Warning of Sant Mat ।। सन्तमत की चेतावनी 13.

69. चेतावनी 
Malayak se vashar

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                  *हमारे शाहंशाह* 

मलायक से, वशर से, दूर से, सबसे सिवा निकले। 
हमारे शाहंशाह दोनों जहानों से जुदा निकले।।

खुली जब आंख तो इन्सां के जामे में खुदा निकले। 
समझते थे उन्हे हम क्या इलाही और वो क्या निकले।।

खुदा जलवानुमां उनमें, खुदा में वह फना निकले। 
न वह उनसे जुदा निकला, न इनसे वह जुदा निकले।।

मुहब्बत में वह एक दूसरे की, मुवतिला निकले। 
खुदा उन पर फिदा निकला, खुदा पर वह फिदा निकले।।

बजूदे खाके आलम में, वह इसरारे वका निकले। 
इसी दुनियाये फानी में, वह लाफानी खुदा निकले।।

चलो दीदार करलो आज ही सत्संग में उनका, 
खुदा जाने कयामत कब हो, और क्या माजरा निकले।।

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70. चेतावनी
Maanav (manav) tere jivan ka

मानव तेरे जीवन का आधार रहेगा कितने दिन ,
इस तन में तड़पती स्वांसों का यह तार रहेगा कितने दिन ।।

धन माल कमाया भी तूने संसार बसाया भी तुने,
तू खाली हाथों जायेगा अधिकार रहेगा कितने दिन ।।

क्यों ऐंठ ऐंठ के चलता तू किस मद में फूला फिरता तू ।
नशा चढ़ा है जो तुझ पर ऐ यार रहेगा कितने दिन ।।

माता पिता या पत्नी हो लड़का हो अपना भाई हो ।
अपना कहने वालो का यह प्यार रहेगा कितने दिन ।।

कभी छोड़कर तू जायेगा कभी छोड़कर ये जायेगे।
इस नाशवान दुनिया का अब आधार रहेगा कितने दिन ।।

तू इससे खोज गुरु की कर प्यारे वही तुझे बतलाएंगे।
इस पार रहेगा कितने दिन उस पार रहेगा कितने दिन ।।।

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71. चेतावनी
Man re kyon guman ab karna

मन रे क्यों गुमान अब करना ।।
तन तो तेरा खाक मिलेगा चौरासी जा पड़ना ।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

दीन गरीबी चित में धरना, काम क्रोध से बचना ।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

प्रीत प्रतीत गुरु से करना, 
नाम रसायन घट में धरना ।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

मन मलीन के कहे ना चलना, 
गुरु के वचन हिये में धरना ।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

यह मतिमंद गहे नही सरना, 
लोभ बढ़ाय उदर को भरना ।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

तुम मानो मत इनका कहना, 
इनका संग जगत बीच गिरना ।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

इस मूर्ख को समझ पकड़ना,
गुरु के चरण कभी न विसरना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

गुरु का रूप नैनन में धरना , 
सुरत शब्द से नभ पर चढ़ना।।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

जयगुरुदेव का नाम सुमिरना, 
जो वह कहें चित में धरना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

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72. चेतावनी
Man tum bhajan yadi nahi


मन तुम भजन यदि नहीं करिहौं, 
तो बिन रक्षक भवसागर में, 
डूब डूब के मरिहौं।
मन तुम भजन यदि नहीं करिहौं।।

बहु दुख भोग मनुष तन पायो, 
फिर चौरासी में परिहौं।
मन तुम भजन यदि नहीं करिहौं।।

यदि बन गया पाप कछु तन से, 
नरक कुण्ड में परिहौं।
मन तुम भजन यदि नहीं करिहौं।।

जम के दूत बहुत दुःख दे हैं, 
परबस जरिहौं मरिहौं।
मन तुम भजन यदि नहीं करिहौं।।

सुत दारा कछु काम न आहें, 
माई बाप गुहरहि हौ।
मन तुम भजन यदि नहीं करिहौं।।

रक्षक कौन तुम्हारा होगा, 
जो गुरु का पंथ न धरिहौं।
मन तुम भजन यदि नहीं करिहौं।।

अबकी चेत कियो नहीं सतगुरु,
फिर पीछे पछतहियों।। 
मन तुम भजन यदि नहिं नहीं करिहौं।।

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73. Maanus chola ati anmola
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मानुष चोला अति अनमोला बड़े भाग्य से पाये हो,
परम प्रकाश और सुख तजकर आकर कहाँ भूलाये हो।।

तन रक्षा में करे चौकसी इसका मान रखाये हो ,
अपनापन तन ही तक राखे आतम ज्ञान न पाये हो ।।

तन मन प्रेमी जन के ही बस रह निश दिन अरूझाये हो,
आतम भेदी रक्षक का संतसग नहीं अपनाये हो।।

तन से बहु धन धाम कमाया बहु तक पाप कमाये हो,
महा बावला होकर डोले काल चहत अब खाये हो ।।

आतम अंसी सत्य पुरुष की सो तन माहि फंसाये हो,
उसका यदि उद्धार किया नहीं विरथा नरतन पाये हो ।।

निज कल्याण हेतु अजहूँ यदि सतगुरु शरण ना आये हो,
तब तो इस अमूल्य जीवन का स्वाद नहीं कुछ पाये हो ।।

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74. चेतावनी
 Mat bandho gathariya apjas ki


मत बांधो रे गठरिया अपजस की 
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

ये संसार बादल की छाया, 
करो कमाई भाई हरि रस की। 
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

जोर जवानी ढलक जायेगी। 
बाल अवस्था तेरी दस दिन की। 
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

धर्म दूत जब फांसी डारे, 
खबर लेहें तेरी नस नस की। 
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

कहत कबीर सुनो भाई साधु, 
तब तेरी बात नहीं बस की। 
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

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75. चेतावनी
Mukh mod idhar dekho to


मुख मोड़ इधर देखो तो, मैं तुम्हें बुलाने आया हूँ,
तुम भूल गये मुझको, मैं तुमको नहीं भुलाया हूँ।।

निज घर से जब से आये, अपनी सुध खुदी भुलाये ।
मैं देख रहा था बाट तेरी, फिर मानुष रूप बनाया हूँ।।

तुम फंसे कर्म के फन्दे, इससे अति हो गये गन्दे।
तेरे कीचों को धोने, मैं सत्य देश से आया हूँ।।

यह मन जो तेरा साथी है, यह बहुत बड़ा उत्पाती है ।
यह तुमको यहां फंसाया है, मैं तुम्हें छुड़ाने आया हूँ।।

इस जग से नाता तोड़ो, अपने घर को मुख मोड़ो।
घट शब्द डोर घर चढ़ जा, हर घट में लटकाया हूँ।।


सुरत को गगन चढ़ा दो, चरणों में आज लगा दो ।
जुग जुग के भूले प्यारे, मैं राह बताने आया हूँ।।

तन मन धन अर्पण कर दो, फिर देख वहां बैठा हूँ।
मेरा ही हाथ पकड़ लो, यह सार भेद गाया हूँ।।

मुख मोड़ इधर देखो तो, मैं तुम्हें बुलाने आया हूँ,
तुम भूल गये मुझको, मैं तुमको नहीं भुलाया हूँ।।

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76. चेतावनी
Mat bandho gathariya apjas ki

मत बांधो गठरिया अपजस की,
मत बांधो गठरिया अपजस की।।
अपजस की विनाशक की।
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

मात पिता से मुख न बोले,
तिरिया से बात करे रे रस की।
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

धन यौवन का गर्व ना कीजै,
तेरी उमरिया दिन दस की।
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

धर्म छोड़ी अधर्म को ध्यावे,
नईया डुबा वे जनम भर की।
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

भाई बन्धु और कुटुम्ब कबीला,
ये सब है रे मतलब की।
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

कहे कबीर सुनो भाई साधो,
निकलेगा स्वास रहे न बस की।
मत बांधो गठरिया अपजस की।।

जयगुरुदेव.
शेष क्रमशः पोस्ट 14. में पढ़ें 🙏🏻👇🏼


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Jaigurudev Chetavni

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