*वक्त के सन्त सतगुरु जीवों की रक्षा के लिए फैलाये रहते हैं अपनी शक्ति -बाबा उमाकान्त जी महाराज*

जयगुरुदेव
प्रेस नोट
उज्जैन मध्य प्रदेश

*वक्त के सन्त सतगुरु जीवों की रक्षा के लिए फैलाये रहते हैं अपनी शक्ति -बाबा उमाकान्त जी महाराज*

वक्त के कामिल मुर्शिद, आला फकीर, सभी रूहों के निजात का रास्ता बताने वाले वर्तमान के पूरे सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने दिनांक 17 अक्टूबर 2020 को अपने उज्जैन आश्रम से यूट्यूब चैनल JaigurudevUkm के माध्यम से ऑनलाइन संदेश में संतो की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि रावण को राम भगवान मार नहीं सकते थे। 12 कला के राम थे और 14 कला की जरूरत थी रावण को खत्म करने के लिये। तब इन्होंने परशुराम जी से दो कला मांगा उनसे छोटे बनकर तब रावण का विनाश कर पाए थे।

*कृष्ण ने उस समय के संत सुपच जी से प्रार्थना किया कि अपनी शक्ति को समेटो नहीं तो हम पापियों का कर नही पायेंगे संहार*

कृष्ण भगवान को 16 कला के अवतार कहा गया। गीता पढ़ने वाले, भागवत पढ़ने वाले, कृष्ण भगवान की पूजा करने वाले उनको ही ब्रह्म मान लिए, उनको सब कुछ मान लिया। गीता में भी श्री कृष्ण ने कहा सतगुरु की खोज करो और सतगुरु से रास्ता लो तब तुम्हारा उद्धार हो सकता है। कृष्ण ने पाण्डवों को भी समझाया। कृष्ण जो काम करते थे वह सुपच जी से शक्ति लेकर उनको अपना पूज्य मान करके करते रहे। और जब उनको संहार करना हुआ, दुष्टों का महाभारत कराना हुआ तब सुपच जी जो उस समय के सन्त थे, उनसे कृष्ण ने प्रार्थना किया, कहा जो जनहित की शक्ति आप प्रवाहित कर रहे हो, फैला रहे हो उसको आप अब समेट लो, दया भाव अब समेटो तभी इन दुष्टों का संहार हो सकता है। नहीं तो एक प्रभावी, एक पुण्य आत्मा के पास पापी भी अगर रह जाता है तो जो शक्ति उनको बचाने वाली होती है वह पापी को भी बचा लेती है।

*चमत्कार नहीं दिखाना चाहिये। चमत्कार दिखाने से होती है शक्ति क्षीण*

जो सच्चे संत सतगुरु होते हैं वह चमत्कार नहीं दिखाते हैं। वो तो मनुष्य के आत्मा के कल्याण के लिए आते हैं, जीवों के भलाई के लिए आते हैं। अगर चमत्कार दिखाने लगे तो जैसे कोई मर गया  उसे जिंदा करदे तो लोग उनका जो आत्मा के उद्धार का काम है, लोग उनको वो काम नहीं करने देंगे और मरे हुये आदमियों को जिंदा कराने वालों की लाइन लग जायेगी।

*प्रकृति के नियम का उल्लंघन संत-महात्मा भी नहीं करते*

हरगोविंद सिंह दस गुरुओं में हुए। उनके लड़के का बादल नाम था। 9 साल के थे तो अपने पड़ोसी जिसके साथ खेलते थे उसके पास गए घर पर। उसका शरीर पड़ा हुआ था बच्चे का और अगल-बगल परिजन माता-पिता रो रहे थे। पूछा क्या हो गया? उन लोगों ने बताया कि इस की जान चली गई, यह तो खत्म हो गया। तो उन्होंने बोला ऐसे कैसे खत्म हो जाएंगे? हमारी जो पारी थी खेल में इनसे हमको खेलना था वह पारी हम लेंगे इनसे और इनसे जीतेंगे हम। तो हाथ पकड़ा और कहा चल उठ, चल हमारी पारी पूरी कर दे और खेल के मैदान में पहुंच गए। घर वाले तो बहुत खुश हो गए लेकिन हरगोविंद सिंह जी उनके पिता थे। उन्होंने कहा बेटा तुमने यह क्या किया? प्रकृति के नियम का उल्लंघन क्यों किया? ऐसा तुमने क्यों किया? जो तूने जिंदा किया है उसके बदले शरीर हमको छोड़ना पड़ेगा या तुझको छोड़ना पड़ेगा। तब उन्होंने कहा पिताजी गलती तो मेरे से हुई है और मैं अब जा रहा हूं।जान के बदले जान मैं दे रहा हूं। मेनें जिंदा किया तो मैं अपनी जान दे रहा हूं।
चमत्कार तो नहीं दिखाना चाहिए। आप समझो चमत्कार दिखाने से क्या होता है? शक्ति क्षीण होती हैं।

।।जयगुरुदेव।।

परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम उज्जैन (म.प्र) भारत

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