*जयगुरुदेव : साधक विघन निरुपण 7*

Jai GuruDev

*29. 【 शब्द की महिमा 】*


■  शब्द हर भाव में सफाई और सच्चाई चाहता है।

■  शब्द को बनावट पसन्द नहीं है। जिसमें बनावट आई कि शब्द सुनाई देगा ही नही ।

■  शब्द की ताकत तमाम ही ब्रह्माण्ड को अपने अधीन होकर चला रही है।


*30. 【 सुरत का उतार और फंसाव 】*


◆ सुरत इसी शब्द के द्वारा उतरती हुई सत्तलोक से आई है और रास्ते में इसने अपना आपा धारण किया है। अब आंखों के पीछे आकर जड़ मिलौनी में फंसी है और आंखों के ऊपरी भाग में अंधकार आ गया है।

◆ अब सुरत को अन्तर में कुछ दिखाई नही देता है। इसमे अज्ञान है और अपने सच्चे सत्तलोक के रास्ते को भूल गई।


*30. 【 मार्ग पाने की कठिनाई 】*


◆ यदि कोई मनुष्य दुनिया के रास्ते को भूल जाता है तो उस वक्त उसे हजारों आदमियों से पूछना पड़ता है तब जाकर सही रास्ता मिलता है।

◆ मालिक से मिलने का रास्ता तो ऐसा है कि जिससे पूछो वह भी नहीं जानता है। बताओ तुम्हें कैसे परमात्मा का रास्ता मिले और कैसे प्रभु के पास पहुंचोगे ?



*31. 【 गुरु की जरुरत 】*


● भूले लोगों को समझाया जाता है कि तुम सन्त सतगुरु की तलाश करो। जो गुरु उस भगवान के पास तक पहुंचा हुआ हो वह तुम्हें जरूर प्रभु के पास पहुंचा देगा।


*32. 【 जिज्ञासा 】*


● खोज करने से लोगों को सतगुरु मिल सकता है। बगैर खोज के तो तुम्हें संसार की चीज बाजार में नहीं मिलती है। अपनी जरूरत की चीज के वास्ते दस दुकानदारों से पूछना होगा और उसके लिये हमें समय खर्च करना होता है।

● शरीर से बहुत मेहनत करनी पड़ती है तब वह दुकान मिलती है और हम उसके पास पहुंचकर दीन अवस्था में मांगते हैं। दुकानदार तुम्हारी जिज्ञासा को देखता है और समझता है कि हमारे मांगे पैसे देगा या नही। 
जब समझ लेता है कि रुपया देगा उस वक्त अपनी चीज दिखाता है और तुम खुशी के साथ लाकर अपने घर में सजा कर रखते हो। 

● तुमने साधक बनकर कितनी तलाश की गुरु की और उसके पास कितने ख्वाहिशमन्द रहे?


*33. 【 ओछी समझ 】*


● साधक की गल्तियों का पहाड़ हो और अपनी गल्तियां दूसरों पर लादता हो तो वह साधक, साधक नही है, नादान है। उसकी समझ ओछी है।

● साधक अगर अच्छी समझ लेकर परमार्थ में निकलेगा तब तो महात्मा की तलाश कर सकता है वरना समझ का न होना नादानी है।

●  साधक गुरु के पास आता है तो भगवान को नही मांगता है। वह तो संसारी वस्तुओं को मांगता है, इसलिए उसे परमार्थी नहीं समझना चाहिए। उसको संसारी कहते हैं। पर यदि सत्संग में पड़ा रहा तो शायद समझ में आ जावे।


*34. 【 सुरत का अस्तित्व 】*


● साधक सुरत अपने अस्तित्व को भूल चुकी है इसे अपने सत्ता की खबर नही है। ताकत का जौहर सुरत के अन्दर मौजूद है। पर जब तक सतगुरु की प्राप्ति न होगी तब तक सुरत की सूक्ष्म शक्ति नही जागेगी। 
सुरत प्रकाश का भण्डार है। पर सुरत क्या करे? सुरत के प्रकाश से मन रचना करता है और इन्द्रियों के स्वभाव को खींच लेते हैं। भोग अपनी ओर इन्द्रियों को खींच लेते हैं। इस तरह से सुरत अपने प्रकाश को जड़ पदार्थों के साथ मिला चुकी है।

● जब सतगुरु पावे और उनके उपदेश को ग्रहण करे तब कहीं यह विचार आवे कि मैं मन, तन और भोगों के साथ फंसा हूं। और कोई सामान हमारे काम नहीं आवेगा। आखिर हम इस संसार से निराश और खाली जायेंगे।


*35. 【 गुरु से मार्ग प्राप्ति 】*


● जब गुरु का शब्द सुने तो साधक की बुद्धि अपना विचार त्याग कर गुरु विचार के साथ होकर मजबूत हो जाती है तब बुद्धि में विवेक आता है बुद्धि सत्य असत्य का निरुपण करती है। 
उस वक्त आत्मवेदना प्रारम्भ हो जाती है। तड़प और विवेक के साथ गुरु चरणों में लगा दी जाती है। उस अवस्था में गुरु अपना मन्तव्य देता है तब साधक उस साधन की प्रक्रिया में लग जाता है। 

● साधक आराम चाहता है और चाहता है कि गुरु हर प्रकार से संसार का सामान दें और हमारी तकलीफें रफा कर दें।


*36. 【 सुख और उसकी प्राप्ति 】*


● साधक को समझना होगा कि सुख अपने कर्म अनुसार ही मिलेगा। गुरु तो अपनी कमाई में से दान करता ही रहता है। पर हम उसका दान लेने के हकदार हों और उस दान का पूरा लाभ उठा सकें तब संसारी आदमी अपनी कमाई में से देता है,  पर दिया हुआ दान चन्द ही दिन रहता है। इस वास्ते साधकों कमाई करो।

● लोक और परलोक की कमाई करनी होगी तभी लाभ होता है। सन्त जन अपनी कमाई में से कुछ देते हैं। पापी आदमी को भी विश्वास दिला देते हैं कि भगवान की सत्यता है और अन्तर में अनुभव कराते हैं।

● पर सन्त सतगुरु के दिए हुए परमार्थी धन में ही सन्तुष्ट नहीं रहना चाहिए। जो रास्ता गुरु ने दिया है और कमाई के वास्ते आदेश दिया है उसकी कमाई करना चाहिए। तब साधक गुरु का दिया हुआ परमार्थी धन रख सकेगा। नहीं तो उतना ही अनुभव करके रह जावेगा और जब मलीन परदा किसी समय आवेगा उस वक्त साधक गुरु की प्रीति और परतीत से अविश्वास लाकर गिर जावेगा और दूसरों से शिकायत करेगा कि मुझे कुछ प्राप्त नहीं हुआ। 
मालूम होता है कि गुरु पूरा मुझे नहीं मिला।

● साधक इस अवस्था में किसी दूसरे महात्मा के पास पहुंचेगा और उसी धन को पाने की भीख मांगेगा। न साधक ने पहले गुरु से पाया, और न दूसरे से पा सकेगा।

● साधक को अभाव हो गया। गुरु रास्ता के साथ इस अभाव का फल साधक को होगा।

● परमात्मा के रास्ते का अभाव साधक पर आ गया तो साधक परमात्मा की ओर अग्रसर नहीं हो सकता है।

● यदि साधक कपटी है और गुरु के पास पहुंचकर कपट करता है तो यह सत्य है कि सारी उमर गुरु के पास रहकर भी कुछ नहीं पा सकता है।

● गुरु जानकार शक्ति है। क्षण क्षण पर विश्वास लाकर भी साधक गुरु के प्रति अविश्वास की स्वांस खींचता रहे तो साधक का कल्याण नहीं होगा।

जयगुरुदेव
शेष क्रमशः अगली पोस्ट  no. 08  में...
https://www.amratvani.com/2019/12/satguru-ki-parmarthi-salah.html 

Parmarthi vachan sangrah
sadhak bighan nirupan 


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