेश सबके लिए फायदेमंद होता है। गुरु त्रिकालदर्शी होते हैं। गुरु-शिष्य का रिश्ता बाप-बेटे जैसा ही होता है, माता-पिता से ऊंचा होता है, बड़ा होता है।
माता-पिता तो शरीर के साथी होते हैं लेकिन गुरु शरीर और आत्मा दोनों के साथी होते हैं। इसलिए गुरु का दर्जा बहुत ऊंचा होता है। इसलिए उदाहरण के लिए समझाया जाता है कि बाप-बेटे के समान गुरु-शिष्य का संबंध होता है।
*तो बेटे के लिए कोई भी बाप बुरा नहीं चाहता है। गुरु का जो आदेश शिष्य के लिए होता है उस के भले के लिए ही होता है।*
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Jaigurudev