*सास-बहू के रिश्ते में सुख-शांति लाने का तरीका,* *पूरे संत ही बता सकते हैं कि भौतिक और आध्यात्मिक सुख एक साथ कैसे मिलेगा?*

*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट/ दिनांक 23.09.2021*
काफिला पडाव, अयोध्या, उत्तरप्रदेश 

*सास-बहू के रिश्ते में सुख-शांति लाने का तरीका,*
*पूरे संत ही बता सकते हैं कि भौतिक और आध्यात्मिक सुख एक साथ कैसे मिलेगा?*

आध्यात्म वाद के द्वारा इन्सान के लोक और परलोक दोनों बनाने का सरल मार्ग बताने वाले,
उज्जैन के पूज्य संत *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने अपने 80 दिवसीय अखिल भारतीय काफिले के अयोध्या पड़ाव पर 07 मार्च 2021 को दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,
सास और बहू का झगड़ा तो मशहूर है क्योंकि घर पर रहती हैं। आदमी तो काम-धंधे पर चले जाते हैं तो ये लड़ती रहती हैं।
यह जरूर है कि गरीब घर की सास-बहू जब तेज बोलती हैं, भद्दी-भद्दी गाली देती हैं तो लोगों को पता चल जाता है और बड़े घर की सास-बहू धीरे बोलती हैं, अंग्रेजी में गाली देती हैं।
सबको नहीं पता चलता है कि उनके यहां झगड़ा हो रहा है छोटी-छोटी बातों पर। लेकिन होता सबके यहां है।

*घर की सुख-शांति के लिए बहू ये करे ...*
मोटी बात समझो। अगर बहू यह सोच ले कि मैं एक मां को छोड़कर के आई, यह मुझे दूसरी मां मिल गई। मान लो वह हमारा जन्म दूसरा था। मायके - पीहर को अपने भूल जाए और इसी घर को अपना मान ले।
वहां की कोई चर्चा बढ़ाई न करे। रिश्तेदारों को भी थोड़े समय के लिए भूल जाए। यहां ससुराल के रिश्तेदारों को अपना मान ले, उनका सम्मान करने लग जाए, उनको प्यार करने लग जाए।

रात को पति जब काम पर से आ जाए तो वह यह न समझे कि घर में टेंशन है। जैसे कोई रिश्तेदार आ गए, मामा आ गए, तो जैसे अपने मामा आते थे, ऐसा अगर सोच ले।
यह सोच ले कि एक मां को छोड़ कर के आई मैं, ये मुझे दूसरी मां मिल गई। एक पिता को छोड़ कर के आई, यह मुझे दूसरे पिता मिल गए। यह जो देवर है, हमारे यह मेरे भाई मिल गए।
इस तरह अगर व्यवहार करने लग जाए, जैसे हम अपने भतीजों को मानते थे, भाई के लड़को को मानते थे, वैसे हम यहां अपने पति के भाई के लड़कों को मानने लग जाएं, उनकी सेवा करने लग जाएं, उनसे द्वेष न रखे तो यह गृहस्थ आश्रम स्वर्ग जैसा हो जाए।
*फिर घर छोड़कर भागना नहीं रहेगा, फिर तलाक का मुकदमा कायम करना नहीं रहेगा।*

*घर की सुख-शांति के लिए सास ये करे ...*
और अगर सास यही सोच ले कि एक लड़की का ब्याह मैंने कर दिया, यह मुझको दूसरी लड़की मिल गई। जैसे हम अपनी लड़की से प्यार करते थे, ऐसे हम इससे प्यार करें।
लड़की हमारी मचल जाती थी कि मां हमको यह सामान खरीद दो, यह हमको सलवार-कुर्ता बनवा दो, हमको ओढ़नी खरीद दो तो चलो हम इससे भी पूछ ले कि इसको क्या चाहिए?

जैसे हमारी बेटी कहती थी, मां आज यह बना लें? बना ले बच्ची कोई बात नहीं। ऐसे ही उसकी इच्छा पर छोड़ दें। बना ले बेटी, बना ले बहू तेरी इच्छा है और अपने हिसाब से ही उसकी इच्छा पर छोड़ दें।
बहू से बोल दे, बेटी हमारे लिए चावल पीछे से निकाल देना, पका हुआ निकाल देना, हमारे दांत ठीक नहीं है, हमारे लिए रोटी जरा मुलायम बना देना तो उसी तरह से बना देगी।

*दिलों को जीत कर बहू घर की मालकिन बन जाती है।*
बहू को भी यह चाहिए कि जैसा सास चाहती है, जैसे ससुर को, पति को पसंद है, उस तरह का बना दे। घर में कोई चीज की कमी नहीं रहती।
आलस्य में बनाना नहीं चाहती, दिल को जीतना नहीं चाहती और द्वेष पैदा हो जाता है। और अपनी मां बहनों, रिश्तेदारों की औरतों से कोई न कोई बात करती रहती है और वे जहर वहां से भरती रहती हैं।
बस! दो महीना भी नहीं बीतता है और तलाक, दहेज के मुकदमे चालू हो जाते हैं।

*इन बारीक चीजों का ध्यान दोनों सास-बहू को रखना है।*
बुड्ढी मां सास जो रहती है, बहू के भाव को भांप लेती है कि यह तो हमको कबर पर पहुंचाने का सोच रही है। तिजोरी की चाबी बिना कुछ मेहनत किए हुए अपने हाथ में लेना चाहती है तो सास पैर नहीं दबवाती है।
बहू बहुत कहे की माताजी! लाओ पैर दबा देती हूँ। लेकिन सास सोचती है कि कहीं ऐसा न हो, पैर दबाते - दबाते गला ही दबा दे, तिजोरी की चाबी मिल जाएगी।

आप समझो शंका पैदा हो जाती है एक दूसरे के प्रति। अगर खाने-पीने सेवा में कमी न रह जाए बुड्ढों के तो कुछ भी करे वही घर को संभालने लग जाती है, खुश सबको कर ले जाती है तो वही मालकिन बन जाती है।
तब बुढ़िया डंडा लेकर रसोई का चक्कर नहीं लगाती कि क्या छुन्न-मुन्न हो रहा है, बहू क्या बना रही है?
*इसलिए छोटी-छोटी बातों को ध्यान रखने की बच्चियों जरूरत है, माताओं ध्यान रखने की जरूरत है।*



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