∎ अगर राम का, कृष्ण भगवान का दर्शन करना है तो जब जीवात्मा की आंख खुलेगी तभी दर्शन होगा। जिस शरीर में वे हैं उसी शरीर को जब ये जीवात्मा धारण करेगी शरीर में वे हैं उसी शरीर को जब ये जीवात्मा धारण करेगी तब उनका दर्शन होगा। सन्तमत की साधना में जीवात्मा इस स्थूल को छोड़कर लिंग शरीर धारण करती है तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश का दर्शन होता है, उसके बाद उस शरीर को भी छोड़कर सूक्ष्म शरीर धारण करती है तो निरंजन भगवान का दर्शन होता है। उनका भी सूक्ष्म शरीर होता है। राम इसी स्थान से आये थे। गोस्वामी तुलसीदास जी अपनी साधना का अनुभव बताते हुए कहा है कि- मोहिं बिलोकि राम मुसुकाहीं।
∎ कम खाओं, गम खाओ और कम सोओ। साधक जब इन बातों को अपने जीवन में उतार लेता है तब उसे सफलता मिलने लगती है।
∎ एक लड़का मेरे पास आया और बोला कि मैं घर से भागकर आया हूं। चार महीने हो गये। मैंने उससे कहा कि तुझे मुझको बताना चाहिए था। मैंने उसके घर चिट्ठी डाल दी कि तुम्हारा लड़का यहां है जब चाहो आकर ले जाओ। मुझे किसी को साधू नहीं बनाना न किसी का घर द्वार छुड़ाना है।
∎ सत्संग में बैठो तो पूरी बात सुनो। अधूरी सुनोगे तो कुछ समझ में नहीं आएगा और अर्थ का अनर्थ कर दोगे। तुम उसको (गुरु को) अन्धा समझते हो इसलिए बनावटी भजन करते हो। बनावटी भाव भजन से न तो तुम्हारा काम बनेगा और न तुम्हारी रक्षा होगी। भजन की बाधायेें अगर हों तो बताओ पर भजन न बनने की शिकायत मत करो।
∎ जब कभी आश्रम में आओ तो ठीक से रहो प्रेम भाव से रहो। जमीन खोदते हो यह अच्छी बात नहीं। अभी मिट्टी डालकर पटवाया है।
∎ यहां रहो सेवा करो। मैं तो सबसे मिलता हूं भागा दौड़ी मत करो। सबको फायदा मिलना चाहिए। लाइन में बैठ जाओ। मैं एक एक से मिल लूंगा।
दोनों आंखों के पीछे जीवात्मा का घाट है। वहां जब बैठने की आदत डालोगे तब तड़प् बनेगी। तड़प् और विरह जाग जाय तो कर्म जल्दी साफ होते हैं फिर शब्द सुनायी देने लगता है प्रकाश प्रगट हो जाता है।
∎ सत्संग में जब बैठो तब सामने बैठो। पीछे या इधर-उधर बैठते हो तो पर्दा तो आ ही जाता है।
सुमिरन ध्यान और भजन तीनों जरूरी हैं। पहले यह काम। दो किया एक नहीं किया तो ये ठीक नहीं। इससे साधना खण्डित हो जाती है। इसलिए भले ही थोड़ी देर के लिए करे सुमिरन, ध्यान, भजन रोज करेा।
∎ भूत किसी को दिखाई देता है किसी को नहीं दिखायी देता है। भूत तो होता ही है। नीमसार में तुमने नहीं देखा कि भूतों को भोजन दिया जा रहा था।
तुम कहते हो कि भजन नहीं बनता आलस आती है। साधन भजन करने का पक्का इरादा होना चाहिए। घर में रहकर सबकी सेवा करो, संयम से रहो और पति पत्नि दो तीन माह के लिए ब्रह्मचारी हो जाओ। घाट पर बराबर बैठोगे तो तड़प् होगी फिर भजन ध्यान बनने लगेगा।
∎ जब संकट का समय कभी आ जाय तो धैर्य के साथ उसे काट लेना चाहिए।
राम ने निरंजन भगवान की झलक देखी जो सहसदल कंवल मे रहते हैं। गौतम बुद्ध ने भी यही अनुभव किया। केवल सन्त ही ऐसे हैं जो उनकी व्याख्या करते हैं और जीवात्माओं को उनके धाम में पहुंचाकर निरंजन भगवान का दर्शन दीदार कराते हैं। फिर उससे भी ऊपर में ब्रह्म पद में और उससे भी ऊपर पारब्रह्म पद में पहुंचाकर मुक्ति और मोक्ष दिला देते हैं। मुक्ति और मोक्ष नीचे के किसी भी स्थान में नही है।
∎ दीन बन जाओ तो सभी लोग तुम्हें प्यार करने लगेंगे। जो दीन बन जाता है परमात्मा उसी पर दया करते हैं। मातायें अपने बच्चों को जंगल में छोड़ आती हैं तो कोई भी हो जब उसे देख लेता है तो गोद में उठा लेता है, पालता-पोसता है।
∎ जब तक मन में, बुद्धि में, चित्त में अहंकार रहेगा सुरत (जीवात्मा ) नाम को नहीं पकड़ सकती। जितने लोग तारीफ करें उतने ही तुम छोटे बनते जाओ। दीन बनते चले जाओ। ऊपर जाने का रास्ता बहुत बारीक है, बगैर छोटे बने उसमें कोई घुस नहीं सकता।
∎ दुःख की तरफ सब लोग जा रहे हैं। गड्ढे में गिरने जा रहे हैं। सामान सब तैयार हो रहा है। मैं फिर कहता हूं कि शाकाहारी हो जाओ। नहीं मानोगे तो तुम जानो और तुम्हारा काम जाने। कुदरत का करिश्मा कोई जानता नहीं।
∎ तुम्हें रोग लग गया, गरीबी आ गयी, किसी ने कुछ बुरा भला कह दिया तो गुरु की तरफ से मुँह मोड़ लेते हो और उनमें दोष देखने लगते हो। गुरु तो सर्वदा पवित्र है उसे मनुष्य नहीं जानना चाहिए।
∎ यह मनुष्य शरीर यह जिस्म परमात्मा का मन्दिर है, खुदा की मस्जिद है। इस मन्दिर में बैठकर इस दरगाह में बैठकर तुम आकाशवाणी वेदवाणी आसमानी आवाजें सुन सकते हो कोई मुश्किल बात नहीं है।
∎ निरंजन भगवान जो सहस दल कंवल में ऊपर बैठे हैं तुम्हारी तरह एक जीवात्मा हैं एक सुरत हैं। वो भी अनामी महाप्रभु जो एक विशाल समुद्र हैं उनकी एक बूंद है। वह मालिक तो सागर है। एक वक्त आ रहा है जब यह रास्ता मालिक के दर्शन दीदार का सुलभ हो जायेगा।
∎ यहां लोग आते हैं और पूछते हैं कि महात्मा जी कहां मिलेंगे उनसे मिलना है। उन्हीं से पूछते हैं उनसे कह दिया जाता है कि महात्मा होंगे तो मिलेंगे। सच ये कि महात्मा तो अयोध्या में हैं। मैं तो सेवक हूं, सामने खड़ा हूं जो कहना है कह दो।
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