*स्वामी जी ने कहा*
★ तुमसे अधिक जल्दी हमको है। तुम्हारे बनने में देर हो रही है मुझे उठाने में देर नहीं है। तुम आज बन जाओ आज ही उठा दिया जाय। जल्दीबाजी में नुकसान हो जाएगा। जब तुम ही देर कर रहे हो तो हम क्या करें ? मैने सबके पीछे ऐसी पुड़िया बांध रक्खी है जिसे खोलने पर पता नही उसमें क्या-क्या निकलेगा ? महात्माओं के निशाने पर जो आ जाता है उसे वे छोड़ते नहीं।
★ नकली टाटवालों की बातों पर तुम विश्वास कभी मत करना। जिनमें सत्संगियों के गुण हैं और सत्संग वचनों के अनुसार जो आचरण करते हैं ऐसे टाटधारियों का साथ करने से तुम्हारा परमार्थी लाभ होगा।
★ ऐसे माहौल में जहां जीवन असुरक्षित हो परिवार और घर असुरक्षित हो शान्ति कैसे आ सकती है ? जब चारों तरफ व्यवस्था सही हो जाएगी तभी भजन हो सकता है। वैसे मन लगे या न लगे प्रतिदिन दरवाजे पर बैठकर हाजिरी अवश्य देना चाहिए। जिस दिन दया का ज्वार-भाटा आएगा काम हो जाएगा।
★ धर्म, हिंसा से सम्बन्धित नही होता। धर्म प्रेम, ज्ञान, प्रकाश व शक्ति से सम्बन्धित होता है। जो सेवादार हैं आज्ञाकारी हैं वे ही सन्त के सिपाही होते हैं। जो ऊपर से परमात्मा के मुख से वाणी निकल रही है और दोनों आंखों के दरम्यान आ रही है उसे पकड़ने वाला कोई कोई सिपाही होता है। ऐसे गुरुमुख पर एक क्षण में दया हो जाती है।
★ सत्संग में जो वचन कहे जाते हैं सब लोगों को चाहिए कि उन वचनों को मन से पकड़ लें। उनको भुलायें नहीं। सोख्ते की तरह वचनों को सोख लेना चाहिए। रहनी-गहनी, सुबह-शाम, उठना-बैठना, बोलना-चालना वचनों को पकड़के करोगे तो सब काम आपके बनते जायेंगे। जब वचन छूट गये तो इसी में झगड़ा करने लगते हैं फिर तूफान बाजी होती है।
*स्वामी जी का आदेश*
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जो कुछ सत्संग मेंं सुनाया गया है उसे सभी नामदानी स्त्री- पुरुष ध्यान रखेंगे और पालन करेंगे। साथ ही जो साधन भजन की युक्ति बताई गई है उसे हर रोज करते रहेंगे। यह ठीक है कि मन कभी लगता है, कभी नहीं लगता है, कभी भजन करने की इच्छा होती है कभी नहीं होती, इससे निराश नहीं होना चाहिए। सुमिरन नहीं करोगे तो मालिक का नाम और रूप भूल जाओगे। इसलिए हर रोज करो। इसके साथ ही बुराइयों की तरफ से थोड़ा होशियार रहना वर्ना लोक परलोक दोनों चला जाएगा। इसीलिए बुराइयों से बचे रहना।
तुम्हें अपने प्रारब्ध पर विश्वास नहीं। महात्माओं का विश्वास भी तुमने छोड़ दिया तभी तो मारे-मारे फिर रहे हो। अभी तक जो सामान इकट्ठा किये धन जायदाद, मित्र, बच्चे ये सब जड़ शरीर के लिए किया। दुःख का सामान जमा किया। चेतन आत्मा के लिए तुमने क्या किया ? यदि तुम महात्माओं से मिल लेते तो बता देते कि कौन सा सुख का साधन है और कौन सा दुख का। असली साधन को तो आप ने छोड़ दिया। छोटी सी अवस्था में जो आप कर सकते हैं कर लीजिए। 25 वर्ष से 60 वर्ष तक जो भी हो सकता है वही तो हो सकेगा पर आपने तो उसे भोग भोगने में लगा दिया। आखिरी समय रोने में लगा दिया। छोटी सी उम्र में जीवात्मा के लिए कुछ कर लिया तो कर लिया वर्ना इस दुनिया से खाली चले जाओगे।
★ बाबा जयगुरुदेव की रचना ★*
Dil me hamare dard hai
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दिल मे हमारे दर्द है तुम्हारा,
सुने तो जाओ सन्देश हमारा।।
हमने तुम्हारे लिये जलसे रचाये,
गली गली मे खूब पर्चे बंटाए,
समझो न अब फिर भाग्य तुम्हारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
हमने कही है सो आई है आगे,
होगा जरूर जो कहूंगा फिर आगे,
मालिक की मौज कुछ ऐसा इशारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
शहरों व गांवो मे सबको सुनाया,
मालिक मिलन का है भेद बताया,
सोचो तो क्या ऐ पागल गंवारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
कहना न कल हम जान न पाए,
इसीलिए हम आ नही पाए,
करते हैं हम कर्तव्य हमारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
है कुछ आसार, अब ऊपर ही से होगा,
कर्मों का बादल बवंडर बनेगा,
बरसेगी बहेगी तेरे पापों की धारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
हमको हुकुम है कि सबको बता दो,
आये शरण उसे माफ़ी करा दो,
जानो अब आप काम जाने तुम्हारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
पूरब व पश्चिम मे बदबू बहेगी,
उत्तर व दक्षिण मे खूब धधकेगी,
लाशों पे लाशों का होगा नजारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
अन्न, दवाओं की कमी पड़ेगी,
पेडों की पत्ती न तुमको मिलेगी,
फट जाये धरती उठेगा गुबारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
पूरब व पश्चिम का पाकिस्तान मिटेगा,
अरब इजरायल आपस मे लड़ेगा,
खून की नदियों की बहेगी धारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
पर्चे मे बातें सभी सच्ची लिखी हैं,
दिखती असम्भव पर सम्भव सभी हैं,
है अचूक ये दावा हमारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
भारत मे एक पुरुष जन्मा कहीँ है,
जिसकी महत्ता का वर्णन नही है,
सहायक शक्तियों का नही पारवारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
सभी देशों के अणु बम नाकाम होंगे,
छोटे छोटे देश बड़े देशों मे मिलेंगे,
भारत की अध्यात्म शक्ति का होगा पसारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
बीता ७०-७१ अब ७२ है आया,
जिसके लिए था हमेशा चिल्लाया,
होगा शुरू अब यहीँ से निपटारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
मेरी न मानो तो एण्डरसन की मानो,
चाहे प्रोफेसर हरार की ही मानो,
पश्चिम का तुम पै चढ़ा है नजारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
जो मै कहूंगा दोहराना पड़ेगा,
झण्डे के नीचे तुम्हे आना पड़ेगा,
होकर लाचार नाम लोगे हमारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
मौका अभी है कुछ करलो करा लो,
बचना जो चाहो तो साथी बना लो,
समझो तो क्या यह सच रखवाला।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
सेवा अहिंसा हमारी है नीति,
जीवों से प्रेम यही है सतनीति,
आत्मज्ञान का यही है भण्डारा।
सुने तो जाओे.....सन्देश हमारा।।
*प्रेम का पाठ पढ़ाते रहेंगे,*
*मानव धर्म को जगाते रहेंगे*
*जयगुरुदेव नाम का अब होगा पसारा*
*सुने तो जाओ सन्देशा हमारा।।*
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*जयगुरुदेव..Dhaam apne chalo bhai*
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धाम अपने चलो भाई, पराये देश क्यों रहना।
काम अपना करो भाई, पराये काम नहीं फसना।।
नाम गुरु का सम्हाले चल,
यही है दाम गठ बंधना।
जगत का रंग सब मैला,
धुला ले मान यह कहना।।
भोग संसार कोई दिन के,
सहज में त्यागते चलना।
सरन सतगुरु गहो दृढ़ कर,
करो यह काज पिल रहना।।
सुरत मन थाम अब घट में,
पकड़ धुन ध्यान घर गगना।।
फंसे तुम जाल में भारी,
बिना इस जुक्ति नहीं खुलना।।
गुरु अब दया कर कहते,
मान यह बात चित धरना।
भटक में क्यों उमर खोते,
कहीं नहिं ठीक तुम लगना।।
बसो तुम आय नैनन में,
सिमट कर एक यहा होना।
दुई यहां दूर हो जावे,
दृष्टि ज्योति में धरना।।
श्याम तजि सेत को गहना,
सुरत को तान धुन सुनना।
बंक के द्वार धंस बैठो।
तिरकुटी जाय कर लेना।।
सुन्न चढ़ जा धसो भाई,
सुरत से मानसर न्हाना।
महासुन चौक अंधियारा,
वहां से जा गुफा बसना।।
लोक चौथे चलो सज के,
गहो वहां जाय धुन बीना।।
अलख और अगम के पारा।
अजब एक महल दिखलाना।।
वहीं जाय स्वामी से मिलना,
हुआ मन आज अति मगना।।
••••जयगुरुदेव ••••
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