● *जयगुरुदेव चेतावनी* ● 4.
मन माया इन्द्रियाँ सब तोहे लूट ले रहे हैं ।।१।।
जिनको मिला है सबकुछ वह भी तो रो रहे हैं ।।२।।
पर देख लो तुम्हे क्या गुरुदेव दे रहे हैं ।।३।।
पड़ जा शरण उन्हीं की ले लो जो दे रहे हैं ।।४।।
पछता के सामने से कितने ही जा रहे हैं ।।५।।
अब जा रही जवानी सब खोने जा रहे हैं ।।६।।
धन धान्य पुत्र कितने तोहे छोड़ जा रहे हैं ।।७।।
धोके भरम के चक्कर मे फंस के मर रहे हैं ।।८।।
पर आप मोह निद्रा मे सोते जा रहे हैं ।।९।।
गुरुदेव प्यारे सतगुरु तुमको बुला रहे हैं ।।१०।।
*चेतावनी १७*
अब गुरु का हो कर देख जरा।
गुरु भक्ति में कितना सुख है,
इस राह पर चल कर देख जरा।।
मन में खुशियां आ जाएगी।
सतगुरु के चरणों में अपने,
मस्तक को रख कर देख जरा।।
कईं जनम यहां बर्बाद किए।
सतगुरु के नामों की माला,
हर सांस पर जपकर देख जरा।।
झूठा भ्रम है तेरा मेरा।
क्या लाया क्या ले जाएगा,
यह सोच कर पगले देख जरा।।
भण्डार हैं सच्चे रत्नों के,
क्या सोच कर बैठा किनारे पर,
गहराई में आकर देख जरा।।
गाजर मूली पालक सब्जी खाकर जीना सीखो।
दूर होवे बीमारी छोड़ो अंडा मांस बनो शाकाहारी...।।२।।
चील कौवों गिद्धों का हक है किसने छीना।
पाप है यह भारी छोड़ो अंडा मांस बनो शाकाहारी...।।३।।
जीव तड़पता प्राण तड़पता आत्मा भी रोती है।
कहें जयगुरूदेव समझाई छोड़ो अंडा मांस बनो शाकाहारी...।।४।।
Guru ka dhyan kar pyare
नाम के रंग में रंग जा,
मिले तोहि धाम निज अपना ।।
बिना इस काज नहीं सरना ।
लाभ और मान क्यों चाहे,
पड़ेगा फिर तुझे देना ।।
वही फिर भोगना भरना ।
जगत के जाल में ज्यों त्यों,
हटो मरदानगी करना ।।
उन्ही को सूरमा कहना ।
बड़ा बैरी ये मन घट में,
इसी का जीतना कठिना ।।
और सबही जतन तजना ।
गुरू की प्रीत कर पहिले,
बहुरि घट शब्द को सुनना ।।
करे मत और कुछ जतना ।
हार जब जाय मन तुझसे,
चढ़ा दे सुर्त को गगना ।।
त्याग दे इसी को गहना ।
कहै स्वामी समझाई ।
गहो अब नाम की सरना ।।
गुरु ध्यान धरो तुम मन में,
गुरु नाम सुमिर छिन छिन में ।
गुरु ही फिर होय सहाई ।।
गुरु बिन कोई नाही पहुंचे ।
गुरु ही सुन्न शिखर चढाया।।
गुरु भंवर गुफा दरसाई ।
गुरु अलख अगम परसाया ।।
गुरु से सतगुरु स्वामी जाना ।।
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Jaigurudev