Satsang Vachan | Sant Umakant Ji Maharaj
आज 30 मई 2019 को बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन में प्रातःकाल की बेला में गुरु महाराज के सातवे वार्षिक भण्डारे के अवसर पर आप लोगों के दर्शन का अवसर मुझे प्राप्त हुआ मेरा शौभाग्य है।
आप लोगों के ऊपर गुरु महाराज की दया हुई कि आपको ग्रहस्थी से निकालकर और यहाँ पर कुछ सुनने, कुछ समझने, कुछ लेने, कुछ देने के लिए निकालकर ले आये।
आप सब लोग इस चीज को याद रखो। इस मनुष्य शरीर मे जिनेते भी लोग इस धरती पर आये सबको छोड़कर के जाना पड़ा।
लेकिन जो लोग अपनी मौत को याद रखते हैं और जीवन के क्षण को गिनते रहते हैं समझते रहते हैं कि हमारा कितना सिमय निकल गया । वो तो अपना काम बना लेते हैं और जो इस चीज को नहीं समझते उनका समय खाने पीने मौज मस्ती में ही चला जाता है ।
उसी तरह से इस दुनिया संसार से चले जाते हैं जैसे पशु और पक्षी पैदा होते हैं, खाते है, बच्चा पैदा करते हैं और दुनिया संसार से चले जाते हैं ।
यह सासों की पूंजी गिनकर के खर्च करने मिली है । पूंजी किसको कहते है ? कोई व्यापार करता है तो कहता है भाई हमारी इतनी पूंजी है इतना रुपया हमारे पास है इतना हम इसमें लगायेंगे। घर मकान बनाने को होता है कोई भी काम करने को होता है गम का हो या खुशी का हो, शादी व्याह हो या कोई घर में शरीर छोड़ दिया हो तो कहता है उतनी ही पूंजी है इतने मे ही सब हमको सेट करना पड़ेगा।
ऐसे ही सांसो की पूंजी है और गिन करेके खर्च करने केलिए मिली है। अब जो देखते रहता है और परखता रहता है यानी समझले कि उसकी पूंजी का एक एक नोट सही जगह पर लगता है। जो नहीं परखता नही देखता है उसका बराबर खर्च होता चला जाता है और नहीं पता चलता है।
आप घर में बिजली लगवाते हो रोशनी के लिए हवा के लिए , आप टेली फोन लगवाते हो कि एक दूसरे से बात करते रहेंगे। पानी बिजली कनेक्शन लेते हो पीने के लिए लेकिन इन सबमें मीटर लगता है और मीटर बराबर चलता रहता है जितनी बिजली खर्च करोगे यानी उतनी रीडिंग आ जायेगी टेलीफोन का उतना पता चल जाएगा आप समझलो पानी का भी उसी तरह से पता चल जाता है , अब जो लोग मीटर को नही देखते हैं गाड़ी में तेल को भरवाते हो तेल का मीटर होता है । जो लागे समझलो कि उसको नहीं देखते है और तेल खतम हो जाता है तो वो गाड़ी यानी समझलो रास्ते में रुक जाती है.
ऐसे ही ये जिन्दगी का मीटर यानी आदमी को देखते रहना चाहिए परखते रहना चाहिए।
अब माहत्माओं ने संकेत तो दे दिया महात्माओं ने लोगों को बताया तो.
जब संतो के पास लोग जाते थे संत्संग सुनते थे। पन्द्रह दिन में महीने में एक बार जब उनके पास जाते थे। तो वो यानी समझलो कि हर तरह की जानकारी करा देते थे लेकिन जब से सत्ंसग सुनना बन्द किया संतो के पास आना जाना बंद किया तो इससे ये ज्ञान हो गया खतम ।
जो इस चीज की जानकारी कर लेता है गाड़ी चलाने से पहले ये तेल का मीटर है ये गाड़ी की स्पीट का है चाल है। यानी वो सब देखता रहता हे गाड़ी में बैठते ही चाबी लगाते ही देखता है कितना तेल है।
अब जिसको नहीं मालूम है बैठा स्टार्ट किया चला रहा है रास्ते में गाड़ी रुक जाती है।
ऐसे ही जीवन के समय को परखते रहने के लिए जन्म दिन का यानी समझलो कि नियम बना लिया। कि साल में एक बार देखलो। हमारी उम्र कितनी हो गयी है। कितना श्वांस हमारा खतम हो गया।
लेकिन संतों को पास लोगों ने आना जाना बंद कर दिया तो जनम दिन तो मनाते हैं ओर धूमधाम से मनाते हैं लेकिन किस तरह से मनाते हैं ? बढ़िया मिठायी बनाया, बढ़िया भोजन बनाया, रिश्तेदारों को बुलाया, हित मित्रों को बुलाया, खाया खिलाया, जश्न मनाया, खुशी मनाया, नाचा गाया और खुश होकर के कहते हैं कि मेरा बेटा आज आठ साल का हो गया बड़ा हो गया या बढ़ गया. बढ़ नही गया घट गया.
उसमे स्नान करने से यानी समझलो कि शरीर की त्वचा को , शरीर के अंगो को लाभ मिलता था।
वो तो वैज्ञानिक लाभ मिलता था। लेकिन संतो के पास जब वो बताते थे किस तरह से तुमसे जो ग्रहस्थ आश्रम में कर्म बन गये बुरे कर्म जो तुमने जान में अंजान में कर लिया है उसको इस तरह से काट लो।
जो तुमने शरीर के अन्दर विकार पैदा कर लिया है खाते चले गये रोक नही लगाया। नीति नियम नहीं बनाया संयम नहीं बनाया जिससे शरीर ये रोगी हो गया. अब उस रोग को किस तरह से दूर करे।
इस तरह से तुम अपने क्रोध को यानी काबू पाओ ।
सारी बातों को महात्मा लोगों को बताते थे। समझाते थे जान अंजान मे जो कर्म बन गये उनको उसी बने हुए अंगो से जैस हाथ से बुरे कर्म बन जाते हैं पैर से बन जाते हैं आंख से मुंह से बन जाते हैं तो उसी की सेवा करवा करके उन को कटवाते थे।
लेकिन अब, अब किसी के पास समय नहीं है। दिन रात आदमी चलता रहता है। खाना उतना ही है कोई समझलो यानी ज्यादा थोड़े ही खा पात है। खुराक मेहनतकस्त का थोड़ा ज्यादा होता है। और मेहनत न करने वालों का कम होता है।
बुढापे में खुराक कम हो जाती है। जवानी मे ज्यादा रहती है, मेहनत करने में ज्यादा रहता है लेकिन बहुत ज्यादा नहीं रहता है कि कोई मन, दो मन खा ले, पचास किलो खा ले। ऐसा नही रहता है। और पेट मे जाने के बाद सबका बदबूदार मल ही निकलता है सुबह।
कोई कितना भी खुशबूदार खा ले लेकिन खुशबूदार मल निकला कभी किसी का ?
और सोने के बाद किसी को पता नही चलता कि कहां सोये हैं । सुबह जब उठता है चाहे कोई मोआ गददा पर सोया हो और चाहे कोई जमीन पर सोया हो उठता है तो तरोताजा ही महसूस करता है।
लेकिन बस इसी में लगे हुए है और सासों की पूंजी को खतम कर दे रहे हैं. आप बहुत से लोग इसमे सत्संगी हो पुराने सत्संगी गुरुमहाराज के समय के इसमें काफी लोग हो आप ये देखो अपनी अपनी सासो की पूंजी का उपयोग कितना किया। और अगर नही कर पाये परमार्थ की कमाई मे तो अब करा लो।
सुबह का भूला हुआ शाम को घर अगर वापस आ जाता है तो भूला नहीं कहलाता है। देखो, आलस आदमी का क्या है आलस आदमी का है दुश्मन।
एक महात्मा जी थे जा रहे थे। जो माहत्मा होते हैं सयंमी होते है, त्यगी होते हैं। किस चीज के त्यागी होते हैं ?
नभ्या और जिभ्या के स्वाद के ।
घर मे आदमी रहता है इच्छानसुसार बनवाकर खाता है, घर मे आदमी रहता हे तो ऐसे इच्छज्ञओ की पूर्ती करता है। लेकिन जो घर त्याग देते है निकल पड़ता है समझलो कि उसको ये निश्चित नहीं रहता है कि घर मे जो चीजें मिल रही बाहर मिलेंगी।
तो ऐसे लोग कौन होते हैं त्यागी तपस्वी होते हैं, ऋषि मुनि होते हैं, संत महात्मा होते हैं. इनका काम अलग अलग होता है जो घर त्याग करके यानी समझलो जाते थे तो वो लोग तपस्या करते थे अपने आत्मा के लिए कुछ करते थे। मन की शाति के लिए करते थे।
महात्मा जी रहे थे शाम होने का यानी की दिन डूबने का समय हो रहा था। तो एक था दुकान दार। अपनी दुकान से उस समय ग्राहक चले गये थे कोई नही था तो बाहर निकला। बैठै बैठे उब गया था बाहर निकला तो देखा महात्मा जी आ रहे हैं, गया पैर छुआ और हाथ जोड़ा कहा महाराज, आज हमारे यहां ही रुक जाओ। हमारा ही आतिथ्य स्वीकार कर लो।
रसायन को घोट करके जब तैयार कर लेते हैं तो कई महीने तक वो काम आ जाता है । तो हमने कहा भाई ये रसायन हो गया ? अमृत हो गया, ऐसे हंसकर के कहा अपने भोले पन में साधारण उसमे यानी समझ लो हमने कहा.
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