जयगुरुदेव
प्रेस नोट-नई दिल्ली
*सत्संग न मिलने के कारण सब भूल और भ्रम में पड़ गये, इधर-उधर भग रहे- बाबा उमाकान्त जी महाराज*
जीवन में भक्ति और सुख-समृद्धि कैसे आये, इसकी जानकारी देने वाले उज्जैन के पूज्य संत बाबा उमाकान्त जी महाराज ने दिनांक 19 अक्टूबर 2019 को रामलीला मैदान, नई दिल्ली में अपने सतसंग सन्देश में कहा कि कर्म बहुत से अनजान में भी आ जाते हैं। अब इसकी जानकारी कैसे हो? उसके लिए ही तो सत्संग बनाया गया। सत्संग सुनते रहो तो हर तरह की जानकारी हो जाएगी। कैसा रहन-सहन बनाना चाहिए, कैसा विचार-व्यवहार बनाना चाहिए, किस तरह से पूजा-इबादत करना चाहिए, क्योंकि पूजा-इबादत करते हुए अगर देवता खुश नहीं हुए, अल्लाह ताला पाक परवरदीगार खुश नहीं हुआ तो कबीर साहब ने क्या फरमाया:
अरे इन दोहुन राह ना पाई,
हिंदू अपनी करे बड़ाई गागर छुवन देवई
वेश्या के पाँयन तर सोई यह देखो हिन्दुआई।।
मुसलमान के पीर-औलिया मुर्गी-मुर्गा खाई,
खाला केरी बेटी ब्याहे, घर ही में करे सगाई।।
उन्होंने कहा कि सब भूल और भ्रम में पड़े हुए हैं, इधर उधर भाग रहे हैं?
दुनिया ऐसी बावरी पत्थर पूजन जाय।
घर की चक्की कोई न पूजे जिसका पीसा खाय।।
उन्होंने कहा इधर-उधर कहां भटक रहे हो? पेड़ और पौधों में तुम अपना माथा कहां पटक रहे हो?
मुझको कहां ढूंढे बंदे मैं तो तेर पास में।
कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे वनमाय।
ऐसे घट-घट राम है, दुनिया जानत नाय।।
कबीर साहब ने कहा कि -
ज्यो तिलमाही तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ में, जान सके तो जान।।
यही बात फकीरों ने भी कहा। कबीर साहब जी ने मुसलमानों के लिए भी कहा-
कांकर पाथर जोरि के, मस्जिद लई चुनाय।
ता ऊपर चढ़ी मुल्ला बाग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।
क्या वह खुदा बहरा है? नहीं सुनता? गोस्वामी जी ने भी कहा...
हरि व्यापक सर्वत्र समाना।
प्रेम से प्रकट होय मैं जाना।।
सारी खिलखत वही खुदा की है। अब अगर तुम्हारे आंख के सामने जिससे खुदा देखा जाता है उस पर पड़ गया पर्दा। जैसे कोई काला चश्मा लगाकर के और सूरज को देखें तो कहेगा सूरज काला है। ऐसे लोगों ने कह दिया कि खुदा तो मिल ही नहीं सकता है, भगवान का दर्शन हो ही नहीं सकता है। जिन लोगों ने देखा जिन लोगों ने उनकी दैवी आवाज को सुना, अनहद वेद वाणी को सुना वह कैसे झूठा कर सकते हो?
*धर्म ग्रंथों में लिखा है कि परमात्मा का दर्शन और रूह को निजात दिलाने के लिये ही मनुष्य शरीर मिला*
आप यह जो वेद पुराण बाइबल फकीर जो संत छोड़ कर के गए आप यह समझो या तो आप उसको समझ नहीं पाते हो या तो समझते हुए भी इंद्रियों के भोग में मस्त हो, मौत को भूले हुए हो। पूछ रहे हो कि जिंदगी भर यही रहेंगे दुनिया में। दुनिया की चीजों को इकट्ठा करने में लगे हुए हो। तो उस समय पर लोग कुछ अपने जिस्म के लिए ही नहीं, कुछ अपनी रूह के लिए, अपनी आत्मा के लिए भी करते थे। आत्मा को जगाते थे।
तो कैसे करते थे? मूर्तियों की आंखों में आंखें डालकर के साधना करते थे। तो आंखों से जब रेंज निकलती थी वह मूर्तियों के आंखों पर टकराती थी और टकरा करके फिर एक बिंदु बन जाता था। और जब वह बिंदु फटता था तो कुछ दूर की सफर उनकी हो जाती थी, लेकिन ऐसा कब होगा?
*जब संत आये धरती पर तो संतो ने घर पर बैठ करके ही साधना करने के लिये बताया*
संतमत चला जब संतो ने जब साधना ये बतायी तो उन्होंने घर में ही बैठ कर के करने के लिए कहा। और आंख बंद करके समझ लो ध्यान लगाने के लिए बताया। आंखों के अंदर से जब रेंज निकलेगी एक जगह पर दृष्टि को टिकाओगे, आंखों की पुतलियां चमकीली हैं। उस पर टकराएंगी उस पर टकराके एक जगह इकट्ठा हो जाएंगे और फिर बिंदु बन जाएगा।
जैसे सूरज निकला हुआ है और सूरज की किरणें फैली हुई हैं जब फैली हुई रहती है तो इतनी गर्मी नहीं महसूस होती है? और किरणों को इकट्ठा कर लिया जाता है जैसे आतिशी शीशा होता है और उस पर जब सूरज की किरणें इकट्ठा कर ली जाती हैं तो नीचे कपड़ा कागज कुछ भी लगा दो, जल जाता है।
ऐसे ही दृष्टि की साधना जब बताई जाती है, दृष्टि को एक जगह पर टिकाने के लिए बताया जाता है। तो आप यह समझो इसी तरह से द्वापर भी चला गया, हजार वर्ष की उम्र चली गई। और जीवात्मा इस शरीर को छोड़कर के एक तिनके के बराबर भी आगे नहीं बढ़ नही पाई। तब तक आपका आ गया यह कलयुग। तो कलयुग में बहुत मलिनता आई। कर्मों का फल लोगों को मिलने लग गया, लोग नर्क में जाने लग गए।
सकल जीव मम उपजाया।
सब पर मोर बराबर दाया।।
इस धरती पर जितने भी जीव हैं, सब उसी मालिक के हैं। जिसको आपने सर्वशक्तिमान परमात्मा कहा, किसी ने अल्लाह ताला पाक परवरदिगार कहा, किसी ने गॉड कहा, सब उसी के हैं। उसने न हिंदू बनाया न मुसलमान बनाया न सिख बनाया न ईसाई बनाया। उसने इंसान बनाया, सबके अंदर जीवात्मा एक जैसी है।
*जब रूहें-जीवात्मायें नर्कों-दोजख में जाने लगी तो मालिक को आ गई दया, और उन्होंने सन्तों को भेजा*
अब आप इस बात को समझो जब रूहों को निजात के बजाय जो दोजख में जाने लगी, जब नरकों में जीवात्मायें जाने लगी, जब इनके ऊपर मार पड़ने लगी, जब चिल्लाई तब उस मालिक को दया आ गई क्योंकि उसका नाम दीनबंधु दीनानाथ गरीब परवर दिगार है। जिसने भी उनको दीनता से, प्रेम से पुकारा उसको वो मिला।
।।जयगुरुदेव।।
- परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम उज्जैन (म.प्र) भारत
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