जयगुरुदेव : याद रखो गुरु के वचन 10*

★ अमृत वाणी ★ 

*1>*  सदा अपने हृदय को जांचते रहो,  कहीं उसमें काम, क्रोध, बैर, ईर्ष्या, घृणा, हिन्सा-मान और मद रूपी शत्रु घुस कर घर न कर लें। 
इनमें जिस किसी को देखो तुरन्त हटाने का प्रयत्न करो और इनको मार कर भगा दो। 

पर देखना बड़ी बारीक निगाह से सचेत होकर।  वे चुपके से अन्दर आकर छुप जाया करते हैं और अवसर पाकर अपना विकराल रूप प्रकट करके जीव के ऊपर आक्रमण करते हैं।

*2>*  किसी के बुरे आचरण को देखकर उसे पापी मत मानो बल्कि उसका मित्र और हमदर्द बनकर उसके भविष्य के बुरे आचरणों को निकालने का प्रयास करो। 

हो सकता है उस पर मिथ्या दोषारोपण ही किया जाता हो और वह उससे अपने आप को निर्दाेष सिद्ध करने की परिस्थिति में पड़कर अनिच्छा से कोई बुरा कर्म कर लिया हो, परन्तु उसका अन्तःकरण तुमसे अधिक स्वच्छ हो।

*3>*   इस संसार में सभी सराय के यात्री हैं। थोड़े से समय के लिए एक जगह टिके हैं। सभी को समय पर यहां से चल देना है। घर, धन, पुत्र, स्त्री आदि किसी के नहीं हैं।
फिर इन नापाएदार वस्तुओं के लिए किसी से लड़ना नहीं चाहिए।

*4>*  जगत जड़ अपना कुछ भी नहीं है। हमारी जड़ बुद्धि ही हमें जड़ के दर्शन करा रही है। 
असल में जहां देखो वहीं वह परम सुख स्वरूप नित्य चेतन भरा हुआ है। तुम हम कोई इससे भिन्न नहीं हैं। पर यह सृष्टि सबकी नहीं हो सकती। 

जिन्होने मन, वचन, कर्म से बुरा करना छोड़ दिया और अन्तर अभ्यास करके जिसने अपना शिवनेत्र खोल के प्रभु के प्रकाश का अभ्यास किया उसी जीव की सम  निगाह सबके ऊपर हो सकती है।

*5>*   पराये पापों के प्रायश्चित की चिन्ता न कर,  पहले अपने पापों का प्रायश्चित करो। 
किसी के दोष को देखकर उससे घृणा न करो और न उसका बुरा चाहो। यदि ऐसा न करोगे तो उसका दोष न  मालूम कब दूर होगा। 
बराबर प्यार भाव करो और समझाते रहो। यदि तुम्हारी समझौती से न माने तो तुम उससे कम मिलना करो वह अपने किये का फल आप पायेगा।

*6>*   प्रभु को साथ रखकर काम करने से ही पापों से रक्षा और कार्य में सफलता होती है।

*7>*  बैरी अपना मन ही है इसे जीतने की कोशिश करनी चाहिए।

*8>*   स्वयं पापों को देखते रहो और उन्हे जो अपने प्रिय मित्र और गुरुजन हों उनसे कह डालो। यह पापों से छूटने का एक मुख्य उपाय है।

*9>*   जो लोग देवी, देवता, राम, कृष्ण, ईश्वर आदि का सहारा लेकर पाप करते हैं । जो नित्य पाप करके कीर्तन नाम आदि से उन्हें धो डालना चाहते हैं उन्हें तो सदा नीच बुद्धि वाला समझो। उनके पाप यमराज भी नहीं धो सकते हैं।

*10>*  पाप नाश तो प्रायश्चित या फल भोग से ही जाता है। क्षणिक नाशवान भोगों की परवाह ही न करो। उनके मिलने या न मिलने से हानि ही क्या है? 
दुख सुख सदा प्रारब्ध से ही आते हैं। अतएव दुख अज्ञानता से भी आ जाता है, और दुख ज्ञान से भी दूर हो जाता है।

*11>*  यह भी मत भ्रम करो कि पाप प्रारब्ध से होते हैं। पाप होते हैं आसक्ति से और उनका पूरा फल तुम्हें अवश्य भोगना पड़ेगा।

*12>*  महा प्रभु परम दयाल पर पूरा विश्वास रक्खो। उसके विश्वास करने से ही तुम दुःख की आपत्तियों से बच सकते हो। जिनको उस परम दयालु प्रभु का भरोसा है वे शोक रहित, निर्मोह और प्रतिदिन निर्भय रहते हैं।

*13>*  बड़ाई चाहने वाले ही अपमान से डरते हैं। बड़ाई का बोझा मन से उतरते ही मन हल्का और निर्भय हो जाता है। शरीर का नाश होना यथार्थ में मृत्यु नहीं है।

*14>* किसी को गाली न दो, वृथा न बोलो, चुगली न करो, झूठ न बोलो, सदा कम बोलो और हर शब्द को सावधानी से उच्चारण करो। 

*15>*  औरों की त्रुटियों और कमजोरियों को सहन करो। तुममें भी बहुत सी त्रुटियां हैं जिन्हें दूसरे सहन करते हैं।

*16>*  किसी को पापी समझकर मन में अभिमान  न करो कि मैं पुण्यात्मा हूं। जीवन में न मालूम किस वक्त कैसा कुअवसर आ जाये और तुम्हें उसी प्रकार पाप या दुख के कर्म करने पड़ें।

*17>*   यदि तुम समय पर आत्मचिंतन न कर सको तो कम से कम दिन में तीन बार सुबह, शाम और दोपहर में अन्तर अवश्य टटोल लिया करो, तो तुम्हें मालूम होगा कि दिन भर में तुम परमात्मा और जीव के प्रति कितने अपराध करते हो।

*18>* धनियों के बाहरी वैभव को देखकर लोग समझते हैं कि यह सब बड़े सुख में जीवन व्यतीत करते हैं। पर तुम उन धनियों को देखकर भूल रहे हो, धनियों का तुमने कभी हृदय टटोला है? 
उन्हें (गुरु को ) मालूम है कि धनी दुखियों की अपेक्षा कम दुखी नही हैं। दुख के कारण और रूप भिन्न भिन्न होते हैं।

*19>*   स्त्री सुख, धन सुख, पुत्र सुख की कभी चाह मत करो। आशा करो उस परम प्रभु की जो एक बार मिल जाने पर कभी जुदा नही होता है। 
धन, पुत्र, स्त्री से सुख नही है, क्योंकि धन, पुत्र, स्त्री आज हैं और कल नहीं रहेंगे। सच्चा और महासुख प्रभु का है जो सदा रहता है।

*20>*  संसारी सम्पत्तियां या मित्रों को पाकर अभिमान न करो, जिस प्रभु ने उन्हें ये सबकुछ दिया उसका शुकर करो और शाम सुबह उसे मत भूलो।

जयगुरुदेव
शेष क्रमशः अगली पोस्ट  no. 11  में...

Parmarthi vachan sangrah  
yad rakho guru ke vachan

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