जयगुरुदेव संगत की चेतावनी 14.

●● Jai Guru Dev | Chetavni ●●

*चेतावनी 77.*  
 ✦ sada sansar me satpurush ✦

सदा संसार में सतपुरुष,
नर तन धर के आए हैं।
मगर संसार वाले क्या कभी पहचान पाए हैं।।

हितोपदेष को मूरख, 
न समझे रार की उनसे, 
भयंकर फल मिला उनको,
अयष दुनियां में पाए हैं।।

स्वयं भगवान के अवतार,
राम आये जगत में थे।
मगर माता पिता सुत राम को वन में पठाये है।।

वह रावण जाति का ब्राह्मण,
जो चार वेदों का पण्डित था।
न सच्ची राम की माना,
युद्ध कर सिर गंवाए हैं।।

लोग सोलह कला के कृष्ण को अवतार कहते हैं, 
कंस मामा विरोधी बन के अत्याचार ढाये हैं।।

कंस जरासंध कौरव ने न मानी बात केशव की, 
सखा अर्जुन बिचारे भी नहीं पहिचान पाए हैं।।

इसी से कृष्ण के रहते नरक जाना पड़ा उनको, 
तो उनका हाल क्या होगा रार इनसे मचाये हैें।।

अभी कलयुग में काशी में, 
कबीर आये न पहिचाना।
दुखी काशी से होकर आप मगहर को सिधाए हैें।।

भक्त रविदास मीरा के,
गुरु काशी में जब तक थे।
यहां से हो दुखी मरवाड़ में कुटिया बनाए हैं।।

शिरोमणि भक्त मीरा रानी,
जिसका नाम रोशन है।
उन्हें व्यभिचारिणी कहकर महल से निकलवाये हैं।।

गोस्वामी जी जिनकी आज रामायण है घर-घर में, 
उन्हें भी कौन पहिचाना   प्राण लेने को धाये हैं।।

यह दुनियादार कितना कष्ट उनको भी दिये देखो, 
विपत सब घट रामायण मे स्वयं लिखकर बताये हैं।।

अयोध्या के संत पलटू जिन्होंने खोलकर गाया, 
उन्हे जिंदा ही घर में   बंद करके जलाए हैं।।

यही था हाल ईसा का जिन्हें शूली पर लटकाया, 
कहे प्रभु बख्श देना ये नहीं पहचान पाये हैं।।

रसूल आये खुदा के जब मुहम्मद शहर मक्के में, 
कुरैश उनके ही कुनबे वाले दुश्मन बन सताए हैं।।

छोड़ मक्का मदीना में पनाह लेना पड़ा उनको, 
महा संघर्षमय जीवन मुहम्मद ने बिताये हैें।।

हकीकत से जुदा मुस्लिम सम्स तबरेज ने देखा, 
हकीकत क्या बताने पर खाल उनके खिंचाये हैं।।

सत्य के वास्ते गुरु तेगबहादुर सामने आये, 
तो अत्याचारियों ने शीष उनके भी उड़ाये हैं।।

वेद वादी ऋषि दयानंद आर्यों को जगाते थे, 
उन्हें विष दे के मारा हानि हम सबने उठाये हैें।।

सत्यवादी अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी, 
मार गोली आततायी दिया जलता बुझाए हैं।।

बहुत विपद झेल कर सन्त जीवों को उठाते हैं, 
खड़े जो हो गए पीछे वही गुणगान गाये हैं।।



*चेतावनी 78.*  
✦ Na kiya hai bhajan tune ✦


न किया है भजन तूने बन्दे,
माफ करने के काबिल नहीं है।
इस कदर जुल्म ढाये हैं तूने, 
सिर उठाने के काबिल नहीं है।।

इसलिए बन्दे नर तन मिला है,
नाम लेकर सुरत को जगाना।
उम्र सारी गंवाई है तूने,
पार जाने के काबिल नहीं है।।

नींद भरके जवानी में सोया,
खेत पापों का तूने है बोया।
कर लिए पाप तूने हैं इतने,
पार जाने के काबिल नहीं है।।

प्रीत गुरुवर से अपनी लगा ले,
अपनी मुक्ति का मारग बना ले।
बस यही बात तेरे पते की,
जो भूल जाने के काबिल नहीं है।।



*चेतावनी 79.* 
Gurudev ka gun gav re man


गुरुदेव का गुण गाव रे, मन बावरे।।

डूब रहे हो भव सागर में, 
क्यों मूरख बिन नांव रे, मन बावरे।।

तन धन कुटुम्ब जगत के संगी,
कोई ना अयिहे काम रे, मन बावरे।।

हाथ झाड़ जब चला यहां से, 
कोई ना ले है नाम रे, मन बावरे।।

करले साथ आज सतगुरु का, 
नर तन सुफल बनाव रे, मन बाबरे।।

वह हैं रक्षक यहां वहां के, 
जीते जी पतियाव रे मन बावरे।।

कहना और समझना क्या है, 
छोड़ो बुरे स्वभाव रे मन बावरे।।

शील क्षमा सन्तोष दया धर, 
सतगुरु भक्ति कमाव रे मन बावरे।।

जयगुरुदेव चरण रज नौका, 
पर चढ़ी कर तर जाव रे मन बावरे।।

अबकि काज बना लो फिर तो, 
नर तन पाव ना पाव रे मन बावरे।।


*चेतावनी 80.*  
✦ Sada namrta man me dharo ✦


    सदा नम्रता मन में धारो,
         यह सतगुरु का कहना है।
   शीश झुका कर जग में चलना, 
         यह सेवक का गहना है।।

    नल के आगे शीश झुकाओ, 
         तो वह प्यास बुझाता है।
    ज्यों ज्यों फल है वृक्ष को लगता, 
         त्यों त्यों झुकता जाता है।।

    ज्यों ज्यों नीचा चलता पानी, 
         सागर बीच समाता है।
     वही गुरमुख सतगुरू का प्यारा है
जो पांचों नियम निभाता है।।


*चेतावनी 81.*  
Sabd bina sara jag andha ✦


शब्द बिना सारा जग अंधा,
काटे कौन मोह का फंदा।।

शब्द बिना बिरथा सब धंधा,
शब्द बिना जिव बंधन बंधा।
शब्दहि सूर शब्द ही चंदा,
शब्द बिना जिव रहता गंदा।।

शब्द बिना सबही मति मंदा,
शब्दहि नासहि शब्दहि पंदा।
शब्द कमावे मिले अन्नदा,
शब्द बिना सबही की निन्दा।।

ताते शब्दहि शब्द कमाओ,
शब्द बिना कोई और न ध्याओ।
शब्द भेद तुम गुरू से पाओ,
शब्द माहिं फिर जाय समाओ।।

शब्द अधर में करे उजारा,
शब्द नगर तुम झाँको दवारा।
शब्द रहे  सबही से न्यारा,
शब्द करे सब जीव गुजारा।।

शब्द जानियो सब का सारा,
शब्द मानियो होय उबार।।
शब्द कमाई कर हे मीत,
शब्द प्रताप काल को जीत।।

शब्द घाट तू घट में देख,
शब्दहि शब्द पीव को पेख ।
शब्द कर्म की रेख कटावे,
शब्द शब्द से जाय मिलावे।।

शब्द बिना सब झुठा ज्ञान ,
शब्द बिना सब थोथा ध्यान।।
शब्द छोड़ मत रे अजान,
सतगुरू कहे करें बखान।।

✦ jaigurudev ✦
शेष क्रमशः पोस्ट 15. में पढ़ें 🙏🏻👇🏼


jaigurudev chetavni

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ