Prathna (post no.25)

जयगुरुदेव 147.
★ Jago shabd guru mere 
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जागो शब्द गुरू मेरे घट में।
तुमसे विलग भटकती भव में, क्यों कर बैठे पट में।।
अपना अपना कहि कहि भटकूँ, अपना कोइ न जगत में।।
अपने से होइ विलग सुन्दरी, फिरत विकल पिउ रट में।।
तुम बिन विकल फिरूँ मैं दरदर, क्यों नहिं मिलत निकट में।।
घट घट के तुम जानन हारे, राखो न प्रभु मोहिं घट में।।
सुरत शब्द मिलि एकरूप होइ, अधर चढ़े चटपट में।।
सतगुरु जयगुरुदेव कृपा से, सुरत जगे निज घट में।।




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जयगुरुदेव प्रार्थना 148.. 
★ Tumhare vaste gurudev 
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तुम्हारे वास्ते गुरुदेव यह सौगात लाया हूँ।
यह गठरी अपने पापों की चढ़ाने तुमको आया हूँ।।

ये गठरी अपने पापों की बगल में जिसे दबाये हूँ।
इसे माता पिता पत्नी व सुत कोई नहीं लेते।
उन्होंने ले लिया जो शेष जीवन में कमाई हूँ-

जो चाहो आप न चाहो गुरुजी आप कर देना।
ये गठरी अपने पापों की जिसे सब माफ कर देना।।
जो चाहो आप स्वामी कुछ दया जरूर कर देना-

*जय गुरु देव...*




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जयगुरुदेव प्रार्थना 149.
★ Tumhare bin mere satguru 
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तुम्हारे बिन मेरे सतगुरु,
ये नैया पार कैसे हो, ये नैया पार कैसे हो।

न कोई है यहाँ मेरा, न कोई है यहाँ अपना,
न दोगे गर सहारा तो मेरा उद्धार कैसे हो।।

बहुत दिन हो गये रहबर इधर भी हो कृपा गुरुवर।
न दोगे गर इशारा तो, ये बेड़ा पार कैसे हो।।

तुम ही तुम हो मेरे सतगुरु, न कोई और है मेरा।
अगर तुम रूठ जाओगे, प्रभु दीदार कैसे हो।।

शरण अब तेरी आया हूँ, नहीं दुख भूल पाया हूँ।
अगर तुम भूल जाओगे,  मेरा कल्याण कैसे हो।।

तुम्हारे बिन मेरे सतगुरु,
ये नैया पार कैसे हो, ये नैया पार कैसे हो।






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जयगुरुदेव प्रार्थना 150.
Tumhari sharan me me aya guru
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तुम्हारी शरण में मैं आया गुरु,
अब ना कभी भुलाना मुझे।
हूँ जन्मों का पापी मेरे सतगुरु,
दया करके अब तो निभाना मुझे।।

तुम्हारे सिवा कोई मेरा नही,
जहाँ मे कही भी बसेरा नही।
मेरे तो स्वामी तुम्ही हो गुरु,
मैं सोया हुआ हूँ जगाना मुझे।।
तुम्हारी शरण में मैं  आया गुरु...

मैं अज्ञान हूं ज्ञान मुझमे नही,
साधन भजन कुछ भी बनता नही।
साधन भजन अब बढ़ाकर गुरु,
निज रूप का दर्शन कराना मुझे।।
तुम्हारी शरण में मैं आया गुरु...

निन्दा बुराई से बचता रहूँ,
कर्जा सभी का चुकाता रहूँ।
सदबुद्धि कर दो हे समरथ गूरू,
बुरे कर्मों से अब बचाना मुझे।।
तुम्हारी शरण में मैं आया गुरु...

काबू मे आता नही मेरा मन,
समझ मे न आता करुँ क्या जतन।
हो स्थिर मेरा मन हे दाता गुरु,
विषय भोगों से अब हटाना मुझे।।
तुम्हारी शरण में मैं आया गुरु...

ये तन मन व धन है सभी कुछ है तेरा,
जो चाहो कराओ न वश कुछ मेरा।
जपूँ नाम हरदम तुम्हारा गुरु,
भक्ति मे अपनी लगाना मुझे।।
तुम्हारी शरण में मैं आया गुरु...

संसारी व्याधा मे उलझा हूँ मैं,
शांति कभी भी न पाता हूँ मैं।
सुरत शब्द से अब मिलाकर गुरु,
जीवन मरण से बचाना मुझे।।
तुम्हारी शरण में मैं आया गुरु...

सहसदल कंवल, त्रिकुटी, दसवाँ द्वार,
भवर गुफा, सतलोक के पार।
अलख और अगम को दिखाकर गुरु,
धाम अनामी लखाना मुझे।।

तुम्हारी शरण में मैं आया गुरु...
अब कभी ना भुलाना मुझे........




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जयगुरुदेव प्रार्थना 151.
Tum daya karo datar
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तुम दया करो दातार, मेरे रखवार,  
खबर लेओ मोरी!
दुःख हरो मेरे गुरुदेव शरण लई तेरी।
दुःख हरो मेरे गुरुदेव शरण लई तेरी।।

मैं प्रथमही तुम्हें मनाता हूं, 
चरणों में शीश झुकाता हूं।
गुणगान तुम्हारे गाता हूं,  
गुरु दया तुम्हारी चाहता हूं।

मैं विनय करुं कर जोर, नाथ मेरी खौर, 
अरज सुन मेरी।
दुःख हरो मेरे गुरुदेव शरण लई तेरी।।

मुझे कामादिक ने घेरा है, 
अब चारों तरफ अंधेरा है,
मन भोगों का हुआ चेरा है, 
सब माया का चक्कर फेरा है।
गुरु मेरी बुद्धि हुई मलीन, 
मैं अति दीन, मोह मति घेरी।
दुःख हरो मेरे गुरुदेव शरण लई तेरी।।

भव रोगों से बीमार हुआ, 
सब झूठा जग का प्यार हुआ।
अब जीवन जग का भार हुआ, 
इक गुरु नाम आधार हुआ।
मेरे गुरु करो दया की दृष्टि, 
मैहर की वृष्टि, नजर क्यों फेरी।
दुःख हरो मेरे गुरुदेव शरण लई तेरी।।

मुझे तीनों ही ताप सताय रहे, 
संकट के बादल छाए रहे,
मोहे काल और कर्म नचाय रहे, 
वे निस दिन त्रास दिखाय रहे।
गुरु मैनें झेले कष्ट अनेक, 
कर्म नहीं नेक, कुमति हुई मेरी।
दुःख हरो मेरे गुरुदेव शरण लई तेरी।

मैं दुःखी हुआ भरमाया हूं, 
पापों की गठरी लाया हूं।
अब शरण तुम्हारी आया हूं, 
कर त्राहि त्राहि चिल्लाया हूं।
मेरे सब पापों को नाथ, 
झुकाऊं माथ, जलाओ ढेरी।
दुःख हरो मेरे गुरुदेव शरण लई तेरी।

गुरु तुम ही पापों के मोचन, 
दया से देखो दया के लोचन।
संकट टारन, कष्ट विमोचन, 
दुःख निवार करो प्रभु मोचन।

गुरु सब संकट कर दो दूर, 
गुरु भरपूर, करो मत देरी।
दुःख हरो मेरे गुरुदेव शरण लई तेरी।।




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प्रार्थना 152.
Tum samrath mere satguru pyare
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तुम समरथ मेरे सतगुरु प्यारे।
                         हम बालक तुम पिता हमारे।।
मन चंचल मोहिं अति भरमावे।
                      काल करम मोहिं नित्त सतावें।।
 काम क्रोध संग भरमत डोले।
                         जड़ चेतन की गाँठ न खोले।।
 मैं अति नीच निकाम नकारा।
                            गहे आय तुम सरन दयारा।।
 भूल चूक अब बख़्शो मेरी।
                           दया मेहर अब करहु घनेरी।।
 निर्मल कर मन सुरत चढ़ाओ।
                               प्रेम दान दे चरन लगाओ।।
 घट में मोहिं निज दर्शन दीजै।
                           तन मन सुरत प्रेम रंग भीजै।।
 मैं अजान कुछ माँग न जाना।
                       अपनी दया से देओ मोहिं दाना।।
 यह पुकार मेरी सुन लीजै।
                           मेहर दया अब सतगुरु कीजै।।

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                   जयगुरुदेव 
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शेष क्रमशः पोस्ट न. 26 में पढ़ें 👇🏽

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