जयगुरुदेव
सब तीरथ गुरु चरणन माहीं ।
चरण परस कलि मल धुल जाहिं ।।
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समय निकल रहा है, कौन जाने फिर समय मिले या ना मिले ! यह सारा चक्रव्यूह तुम्हारे मन का ही है ।
ध्यान देना, जीवन भागा जा रहा है, समय बीतता जा रहा है ।
सुबह 5:00 बजे ही तुम्हें उठना पड़ जाए तो कितनी कठिनाई हो जाती है । मन इंकार करता है तो शरीर बगावत कर देता है ।
कहता है उठ जाएंगे, अभी क्या जल्दी है ? वैसे भी आज सर्दी बहुत है ।
सोने से कुछ मिलता भी नहीं, फिर भी सुखद लगता है मन को । तब तुम्हें उस सुख का पता नहीं चलता जो बाहर सूरज के रूप में ऊग रहा होता है । सुबह की ओंस का आनंद कैसे मिलेगा ? जो आनंद सुबह के होने से है, वह आनंद बिना उठे तुम्हे कैसे मिलेगा ?
जो सुबह को चूक गया, वह पूरे दिन में सुबह वाली ताजगी का अनुभव नहीं पा सकेगा । लेकिन तुम्हारा मन कहता है कि थोड़ी देर और मूर्छित पड़े रहो । कल के अमृतवेला में जाग लेंगे, आज क्या खास बात है ?
महापुरुष फरमाते हैं कि कष्ट से गुजर कर ही कोई महासुख तक पहुंचता है ।
संयम और समर्पण की भट्टी में तपकर ही तुम्हारे वजूद का सोना निखरता है ।
दुख से तुम गुजरते हो तो बेमन से गुजरते हो । जब तुम दुख को भी अंगीकार करके अपना मार्ग मान लोगे, तब सुख सामने प्रत्यक्ष हो जाएगा ।
दुख से सभी गुजरते हैं, संसारी भी और सन्यासी भी ।
जो अपने सतगुरु के वचनों पर अमल कर लेता है वही कृपा - दृष्टि का भागीदार बनता है ।
जयगुरुदेव ●
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Jaigurudev