प्रार्थना पाठ (post no.24)

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जयगुरुदेव प्रार्थना 142. 
Tere dar ko chhod kar
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तेरे दर को छोड़ कर किस दर जाऊँ मैं ,
सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊँ मैं  --२ ।।१।।

जब से याद भुलाई तेरी लाखों कष्ट उठाये हैं,
क्या जानू इस जीवन अन्दर कितने पाप कमाये हैं ।
हूँ शर्मिंदा आपसे क्या बतलाऊँ मैं,
सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊँ मैं ।।२।।

मेरे पाप कर्म ही तुझसे प्रीत न करने देते हैं,
कभी जो चाहूँ मिलूँ आपसे रोक मुझे ये लेते हैं ।
कैसे स्वामी आपके दर्शन पाऊं मैं,
सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊँ मैं ।।३।।

तुम हो नाथ ज्ञान के दाता तुम से ज्ञान सब पाते हैं,
ऋषि मुनि और योगी सारे तेरे ही गुण गाते हैं ।
छींटा दे  दो ज्ञान का होश मे आऊँ मैं,
सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊँ मैं, 
तेरे दर को छोड़ कर किस दर जाऊं मैं ।।४।।




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जयगुरुदेव प्रार्थना 143.
Tumhe goki aankho se sab
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तुम्हे गोकि आँखों से सब देखते हैं,
पर पहचानते हैं कहीं थोड़े थोड़े ।।१।।

मृदुल रूप मन मोह लेता सभी का,
पर पहचानते हैं कहीं थोड़े थोड़े ।।२।।

हे वह तेज तुममें कि सिर सब झुकाते,
 पर पहचानते हैं कहीं थोड़े थोड़े ।।३।।

बहुत मान कर साधू हैं पास आते,
पर पहचानते हैं कहीं थोड़े थोड़े ।।४।।

बहुत बैठते हैं सत्संग मे भी,
पर पहचानते हैं कहीं थोड़े थोड़े ।।५।।

बहुत से वचन नित्य सुनते व गुनते,
पर पहचानते हैं कहीं थोड़े थोड़े ।।६।।

बहुत लेते उपदेश भी नाम के हैं,
पर पहचानते हैं कहीं थोड़े थोड़े ।।७।।

बहुत सुमिरन भजन नित्य करते,
पर पहचानते हैं कहीं थोड़े थोड़े ।।८।।

कृपा की नजर जिस पर एक बार होती,
वही हैं जो पहचानते थोड़े थोड़े ।।९।।

जिन्हे प्रेम का एक बिन्दु ही मिला है,
वही हैं जो पहचानते थोड़े थोड़े ।।१०।।

खिली क्यारियां शब्द की घट मे जिनके,
वही हैं जो  पहचानते थोड़े थोड़े  ।।११।।

निछावर किया जिसने तन मन तुम्ही पर,
 वही हैं जो  पहचानते थोड़े थोड़े ।।१२।।

मिटाकर खुदी को खुदा बन गये जो,
वही हैं जो  पहचानते पूरे पूरे  ।।१३।।





जयगुरुदेव प्रार्थना 144.
Tumhe mata pita swami
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तुम्हे माता पिता स्वामी, तुम्हे गुरुदेव माना है।
तुम्ही भगवान हो मेरे, तुम्ही में  मन लगाना है...

लिया अवतार है तुमने, तो अब भक्तों की रक्षा को।
बड़ा है पाप जो कलयुग में, वो तुमको मिटाना है...
तुम्हे माता पिता स्वामी...

भजन और ध्यान सुमिरन में, सफल तुम्ही बनाओगे।
बिना कृपा तुम्हारी के, न कोई पार जाना है...
तुम्हे माता पिता स्वामी...

बसो ह्रदय में मेरे आपकी झांकी करुँ हरदम।
यही मन का मनोरथ है, यही आनंद पाना है...
तुम्हे माता पिता स्वामी...

मैं  दीन और हीन हूं स्वामी, पकड़ लो हाथ अब मेरा।
दयालू हो दया कर पार, मुझको भी लगाना है..

तुम्हे माता पिता स्वामी, तुम्हे गुरुदेव माना है...
तुम्ही भगवान हो मेरे, तुम्ही में  मन लगाना है...

*जयगुरुदेव...*




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जयगुरुदेव प्रार्थना 145.
Tumne Ham yaad karte h
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तुम्हें हम याद करते हैं हमें तुम जानो ना जानो ।
हमारा प्यार तुमसे है इसे तुम मानो ना मानो।।

तुम्हारे द्वार पर बैठा हुआ सिजदा किया करता ।
दयासागर दयालु हो दया तुम आनो ना आनो ।।

तुम्हारा नाम दाता है भिखारी में तेरे दर का ।
अजाने दे रहा है नित सुनो तुम कानो ना कानो ।।

बोलना सक्त मनाई सुना है आपका कलीे में ।
देखना प्रण न टूट जाए रहे मन प्रानो ना प्रानो।।

तुम बोलो या नहीं प्यारे बुलाना प्रण हमारा है ।
हम अपना प्रण निभाएंगे तुम अपना जानो ना जानो ।।

गुरु की ओढ़कर चादर जो देखा सामने सतगुरु ।
बहुत दिनों पर मिले प्यारे अब पहिचानो ना पहिचानो।।




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प्रार्थना 146.
Tera hai kam kevat ka
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तुम्हारा काम है केवट का,
किनारे नाव ला देना।
चढ़ा कर मुझसे पापी को,
गुरु उस पार कर देना।।

पुकारूँ मैं किनारे से,
खड़े पर आप नही सुनते।
हुई जो भूल मेरे से,
कृपा करके भुला देना।।

विषय व वासनाओं में,
सदा भटका रहा स्वामी।
न थी कुछ याद निज घर की,
पता उसका बता देना।।

दया सागर पतित पावन,
तुम्हें जो लोग कहते हैं।
रहे कुछ याद इसका भी,
अयश अपना मिटा देना।।

जो थक कर आ पड़ा द्वारे,
शरण देना मुनासिब है।
अगर चाहो बचा लो या,
 मुझे फिर से डुबा देना।।

अगर हो सिंधू तो मैं भी,
तुम्हारा एक कतरा हूँ।
अगर यह दास मिल जाये,
कभी विनती ये सुन लेना।।


......जयगुरुदेव......
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Guru ki  mahima
सतगुरु जयगुरुदेव जी 

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