【 *महाराज जी के सत्संग से* 】

*!! जय गुरु देव !!*


बाबा जयगुरुदेव आश्रम, पिंगलेश्वर रेलवे स्टेशन के सामने, मक्सी रोड, उज्जैन (म.प्र.) में ज्येष्ठ पूर्णिमा 20 जून 2016 को प्रातःकाल 5 बजे  प्रार्थना, सुमिरन, ध्यान, भजन कराने के बाद सत्संग सुनाते हुए-

*परम् पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज  ने कहा:-*
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गुरु महाराज की अपार दया से आज पूर्णिमा के दिन आप सभी को कई हजारों की संख्या में सामूहिक ध्यान-भजन करने का सुअवसर मिला। 

जब साधक पर मालिक की दया की धारें उतरती हैं तो वह पास बैठे हुए प्रेमी में भी प्रवेश कर जाती हैं। दया जब होती है तो माल लुटाया जाता है। इसलिए आप लोग इकट्ठा होकर साधना करने की आदत डालो।

जो लोग आश्रम पर रहकर भी सामूहिक साधना में भाग नहीं लेते, वे अपना बहुत बड़ा नुकसान करते हैं। जो भजन नहीं कर सकता, वह सेवा भी नहीं कर सकता। सेवा करता भी है तो इसलिए करता है कि हमारा नाम हो जाये, कोई स्वार्थ पूरा हो जाये। 

(पूज्य महाराज जी ने कहा कि) 
जिससे प्रेम हो जाता है तो फिर उसके अवगुणों को लोग नहीं देखते हैं। जिस मंदिर में मूर्ति नहीं भी हो तो भी श्रद्धाभाव के कारण मंदिर को तोड़ा नहीं जाता। ऐसे ही आत्मा के निकल जाने पर भी मृृतक शरीर को जलाने का प्रायश्चित कई दिनों तक धार्मिक अनुष्ठान (पूजा-पाठ) करके किया जाता है।

सन्तों का बड़ा महत्व होता है, इसलिए हर पन्द्रहवें दिन या महीने में लोग दर्शन व सत्संग के लिए उनके पास जाते थे। भण्डारे का प्रसाद लेते थे। 
महात्मा स्वाद लेते नहीं, साधक को भी स्वाद नहीं करना चाहिए। स्वाद लेने वालों का भजन नहीं बनता।

महाराज जी ने बताया कि एकादशी और पूर्णिमा के दिन को लोग बहुत अच्छा मानते हैं। ऐसे ही कुछ और दिन होते हैं जैसे गंगा दशहरा.....।
सन्त सीख देते हैं। संसार में कोई भी नियम कानून बनते हैं तो बुद्धिजीवी उसका शोधन करते थे, रिफाइन करते थे और उसमें कोई कमी रह जाती थी तो उसका उपाय किया जाता था। जैसे यात्रा में जाते समय दिशा षूल का ध्यान रखा जाता है।


महाराज जी ने शाकाहार का प्रचार करते रहने का आदेश दिया और कहा कि संतमत खतम ना हो जाये, इसके लिए आपको मेहनत करनी पड़ेगी। संतमत में साधना की सफलता के लिए मन को थकाने का उपाय किया जाता है। 

प्रचार करोगे, सेवा करोगे तो मन थक जायेगा। गुरु महाराज कहते थे कि उसको भजन में जोड़ दिया जाता है।
समय बेकार मत करो। जो आज करना है उसको आज ही कर लो। कल यह शरीर साथ दे ना दे। ये कोई जरूरी नहीं है कि जो सेवा आज मिल रही है वो कल भी मिले।

हमको तो नामदान देना ही देना है। आप चाहो न चाहो हमको तो नामदान देना ही देना है। गुरु का हमारे आदेश है। गुरु महाराज के आदेश का पालन कर लोगे तो आपको बाहर भी लाभ और अन्दर भी लाभ महसूस होगा।
सतगुरु जिसको पकड़ते हैं तो उसको छोड़ते नहीं पार तो जरूर करते हैं।


(महाराज जी ने कहा कि)
 जैसे कोई पत्थर पानी में पड़ा हो तो यह तो ठीक है कि संसार की तपन से बच जायेगा लेकिन बहुत समय तक नदी तालाब में पड़े रहे तब भी पत्थर के पत्थर ही रहे। यानी अन्दर की जड़ता नहीं गई।  
सत्संगियों को बरकत तो मिली यानी पैसे की कमी तो नहीं है लेकिन बीमारी नहीं जा रही है। इसका कारण क्या है कि खान-पान का ध्यान नहीं रखने से बीमारियां आ जा रही हैं।


उन्होंने आगे कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सा में दवाइयों के साथ परहेज बताया जाता है जैसे खटाई खा लोगे तो दवा काम ही नहीं करेगी। ऐसे नामदान लेने के बाद अगर शाकाहारी रहने और नशे से दूर रहने का परहेज नहीं निभाओगे तो असली फायदा नहीं मिलेगा।


देखो!  मैं इस बात की गारन्टी देता हूं कि आज पूर्णिमा के दिन शराब नहीं पीने का संकल्प बना ले, मरोगे नहीं। यह मत सोचो कि ऐसा पानी पीता कि खुदा भी नहीं जानता। याद रखो, जो कुछ भी तुम कहते व करते हो, उसको वो मालिक देख रहा है, सम्हलोगे नहीं तो सजा मिल जायेगी और हिन्सा हत्या बन्द करो। हत्या बढ़ी तो भूत चैन से जीने नहीं देंगे।


महाराज जी ने कहा कि जब-जब औरतों पर कुदृष्टि गई तब-तब देश दुनिया में भारी नुकसान हुआ। जब त्रेता में सीता जी पर कुदृष्टि डाली गई तो राम-रावण युद्ध हुआ, रावण मारा गया, द्वापर में द्रोपदी पर कुदृष्टि डाली गई तो महाभारत हुआ।
महात्मा बहुत होशियार होते हैं।

डल्ला एक भक्त हुए। उनके वक्त में एक भैंस पहाड़ पर से पैर फिसलने के कारण गिरकर मर गई तो उसकी मालकिन बुढ़िया चिल्लाई कि डल्ला बाबा मेरी भैंस बचा दो। मालिक की दया हो गई और थोड़ी देर में भैंस जिन्दा हो गई। 

जब उसे लेकर डल्ला के घर के पास से चुपचाप जाने लगी तो डल्ला बोले कि भैंस मरी तो चिल्लाई, अब बोल भी नहीं रही। ये दुनिया है। दुनिया क्या चाहती है, दुनिया दुनियादारी चाहती है।

वही डल्ला दुनियादारी में जब साधना की कमाई लुटा चुके और जब गिरे चारपाई पर तो तकलीफ में गुरुभाई को बुलावा भेजा तो उसने कहा कि जो कमाई थी वो तो तूने खर्च कर डाली। अब तेरे पास बचा ही क्या है? फिर भी गुरु महाराज को याद करो। वो दयालु हैं दया करेंगे। 

*सत्संग की बड़ी मांग है।  जहां जब जिसको मौके मिले, पहुंच जाना चाहिए।*


जयगुरुदेव

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