कहानी संख्या 8.
एक फकीर थे, प्रेमियों को सत्संग सुनाकर रास्ते पर लगाते थे। उनके हिन्दु, मुसलमान सभी शिष्य थे। कुछ समय बाद एक मुसलमान आया और दूसरे मुसलमान शिष्य से कहा कि तू यहां क्या फंसा है? चल काबा में खुदा का घर है। वहां चल।
तो उस शिष्य ने उसकी गर्दन पकड़कर कहा कि- यहां खुदा का खुदा रहता है। यहां पर ही रहो। वह बड़ा नाराज हुआ। फकीर साहब आये तो शिकायत किया कि इससे मैं कहा कि काबे में खुदा का घर है चलो वहां दर्शन कर आओ तो यह नाराज हो गया।
फकीर साहब ने मुरीद को बुलाकर हुक्म दिया कि इनके साथ जाकर खुदा के घर को देख आओ। अब उसे फकीर का हुक्म हो गया तो जाना ही था।
दोनों चले तो समुद्र में जहाज पर चढ़कर चले रास्ते में तूफान आया और जहाज डूब गया।
वह मुरीद एक पटरे को पाकर उसी पर चढ़ गया। वह उसी पटरे पर लहरों में बह रहा था तभी एक हाथ निकला कि मैं खुदा हूं। हाथ पकड़ ले तो में तुझे निकाल दूंगा। तो मुरीद ने कहा- नहीं। हम तो अपने गुरु को ही जानते हैं और किसी को नहीं जानते।
तब फिर कुछ देर के बाद एक और हाथ निकला और आवाज आई कि मैं गुरु का गुरु हूं, दादा गुरु हूं। मेरा हाथ पकड़ लो मैें बचा लूंगा। पर मुरीद ने कहा कि मैं तो दादा गुरु को जानता नहीं। मैं तो बस अपने गुरु को ही जानता हूं।
तब उसके गुरु प्रकट हुए और कहा कि चलो आओ- तुम परीक्षा में पास हुए तो प्रेमी निकल आया।
कहने का मतलब यह है कि
*सच्चा मुरीद है तो बेड़ा पार है और कच्चा शिष्य है तो बेड़ा गर्क है।*
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शाकाहारी पत्रिका 7 से 13 जुलाई 2013
जयगुरुदेव ★
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Jaigurudev