*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट/ दिनांक 24.09.2021*
आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश
*संत ही बताते हैं पितरों को खिलाने और खुश रखने का सही तरीका - बाबा उमाकान्त जी महाराज*
विश्वविख्यात परम् संत *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 20 सितंबर 2017 को अपने उज्जैन आश्रम से भक्तों को संदेश देते हुए बताया कि,
लोगों की सोच यह है कि श्राद्ध पक्ष में पितृ आते हैं, उनको खुश किया जाए। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि हमारे दादाजी, पिताजी, माताजी दिखाई पड़े इनको खिलाया जाए।
हिंदू धर्म के अनुसार किसी की मृत्यु हो जाती है तो नवां करते हैं, दसवां करते हैं, बारह दिन पर लोगों को खिलाते हैं, पिंडदान वगैरह करते हैं। लोगों की सोच यह है कि उनको जल पिलाया जाए, चीजें खिलाई जाएं।
कुछ विद्वानों ने बताया कि उनको जो आहुति दोगे, हवन करोगे वह पितरों को मिलेगा, देवताओं को मिलेगा। लेकिन अब उनको मिलता है कि नहीं? इसकी जानकारी बहुत से लोगों को नहीं है।
जो इस मनुष्य शरीर में दुनिया की चीजों को ही देखते हैं, वे न पितरों को देख पाते हैं न देवताओं को देख पाते हैं। *उनको इस चीज की जानकारी नहीं है कि हम जो खिलाते, पिलाते और देते हैं, वो उन देवताओं को, पितरों को मिलता है कि नहीं मिलता है?*
*अब पितृ किसको कहते हैं?*
पितृ उनको कहते हैं की जिनकी अकाल मृत्यु हुई और वे प्रेत योनि में चले गए। अब यह तो मालूम नहीं हो पाता किसी को कि कहां गये? स्वर्ग गये या बैकुंठ गये या दादाजी, पिताजी कुत्ता-बिल्ली बन कर के इसी घर में आ गए? इसकी जानकारी तो किसी को हो नहीं पाती।
लेकिन विद्वानों ने कहा कि अगर यह प्रेत योनि में चले गए तो तुमको परेशान करेंगे। क्योंकि इनके मानव शरीर को तुमने जला दिया, नष्ट कर दिया। तो सबसे ज्यादा जलाने वाले के ऊपर ही गुस्सा प्रेत-आत्माएं उतारती हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंड दान वगैरह लोग करवाते हैं।
*देवताओं और पितरों, दोनों का भोजन सुगंधि आहार है।*
इसी तरह से यह क्वांर के महीने में भी पिंडदान लोग करवाते हैं और भोजन कराते हैं पितरों को। कोई कन्याओं को खिलाता है तो कोई ब्राह्मणों को। कहीं खीर-पूडी तो कहीं पुआ-पकोड़ा बनता है।
खुशबू की ही चीज बना करके उनको खिलाते हैं। प्रेतों का जो भोजन होता है, वह सुगंधि होता है। देवताओं का भी भोजन सुगंधि होता है। *यह सब क्वांर के महीने में ही आते हैं।*
*देवताओं और पितरों को पूरा खुश न कर पाने की वजह से ये परेशान करते रहते हैं।*
सबसे तकलीफ वाला क्वांर का महीना होता है। इसमें बीमारियां भी तरह-तरह की आती हैं। जो संयम से नहीं रहते हैं, उनके लिए बीमारियां भी आती हैं।
मौसम बदलता है, बरसात जाती है और ठंडी का आगमन होता है। तो मौसम के बदलाव में तकलीफ आती है। श्राद्ध में पितरों को भोजन खिलाने के बाद भी वो क्यों परेशान करते रहते हैं?
जो देवता, जो पितृ हैं, ये तकलीफों को पूर्ण रूप से दूर नहीं कर पाते क्योंकि इनको लोग खुश नहीं कर पाते हैं। *खुश अगर हो जाएं तो लोगों को परेशान ये न करें।*
*पितरों को खुश करने का तरीका क्या है?*
देखो! प्रेतों को पन्द्रह दिन खिला देने से, दो-चार दिन खिला देने से वह खुश नहीं होते हैं। उनकी भूख बराबर बनी रहती है। जैसे चार छः दिन आप खाना खालो और फिर खाना न मिले तो आप परेशान हो जाओगे।
आप परेशान उसको करोगे जो आपको खिलाता है। मां खिलाती है। मां रोटी नहीं देती तो किस को परेशान करोगे? मां को ही तो परेशान करोगे।
तो इनको लगातार खिला नहीं पाते प्रेतों को। जब पूरा साल खिलाओ फिर वह परेशान नहीं करते हैं। नहीं तो बहुत परेशान करते रहते हैं क्योंकि इनकी भूख बहुत होती है। पेट बहुत बड़ा होता है तो हमेशा भूखे ही रहते हैं।
कुछ खा नहीं पाते हैं और सारी इंद्रियां तेज होती हैं इसलिए परेशान किए रहते हैं। तो आप समझो *जिस तरह से लोग खिलाते-पिलाते हैं, उस तरह से वह खुश नहीं हो पाते हैं।*
*पुराने गलत तरीकों से नहीं बल्कि सही तरीकों से पितरों को खिला कर खुश किया जाता है।*
बहुत से लोग सुबह-सुबह उठते हैं। नदियों के किनारे जाते हैं। सूरज की तरफ करके पानी देते हैं। पूछो तो कहते पितरों को देते हैं।
*जब तरीका मालूम हो जाता है कि पितरों को कैसे खुश किया जाए, रोज खिला कर के खुश किया जा सकता है, तो इनसे शांति मिलती है। नहीं तो शांति मिलने वाली नहीं है।*
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