*जयगुरुदेव : साधक विघन निरुपण 6*

*24.【 गुरु का त्याग 】*

◆ साधक बाहर की परेशानी से गुरु को त्याग देता है और यहां तक देखने में आता है कि उसी गुरु का विरोधी बनकर पूरी मुखालफत करता है । यहां तक की बहुत से लोगों ने महात्माओं के प्रति झूठी गवाहियां भी कचहरियों में दीं।


*25.【 गुरु का पथ अपनाना सरल नहीं 】*

◆ साधक की ताकत नहीं है कि अपनी करनी से मुड़ जावे, साधक को गुरु का सहारा पूरा लेना होगा वरना हर प्रकार के विघ्न सतावेंगे। हो सकता है कि साधक गिर जावे। गुरु का सहारा है तो साधक नहीं गिरेगा।

◆ साधकों! गुरु का पथ अपनाना सरल बात नहीं है। तुम्हें जब गुरु अपने होंगे उसके पूर्व कुर्बानी करनी होगी। कुर्बानी यह है कि इन्द्री दमन करना होगा। मन दमन करना होगा, शरीर सुखाना होगा और गुरु  चरणों पर अर्पण करना होगा।

◆ जिस साधक को इस तरह की कुर्बानी करनी और अपना तन, मन गुरु पर चढ़ाना है वही साधक परमार्थ के काबिल है।

◆ कुछ महात्माओं की मिसालें मिली हैं। साधक महात्मा के पास गए और अपने बच्चों को साथ ले गए। कुछ दिन महात्माओं की संगत में रहे। सतसंग किया। जब दुनिया की आंधी आयी तो भाग कर अलग हो गए।

◆ ऐसे साधक नहीं वह तो निपट धोखेबाज हैं, महात्मा को भी धोखा देना चाहते हैं। आये नर्क को चले गये।

◆ ऐसे जीव को न तो यहां सुख है और न बाद मरने के। यहां भी दुखी हैं और बाद मरने के तो निश्चय नर्क में जावेंगे।

◆ जब साधक यहां संसारियों सत्संगियों की झड़प नही सह सकता है और यहां आसक्ति का  त्याग नहीं कर सकता तो क्या यह राज्य त्याग देगा? असम्भव है।

◆ यदि साधक मालिक के पास पहुंचना चाहता है तो उसे खुलकर नाचना होगा।


*26.【 जिज्ञासा नही 】*

● मालूम होता है कि साधक में प्रेम के मिलने की खोज पैदा नही हुई इसी कारण महात्मा के पास जीव आये और खाली रह गये।

● क्या वह साधक बनेंगे जिनके अन्दर संसारी चाहें भरी पड़ी हैं और उन्ही चाहों को पूरा करने हेतु वे महात्माओं के पास वर्षों पड़े रहते हैं। और जब चाहें पूरी नही हुईं तो अपना रास्ता बन्द करके चले जाते हैं। 
यदि सतसंग में पड़े रहते तो दोनों आशा पूरी हो जाती। संसारी चाहें तो कुछ दिन में पूरी हो ही जाती और परमार्थ मुफ्त मिल जाता।

● साधक को चाहिए कि जब गुरु के पास जावे तो संसारी इच्छा लेकर न जायें। इसी वजह से हम महात्माओ को नहीं पहचान पाते हैं।

● एक तरह से यह देश साधको के लिये मुफीद है। पर यदि अमेरिका जैसा यह देश बना दिया जावे तो लोगों को फुरसत मिलना मुश्किल है। फिर और भी नास्तिक पैदा हो जावेंगे।

● स्त्री-पुरुषों को चाहिए कि महात्मा से केवल भगवान से मिलने का रास्ता मांगें और कोई याचना ही न करें, पर संसारी स्वभाव से मजबूर हैं।

● जब साधन में बैठते हैं तो वही इच्छा की पूर्ति मांगते हैं। बताओ साधन में अनुभव हो तो कैसे हो ?

● साधक का शरीर हमेशा अकुलाता रहता है। जब तक खून में अकुलाहट है तब तक साधक साधन नही कर पायेगा। साधक को चाहिए कि खून को सुखा दे और फिर से खून पैदा करे। इसलिए गिजा शुद्ध हो और तामसी भोजन से सदा बचना चाहिए।

● साधक को ऐसी हालत जो ऊपर बयान की है, आयेगी। पर गुरु चरणों का आशिक साधक रहेगा तो विघ्न नहीं सतावेंगे।

● जब साधक में समाधान आ जावे उस समय यह करना चाहिए कि जब गुरु के बताये साधन में बैठे उस वक्त अपने शरीर को भुलाने की कोशिश करना चाहिए।

● ध्यान की प्रक्रिया तभी सिद्ध होगी जब साधक सब वासनाओ से उपराम होगा। वैसे तो साधन में कुछ न कुछ प्राप्त जरूर होगा परन्तु एक रस नही रहेगा।

● उसका कारण अपनी स्थिरता पर निर्भर है। जैसे-जैसे साधक अपने भाव के अनुसार आंखों के पीछे के भाग पर स्थिर होगा वैसे ही अपने को टिकाता जावेगा और अन्तर का रस  उतरना शुरु होगा।



*27. 【 साधक के गिरने के मार्ग】*

★ साधक को आपस में बहुत होशियारी के साथ बर्तना जरुरी होगा। साधन करते समय हर भावों की ओर देखना होगा। कारण यह है कि साधक कहीं गिरने का रास्ता तो तैयार नहीं करता है?

★ साधक जब कभी गिरता है तो अपनी कमी के आधार पर गिर जाता है तथा रास्ता छोड़कर गिरने के ओर रास्ते में चला जाता है, और सदा गिरता रहता है। फिर साधक का उत्थान नही होता है।

★ साधकों को हर वक्त होशियार रहना जरूर होगा। कारण जब तक साधक गुरु की दया की ओर देखता है तब तक गिरने का प्रश्न नही और जब साधको की ओर देखना शुरु करता है तो जरूर गिरेगा।

★ कारण हर वक्त साधकों में कमी है। दूसरे साधक जब उस कमी को देखते हैं तो एक तरह का अभाव उसके प्रति आता है, और जब वह साधक दूसरे साधक की कमी जाहिर करेगा तो दूसरे साधक को गुस्सा आवेगा। इस अवस्था में आप में राग द्वेष पैदा होगा।

★ गुरु के शब्द बिसरने पर ही आपस में द्वेष फैल जाता है। साधकों तुम सब गुरु की ओर देखो, और गुरु के शब्दों को याद करो।


*28. 【 बचने का उपाय】*


★  सुरत शब्द की कमाई चाहते हो तो आपस के राग द्वेष को दूर करके सुरत को शब्द के साथ जोड़ो। शब्द चेतन है वह तुम्हारी कमी को जान रहा है। शब्द जब ही तुम पर विश्वास करेगा जब तुम सच्चे होकर कमाई में लगोगे।

जयगुरुदेव ★  
शेष क्रमशः अगली पोस्ट  no. 07  में...

Parmarthi vachan sangrah
sadhak bighan nirupan 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ