जयगुरुदेव
कहानी संख्या 3.
● सम्हल कर रहो- यह कलयुग है ●
एक राजा के राज्य में एक साधू भी भजन करते थे। भजन करते करते उन्हें सब कुछ प्राप्त हो गया और वो पहुंचे हुए महात्मा बन गए। धीरे धीरे लोंगों ने उनके पास आना जाना शुरु कर दिया वो कहा करते कि हम दोनों रसायन जानते हैं। रसायन सोने को भी कहते हैं। राजा के कान में भी उनकी चर्चा पड़ी। उसे तो सोने का रसायन चाहिए था।
राजा भेष बदलकर महात्मा जी के पास गया और बोला कि हमें सोने का रसायन बता दीजिए। महात्मा ने कहा कि आपको नहीं बताएंगे क्योंकि आप कुछ कर नहीं सकते। राजा बोला कि देखिए मैं राजा हूं आप नहीं बताएंगे तो मैं आपको यहां से निकलवा दूंगा। महात्मा ने कहा कि हमको क्या हम आपके राज्य से चले जाऐंगे कहीं और जाकर बैठ जायेंगे।
राजा सोच में पड़ गया। उसने अपने दरबार में विद्वानों को बुलाया और उनसे विचार विमर्श करने लगा। विद्वानों ने कहा कि देखिए वो महात्मा हैं वो किसी से डरते नहीं हैं। आप सेवक बनकर उनके दरबार में जाइए, उनके दरबार में सेवा कीजिए। जब वो खुश हो जायेंगे तभी बतायेंगे।
राजा एक साधारण आदमी की तरह महात्मा जी के पास गया और बोला कि मैं आप का सेवक हूं, दरबार में रहना चाहता हूं। महात्मा ने कहा कि सेवक हो तो सेवा करो और पड़े रहो। राजा हर छोटी बड़ी सेवा करने लगा महात्मा समझते थे कि वो कौन है।
एक दिन महात्मा जी ने कहा कि हम खुश हुए। हम तुमको रसायन बतायेंगे।
एक रसायन भव से पार होने का है वह तो तू कर नहीं सकता। दूसरा सोना बनाने का है वह मैं तुझे बताता हूं और महात्मा ने उसको बता दिया फिर राजा वापस अपने महल में गया और अपने राजसीभेष में आया और महात्मा जी से बोला कि कहिए महात्मा जी, आप ने हमको बता ही दिया।
महात्मा जी बोले कि बच्चा तू राजा बनकर नहीं सीख सका। तूने यहां झाड़ू लगाया, पानी भरा, बर्तन मला, लंगोटी फींची। तू राजा के कपड़े पहनकर आया इससे कौन खुश होता है। यह तो राक्षस के कपड़े हैं। ये सीधा नरक ले जाएगा। राजा को बात लग गई। उसने कहा कि महाराज सही बात है। महात्मा जी बोले कि देख, हमने जो तुझे दिया है उसे गायब भी कर सकते हैं। इसलिए तू उसे बहुत सम्हाल कर रखना।
असल मे कहने का सबसे बड़ा मतलब यह है कि महात्मा के पास जाओ तो उनके सेवक बनो। सीधे सीधे होकर रहो। चन्टई चालाकी उनके आगे नहीं चलेगी। तुम निष्कपट होकर सेवा करो तब तुम्हारा काम बन जाएगा।
किस बात का अहंकार ? यह शरीर ही तो है। जब यही नहीं रहेगा तो अहंकार किस पर करोगे?
तो सम्हल कर रहो। यह कलयुग है। सम्हलने का समय वहां आता है जहां सत्संग होता है। हमने छोटे का, बड़े का हर तरह का सब कुछ देखा है अनुभव किया है।
- बाबा जयगुरुदेव जी महाराज
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जयगुरुदेव ●
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