*एक बार परख लिया फिर बार-बार क्या डांवा डोल होना*
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एक फकीर पहाड़ों की गुफा में रहा करते थे। बहुत समय से साधना कर रहे थे साधना करते करते उनको सिद्धि प्राप्त हो गयी। सिद्धि प्राप्त होने से क्या हुआ कि वो जो कुछ कहते सिद्धियां कर देती। उनके यहां आने वालों की भीड़ जमा होने लगी।
साधना करने वाला साधक होता है और अगर वह गिरने वाला हो तो महात्मा सम्हाल लेते हैं। सन्तमत के रास्ते में ये सिद्धियां विद्धियां कुछ नहीं। सन्त मत की साधना उल्टा है। जिधर से आये हो उधर उलट जाओ। अभी तो आप पीठ किये हो।
तुम इसी दुनिया में जकड़े हो। जरा सा इधर आप ठोकर मारो। इतनी चेतावनी के बाद भी तुम इसी में जकड़े हुए हो।
सार तो तुम्हारे अन्दर है। जब तक वहां नही जाओगे सार नहीं मिलेगा।
एक महात्मा जी उस फकीर की तरफ से गुजरे, उन्होनें फकीर को समझाया कि क्यों अपनी कमाई खो रहे हो ? आगे चलो। फकीर को बात समझ में आ गई और वो अपनी साधना में लग गए।
अब उनके यहां आने जाने वालों की कमी होने लगी क्योंकि उन्होंने अपनी शक्ति को खर्च करना बन्द कर दिया।
खाने पीने के प्रेमी सब होते हैं। गुरु प्रेमी तो कोई बिरला होता है। गुरु ने सच्चा नाम दिया कि इसी को पकड़कर तू अपने घर वापस चल। वासनायें झूठी हैं। जो चीज है नीरस है, नीरस रहेगी। यह सब आपका भ्रम है कि हमें रस मिलता है उसी में लगे हुए हो। अगर रस मिलता होता तो तुम निराश और दुःखी नहीं होते।
गुरु की महिमा कोई नहीं कर सका, न कर सकता है और न कर सकेगा। हमको यह जानने की जरूरत नहीं कि वो कौन हैं ? एक बार परख लिया फिर बार-बार डांवाडोल क्या होना। जो वह कहें वह करो लेना-देना पाप पुण्य का है। अगर कर्म नहीं हैं तो कोई कुछ नहीं कर सकता है।
सन्त सबसे छोटे होते हैं। उनसे छोटा कोई भी नहीं हो सकता। जीवों को उठाना है कीचड़ में से तो झुकना तो पड़ेगा ही। अगर ऊंचे गद्दों पर बैठ गए तो जीवों को कैसे उठा सकते हो ?
स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि अगर महात्मा चुप भी बैठे रहें तो कुछ न कुछ करते रहते हैं। वह जीवों का काम करते रहते हैं कि जब कभी इनको मनुष्य शरीर मिलेगा तो कोई न कोई महापुरुष मिल जाएंगे और इनकी जीवात्मा का काम होगा। ऐसा मत समझो कि वो खाली बैठे रहते हैं।
बहुत समय हो गया यहां रहते रहते, जन्मते मरते मन विकारों में उलझ गया। इसी के कारण तो जन्म और मरण हो रहा है। मन को जीतना है तो महात्माओं के पास जाना है, वो जो कहें वो करो। अपनी इच्छा से करोगे तो यह वश में नही होगा। निराधार है वह वश में नही होगा। उसको आधार चाहिए।
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एक आदमी मेरे पास आया और कहने लगा कि हमको नामदान दीजिए हम भजन करेंगे। उसको नामदान दिया। दो चार दिन भजन में बैठा फिर मेरे पास आया और कहने लगा कि भजन किया पर मुझे कुछ नहीं हुआ। मैंने उससे कहा कि तेरी वजह से कुछ नहीं हुआ। उसमें मेरा क्या? करेगा तो होगा। वह बोला कि इसमें मेरी गल्ती है।
मैंने कहा कि और भी कुछ है। मैंने उससे पूछा कि कभी कुछ गन्दी चीजें खाईं-पी क्या?
उसने कहा कि हम तो जन्म के शाकाहारी हैं।
मैंने कहा कि अगर तू शाकाहारी होता तो भजन का असर तेरे ऊपर होता। इतने में एक दूसरा आदमी मेरे पास आया और मुझसे कहने लगा कि महाराज मेरे देखते इसने सैकड़ों मुर्गे मुर्गी काटे हैं। यही तो बात है। बदला देना पड़ेगा। तू अपनी कमजोरी को छिपाये रहता है।
कहने का ये जो पहले कर रहे थे वही अब भी कर रहे हो तो क्या फायदा होगा? न लोक सुधरेगा न परलोक बनेगा।
बदल जाओ और घाट पर बैठो तो मालिक दया कर दे। गुरु की बात तो मानो, गम्भीर हो जाओ। संसार से उदास होकर अपने को बदल दो। उसकी दया होगी। करना कराना है तो कराने वाला कराएगा और करने वाला करेगा। शरीर तो नाश हो जाएगा पर आत्मज्ञान कभी नाश नहीं होगा।
जब आपको सब तरह की सुविधा थी तब तो आपने अपनी अनमोल वस्तु को फेंक दिया तो बाद में तो रोना ही पड़ेगा।
सतयुग में सब सुखी थे, सब सम्पन्न थे। उसी में फंसकर तो आपने अपनी अनमोल वस्तु फेंक दी तो अब क्या मिलेगा?
अब तो चारों तरफ से आप परेशानियों से घिर गए। काल के देश में अज्ञान ही अज्ञान है। चाहे जितनी आप पहलवानी करना चाहो, बुद्धि की पहलवानी कर लो पर यहां मिलने वाला क्या? राजाओं का वक्त था उनको क्या? लड़ाइयां करते रहे। जब उनको कोई फकीर मिल गया और समझाया कि तू क्या करता है? राजा तो प्रजा की रक्षा करने के लिए होता है। तूने खून खच्चर कर दिया उनको बात लगी और सबकुछ छोड़कर जंगल की ओर भागे।
महात्मा ने कहा कि जंगल जाने से कुछ नहीं होगा। महात्माओं की खोज करो और उनकी बात मानो। जब राजा ने यह किया तो महात्माओं की दया हुई और वह फकीर हो गया।
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जरा जरा सी चीज के लिए तुम रोते हुए मांगने चले आते हो कि 16 साल शादी के हो गए बच्चे नहीं हैं दया दे दीजिए।
जिसे बच्चे नहीं हैं वो रहे हैं। यह नहीं कि भाग्य से रास्ता मिल गया, गुरु मिल गए तो अपने जीव का काम करें। गुरु के चरणों में बहुत लाइट है। उसको पकड़कर काल को हरा दो वह अब कुछ नहीं कर सकता क्यूंकि तुम्हारे सारे कर्मोे को लाइट ने साफ कर दिया। शब्द है, वह पकड़ लो तो काल कुछ नहीं कर सकता। बाल-बच्चों के लिए मेहनत करो। चोरी मत करो। तराजू के नीचे बट्टा लगा लेते हो।
एक बार मैं आटा लेने गया, उसने तौला और कहा कि देखो पूरा तौला है। मैंने तराजू पलटकर उलट दिया और कहा कि यह क्या है?
कहने का ये कि बनते हो ईमानदार पर चोरों के भी चोर हो।
बहुत पैसे इकट्ठे किये पर हुआ क्या? कोई लूला हो गया, कोई लंगड़ा हो गया, कोई बात नही मानता। झगड़ा होता है और रोते हो।
हमारे गुरु महाराज कहते थे कि विद्यादान सबसे अच्छी सेवा है। अब उसमें भी चोरी होने लगी। व्यापार हो गया। अब पहले की वो बात नहीं रह गई। न वह शिष्य गुरु का नाता रह गया।
महात्माओं का बीज हमेशा रहेगा। आत्मकल्याण वो करते रहेंगे। अगर आप कहो कि यह नहीं हो सकता तो ऐसा नही है। आत्मकल्याण का काम चलता रहेगा।
*एक महात्मा जाएगा दूसरा आएगा इसका सिलसिला खत्म नही होगा। उसने रचना की है इतने बड़े बड़े लोक बनाये हैं तो वह कोई पागल थोड़े ही है। जब आप पहुंचोगे साधना करके तब आपको एक एक बात याद आयेगी कि कितने समय पहले मैं यहां से गया और कैसे इस दुनिया में फंसा? इसलिए भजन करो। खाली बातें बनाते रहोगे तो कुछ नहीं होगा।*
जो काम ले रहा है उसे सब मालूम है कि तुम क्या करते हो? मेहनत करोगे तो वह कैसे मजदूरी नही देगा। भजन में बैठो। अभी तुम लदे हुए हो। जब बैठने लगोगे तो धीरे धीरे खड़े होने लगोगे।
(शाकाहारी पत्रिका 7 से 13 जुलाई 2013)
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