हर सतसंगी कम से कम 5 दिन साधना शिविर में भाग जरूर ले ले।*

*जयगुरुदेव *


समय का संदेश 
16.04.2025
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन। 

*1. हर सतसंगी कम से कम 5 दिन साधना शिविर में भाग जरूर ले ले।* 
19.16 - 21.35

ऐसी व्यवस्था बनाई जाए सब जगह पर; जिम्मेदार लोग आप बनवा दो और वहां के जिम्मेदार लोग आप जगह देख कर के संदेशा लोगों को दे दो कि इतने समय से इतने समय तक साधना शिविर लगाया जाएगा, इस दिन लगाया जाएगा, इसके बाद फिर लगाया जाएगा, कब कैसे लगाया जाएगा लेकिन यह कोशिश रहे कि हर सतसंगी कम से कम पांच दिन का साधना शिविर (चाहे एक साथ जहाँ हो रहा हो वहां या चौबीस-चौबीस या 48- 48 घंटे वाले ) में भाग जरूर ले ले, पांच दिन का जरूर कर ले। ज्यादा भी कोई कर सकते हैं। मान लो कई जगह लगा हुआ है। सब जगह एक जैसा (और एक साथ) तो लगेगा नहीं। किसी दिन कहीं लगेगा, किसी दिन कहीं लगेगा और यह देख लें कि हमारे पास समय है तो और ज्यादा भी बैठ सकते हैं। 

*अब इस पर जोर दो। इसी से सब संकट दूर होगा, इसी से व्यवस्था सही होगी, इसी से मुक्ति और मोक्ष का रास्ता खुलेगा। इस पर जोर देने की प्रेमियों, बच्चे और बच्चियों, माताओं-बहनों, अब जरूरत है। तो आप लोग इस संदेश को, जो लोग इसे सुन रहे हैं और आप जहां कहीं से भी सुन रहे हो, या बाद में सुनो, सब जगह पहुंचा दो और एक वातावरण आप लोग बना दो। वातावरण बना दो और काम चालू करा दो। भंडारे से पहले ये सम्पन्न हो जाए। भंडारा मई में होगा, 25 तारीख को है शायद। 25 मई से पहले पांच-पांच दिन का यह संपन्न हो जाए। समझ लो ठीक से एक-एक आदमी अगर पांच-पांच साधना शिविर लगवा दिया, पांच-पांच दिन का, तो गुरु की क्या दया मिलती है, यह तो वही अनुभव करेगा।* 


*2. अखण्ड साधना शिविर की समय सारिणी।* 
21.35 - 23.37

यह ठीक से समझ लो। *न चार दिन का, न तीन दिन का हो; पांच दिन का हो। और 24 घंटे में कमी न हो। 24 घंटे चले।* जब भी शुरू करो, दिन में शुरू करो तो दिन में ही खत्म करो। दिन में 12-1 बजे शुरू करो तो 12-1 बजे ही खत्म करो। सुबह चार बजे शुरू करो तो सुबह चार बजे ही खत्म करो। 

एक प्रार्थना हो जाएगी, जब शुरू करना होगा। बार-बार नहीं। मान लो 24 घंटे की साधना शिविर आप लगाते हो तो एक प्रार्थना शुरू में हो जाएगी। उसके बाद में सुमिरन हो जाएगा, लोग सुमिरन कर लेंगे और उसी में बोल दो कि आप लोग सुमिरन करके ध्यान पर बैठ जाइए, उसके बाद में भजन पर बैठ जाइयेगा। फिर कोई बोलेगा नहीं कि अब आंख खोल दो, कान खोल दो, यह कोई बोलेगा नहीं। जिसका जिसमें मन लगेगा, वह उसको करेगा। किसी का मन ध्यान में लग जाता है, मन फिर ध्यान कराता है। किसी का मन भजन में लग जाता है तो मन भजन कराता है। ध्यान में मन लगेगा तो ध्यान कराएगा। भजन में लगेगा तो भजन करेगा। तो कोई न कोई ध्यान भजन करता ही रहेगा। सुमिरन तो एक बार काफी है 24 घंटे में। फिर उसके बाद में ध्यान और भजन खूब करना रहेगा। तो *ध्यान और भजन बराबर चलता रहे, अखंड रहे। कोई न कोई बैठा रहे। दो-चार आदमी बैठे ही रहें। रात के बारह बजे, चाहे 2 बजे।* अब जो दैनिक क्रियाएं हैं जैसे पानी पीना है, पेशाब जाना है, नाश्ता-पानी करना है, भोजन करना है; यह अपने-अपने हिसाब से करते रहेंगे।




समय का संदेश 
16.04.2025
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन।  

*1. यह काम (साधन भजन का) अगर कर ले गए तो सब काम आपको गुरु महाराज की दया से बनता हुआ दिखाई पड़ेगा।* 
23.38 - 25.04

तो आप लोग आश्रमवासी जितने भी हो, मन बनाओ कि जैसे व्यवस्था बन जाए, ये जो आश्रम के व्यवस्थापक लोग हैं, जिम्मेदार लोग हैं, ये जैसे ही योजना बनाकर आदेश करें कि अब इस तारीख को शुरू होगा, अब बैठना शुरू कर दो। बाकी ये तो सुबह-शाम का चलता रहेगा। लेकिन फिर उस समय पर ये सुबह-शाम, जैसे आपका चल रहा है दो घंटा-ढाई घंटा ये नहीं चलेगा। वो लगातार चलेगा 24 घंटा। 48 घंटा लगाओ तो 48 घंटा लगातार चलेगा। खंडों में जब लगाओगे तो उस तरह चलेगा। जैसे तीन दिन बाद, चार दिन बाद, पांच दिन बाद फिर लगाना है तो बाकी का जो बीच का समय है, वो जैसे चल रहा है, वैसे ही चलेगा। 

उसमें जब रस मिल जाता है, आनंद आ जाता है तो बाद में भी लोग बैठते रहते हैं। अपने-अपने स्थानों पर भी लोग बैठते रहते हैं। तब कोई दिक्कत नहीं रह जाएगी। असला निशाना इसका बनाओ। *ये काम अगर कर ले गए तो काम में आपके रुकावट नहीं आएगी। सब काम आपको धीरे-धीरे गुरु महाराज की दया से बनता हुआ दिखाई पड़ेगा*। तो प्रेमियों, इस पर आप लोग जोर दो।


*2. एक बार फिर समझा देते हैं।* 
25.07 - 27.00

न समझे हों तो फिर समझा दें, समझना जरूरी है, तभी तो समझाओगे लोगों को। कम से कम पांच–पांच दिन का साधना शिविर हर ज़िले में लग जाए और जहां ज़्यादा सतसंगी हैं, वहां ज्यादा जगहों पर लग जाएं। जहां बीच के हैं वहां उस हिसाब से लग जाए। 

*जो पांच-पांच साधना शिविर लगवाएगा, पांच–पांच दिन का, उसको गुरु की विशेष दया मिलेगी। विशेष दया मिलेगी। अब वो कौनसी दया दे दें, क्या कर दें, ये तो वो अनुभव करेगा। अपना–अपना अनुभव करके वही समझेंगे। जरूरत पड़ेगी, बताने लायक होगा तो बता भी देंगे कि हमारा रोग ठीक हो गया, हमारा ये काम बिगड़ रहा था, सज़ा होने वाली थी, तकलीफ होने वाली थी, ये चीज तो बता देंगे लेकिन अंदर में क्या रस मिला ये तो कोई बताएगा नहीं और न बताना है किसी को। तो पांच–पांच दिन ये चल जाए सब जगह।*

और कब तक चलेगा? भंडारे के पहले तक खत्म हो जाएगा, भंडारे के पहले तक ये शिविर लग जाएगी, *मतलब ये कोर्स पूरा हो जाएगा।*

और अखंड चलेगा, अखंड का मतलब खंडित नहीं होगा। 24 घंटे या 48 घंटे का लगा तो कोई न कोई करता ही रहेगा वहां पर, ये अखंड साधना शिविर चलेगा। अब आप समझ गए होंगे। जो समझ गए हैं, वो समझा देंगे एक दूसरे को। तो अब इसको आप लोग लागू करो, चालू करो।



समय का संदेश 
29.04.2025
बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन 

*1. उज्जैन आश्रम पर 120 घंटे के अखण्ड साधना शिविर का समापन।*
1.47 - 3.01

24 अप्रैल 2025 से उज्जैन आश्रम पर लगी हुई साधना शिविर का एक सौ बीस (120) घंटा पूरा हो गया; ये आपकी अखण्ड साधना पूरी हुई। आप लोगों ने मेहनत किया, लगन लगाया, गुरु से दया मांगी। *गुरु महाराज ने बहुत से लोगों को दया दिया। बैठने वालों को सबको दया मिली। अंतर में नहीं कुछ मिला तो थोड़ी देर के लिए मन को शांति ही मिली, कर्म कटे।* 

कुछ लोग लगातार आठ घंटे, दस घंटे, बीस घंटे, *चौबीस घंटे भी रिकॉर्ड बनाया लोगों ने लगातार एक साथ बैठ करके साधना किया है।* ये गुरु की दया से ही होता है। इसलिए कहा जाता है कि गुरु को हमेशा हृदय में बसाए रहना चाहिए और इसी तरह की दया सदैव मांगते रहना चाहिए। 

*2. आगे सब जगह साधकों की जरूरत पड़ेगी।*
3.02 - 4.31

साधक अपनी आत्मा की रक्षा तो करेगा ही करेगा लेकिन दूसरे की भी जान बचाएगा। गुरु महाराज ने जब गुलाबी पगड़ी बंधवाया था, जो गुलाबी रंग का कपड़ा आप लोगों को पहनने के लिए कहा गया कि कमर से ऊपर तक गुलाबी कपड़ा पहनो। नीचे अगर गुलाबी पहनना है, पैंट पहनना है तो आप पैंट के नीचे जो जांघिया होती है दूसरे रंग की ले लो, उसको पहनो। तो ये जो गुलाबी पहनाया गया ऐसे ही गुरु महाराज ने गुलाबी पगड़ी बंधवाई थी और ये कहा था कि गुलाबी पगड़ी बांधने वालों की नजर जहां तक जाएगी, कोई मरेगा नहीं, बच जाएंगे लोग। बहुत से लोगों ने देखा, आंधी आफत जब आई, ट्रेन जब पलटी और जब मार काट हुई तो जो उनके साथ थे, आसपास में थे, उनकी भी रक्षा हो गई, बचत हो गई। तो जो साधक होते हैं वो दूसरों की भी जान बचाते हैं।

*3. आगे का समय खून-खराबे का दिखाई पड़ रहा है।*
4.32 - 5.21

आगे का समय तो ऐसा दिखाई पड़ रहा है, खून खराबे का। विदेशो में अभी बहुत खून बहेगा। आप देखना, पता करना, अस्पतालों में जगह नहीं मिलेगी। लहूलुहान जब आयेंगे और जो बढ़िया सफेद चद्दर बिछी हुई, उस पर उनको रखेंगे तो चद्दरें भीग जाएंगी खून से। आप यह समझो प्रेमियों कि भारत में भी यह दृश्य देखने को मिल सकता है। लेकिन *अगर सारा देश साधक बन जाए, जितने नामदानी हैं, सभी साधक बन जाए तो बहुत कुछ संकट टल सकता है और संकट आवे भी तो उसमें बचत हो सकती है।*

*4. ज्यादा से ज्यादा समय भजन में देना है। गुरु की दया से सेवा भी कम समय में पूरी हो जाएगी।*
5.22 - 8.25

आप लोग बराबर मेहनत करते रहना। आप *यह मत सोचना कि साधना शिविर पूरी हो गई तो हम अपनी बैठकी कम कर दें।* जितना बैठ सकते हो बैठो। यहां जो आश्रम पर रहते हो, सेवा भी करते रहो। मन लगाकर सेवा भी कर लोगे तो वो कम समय में ही सेवा पूरी हो जाएगी। उसमें भी गुरु मदद कर देते हैं। दूसरे से करवा देते हैं। मैंने यह अनुभव में देखा कि गुरु महाराज ने प्रयागराज, जिसको इलाहाबाद कहा जाता था, वहां पर गुरु महाराज ने कार्यक्रम किया था और बहुत कुछ फैला हुआ था। 

मंच, कुटिया और बहुत कुछ फैला हुआ था और अधिकारियों का संदेश आ गया कि बाढ़ आ रही है। आपका ये सामान बचेगा नहीं। बाढ़ में ये सब सामान डूब जाएगा। गुरु महाराज ने कहा- ‘अच्छा’। मैं (परम पूज्य महाराज जी) अपने सामने की बात आपको बता रहा हूं। गुरु महाराज बैठे हुए थे। उस समय कुछ सोच रहे थे। दिन में भी सोचते रहे। सुबह ही उन्होंने चेतावनी दे दी थी कि इतने ही घंटे में बाढ़ आ जाएगी और बाढ़ को चार या पांच बजे ही आ जाना था। 

जब अंधेरा होने लगा तो गुरु महाराज ने हमसे (महाराज जी से) कहा तुम कुटिया में ही रहना। यहीं बैठे रहना, देखते रहना और कुछ लोगों को लेकर के चले गए। लोगों ने देखा कि बल्लियां ऐसे हाथ से पकड़-पकड़ करके फेंक दे रहे हैं। टीन को ऐसे पकड़ते हैं और उखाड़ कर फेंक देते हैं। चढ़े चार आदमी और दिखाई पड़ रहे हैं दस आदमी। अब किसने टीन को उतारा? किसने बल्ली खोला? मैंने अपनी आंखों से देखा - जयगुरुदेव का नारा लगाते हुए, बीस-बीस, पच्चीस-पच्चीस आदमी उधर से कंधे पर बल्लियां रखकर ले जा रहे हैं। उनके पैर दिखाई नहीं पड़ रहे हैं लेकिन लम्बे, मोटे-तगड़े आदमी कंधे पर मोटी-मोटी बल्लियां रखकर ले जा रहे हैं। 

कौन कराता है? गुरु कराते हैं। गुरु की दया से होता है यह। तो आपको समझने की जरूरत है प्रेमियों कि थोड़ी भी मेहनत करोगे तो उसमें ज्यादा कामयाबी मिल जाएगी। ज्यादा से ज्यादा आपको समय देना है। भजन में समय देना है। बाकी यह जो दुनिया का काम है, इंतजाम है; यह तो सब करने वाला, कराने वाला मालिक है। वो आपसे करा लेगा, और किसी से करा लेगा। लेकिन जिम्मेदारी जो आप लोग लेना, उसको निभाना। ये नहीं कि गुरु महाराज और किसी से करा लेंगे। उसको आप लोग निभाना।




समय का संदेश 
29.04.2025
बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन 

*1. साधकों! थोड़ा बच के रहना।*
8.25 - 11.13

देखो साधकों! थोड़ा बच के रहना। कर्म बहुत जल्दी आते हैं। कैसे कर्म आ जाते हैं? कुछ अपने आ जाते हैं, कुछ दूसरों के आ जाते हैं। मैं तो भोग रहा हूं। बुढ़ापे में झेल रहा हूं। यह बीमारी तकलीफ झेल रहा हूं। आप के बीच में ज्यादा नहीं बैठ पाया, आता-जाता तो रहा, इच्छा तो बहुत रही बैठने की लेकिन शरीर ने साथ नहीं दिया, कर्मों का चक्कर। तो कर्मों से बचना। *कोशिश यही करो कि अपनी मेहनत का ही खाओ और जो खाओ उससे ज्यादा मेहनत करो।*

 *चाहे आश्रम पर रहो, चाहे अपने घर में रहो। कहीं भी रहो, आना-जाना कम करो। जहां जरूरत है, वहीं आओ-जाओ। खाने-पीने पर, जो जगह-जगह खा-पी लेते हो; उस पर परहेज रखो। तो खाने पीने पर ध्यान रखना और साथ का भी असर होता है, संपर्क का असर होता है, आंखों में आँखें डालने से कर्म आते-जाते हैं तो कोशिश यही करना कि जो बहुत कर्मी जीव हैं, उनसे बचना है।*

देखो प्रेमियों! गुरु महाराज भी इस पक्ष में नहीं रहे, पहले भी जितने गुरु आए जो समर्थ रहे, वे भी इस पक्ष में नहीं रहे कि संतान की उत्पति न की जाए, बच्चे न पैदा किए जाए, गृहस्थी का कोई काम न किया जाए; ऐसा किसी का भी संदेश नहीं रहा। तो हम यह नहीं चाहते हैं कि आप गृहस्थी को छोड़ दो, काम को छोड़ दो, जो आप आश्रम के बाहर के हो, इस संदेश को सुन रहे हो, आप सब काम करो लेकिन सोच समझ करके करो। बच्चा पैदा करो तो आप अपनी पत्नी से करो, *दूसरे की पत्नी या दूसरे की बच्चियों से दूर रहो*, उसका भी बड़ा भारी कर्म आता है। तो कर्म आपके आने ना पावें, इकट्ठा ना होने पावें, क्योंकि इसमें बहुत से लोगों ने अनुभव किया, अंतर की दौलत उनको मिली, अंतर में उनको मिला ही मिला जो लगातार लगन और प्रेम के साथ लगे रहे। गुरु से यही प्रार्थना करते रहे कि गुरु महाराज! हमको दे दो कुछ, आपके हाथ में बहुत कुछ है, तो सबको मिला है।

12.24 - 13.27

जिनके अंदर कुछ आ गया, वो छुप करके रहो। अभी बता दिया जाए तो लुटेरे बहुत तैयार हैं। कौन लुटेरे? अंतर की दौलत के लुटेरे तैयार हैं और वो ऐसे लूट लेंगे कि पता भी नहीं चलेगा और खजाना आपका अंतर का खाली हो जाएगा। इसीलिए बचाना भी है, छुप के भी रहना है आपको, बच के भी रहना है और जरूरत पड़े तो आप समझा दो लोगों को, थोड़ी देर 2-4 मिनट उपदेश कर दो; भजन के बारे में बता दो, ध्यान के बारे में बता दो, लेकिन इस तरह से बताओ कि उसको पता ना चले कि यह अपनी देखी, सुनी हुई बात बता रहे हैं, ऐसा समझाओ। उससे करा लो और वो जब करने लगेगा तो उसको खुद को पता चल जाएगा कि यह साधक हैं, यह हमसे ज्यादा हैं, आगे या कम हैं; यह सब वो बताएगा, उसको खुद को पता चल जाएगा, क्योंकि साधक, साधक को पहचान जाता है।

*2. भजन और सेवा दोनों काम किस तरह से करना है?*
11.13 - 12.23

तो प्रेमियों! बराबर साधना में लगे रहो, सेवा में आप आश्रमवासी लगे रहो, जो भी मोटा-महीन, भण्डारे में अपने मिल जाए, उसको आप खा लो। अगर गर्मी है और रात को भजन करना है तो उस गर्मी में आप थोड़ा कम खाओ, तो रात में जाग करके भजन कर लोगे। देखो! इसमें नींद नहीं आई लोगों को, जो देर तक बैठे; 20 घंटा, 24 घंटा बैठे, उनको टट्टी-पेशाब नहीं महसूस हुआ। इसी तरह से आपको थकावट नहीं महसूस होगी। दिन में काम भी कर सकते हो, थोड़ी देर के लिए भी बैठ गए, आंख बंद कर लिया, नींद आ गई तो उसी में नींद पूरी हो जाती है। इस तरह से दोनों काम करना है; सेवा भी करना है और भजन भी करना है। घर में रहो तो बाल बच्चों की भी देख-रेख कर लो, वो भी एक सेवा है, और भजन भी करो। तो इस पर ज्यादा जोर दो आप लोग और जो मिले उससे भजन की बात करो। 

*3. जहां-जहां अभी तक साधना शिविर नहीं लगा है, वार्षिक भंडारे की तारीख से पहले-पहले लगा लो।*
14.35 - 15.43

देखो! इसी तरह की साधना शिविर सब जगह लगना चाहिए और लग भी रहा है; बहुत जगहों पर आश्रमों पर लग रहा है और लगातार लोग बैठ रहे हैं। जिनको उम्मीद नहीं थी कि ये भी साधना में बैठ पाएंगे, जिनको उम्मीद नहीं थी कि ये भी कुछ बैठेगा, करेगा वो लोग लगातार खूब समय दे रहे हैं उसमें, मन उनका लग रहा है। साधना शिविर विदेशों में भी चल रहा है। तो जहां-जहां अभी तक नहीं लगा है, गुरु महाराज के भंडारे की तारीख से पहले–पहले आप सब लोग जगह–जगह लगा लो। गांवों में लगा लो पांच–पांच दिन का, तहसील स्तर का लगा लो, जिला स्तर का लगा लो, आश्रम जहां बने हैं जहां व्यवस्था हो सकती है वहां लगा लो। आदमी कम हैं तो दूसरी जगह ज़िले के लोग भी आ करके कर सकते हैं तो कम आदमी हैं, वो भी बैठने लग जाएंगे, उनको भी लाभ मिल जाएगा।

*4. आप प्रान्त और देश के जिम्मेदार लोग साधना करने और कराने का अभियान चला दो।*
15.44 - 16.52

इसका एक अभियान चला दो आप लोग, साधना करने का और कराने का। आप जो जिम्मेदार लोग हो देश और प्रांतों के, जो इस संदेश को सुन रहे हो, आप लोग साधना शिविर पर थोड़ा जोर दे दो और लग जाए जगह–जगह लोग करने लग जाएं। एक बार जब मन लग जाएगा तब करते रहेंगे। बीच–बीच में फिर लगता रहेगा तो जो मन हटेगा इधर से जो कर्म आयेंगे मन को कर्मी करेंगे, मन को इससे हटाएंगे, जब दुबारा फिर लग जाएगा, तिबारा फिर लग जाएगा तो बराबर लग जाएगा ये। लग जाएगा तो गुरु की दया हो जाएगी। गुरु महाराज दया कर देंगे, बहुत दयालु हैं गुरु महाराज। प्रेमियों जब तक मनुष्य शरीर में रहे, तब तक जीवों पर दया किया। जब शरीर छोड़ कर चले गए तो अब भी दया ही कर रहे हैं। दया कर रहे हैं। दयालु बनें गुरु महाराज, सबके ऊपर दया करें, हमारे ऊपर भी दया करें गुरु महाराज।




समय का संदेश 
12.05.2025
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश 

*सन्तमत की प्रमुख बातें - प्रार्थना, सुमिरन, ध्यान, भजन, गुरु भक्ति और गुरु से प्रेम।*

1.08 - 7.49

आज 12 मई 2025, मध्याह्न का समय, पूर्णिमा की तिथि, आश्रम गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश। आज पूर्णिमा के इस कार्यक्रम में हमको-आपको कुछ बातें याद करनी हैं। 

सन्तमत में जिनको हम लोग मानते हैं, सन्त को, सन्तमत को मानते हैं, उनमें *प्रार्थना, सुमिरन, ध्यान और भजन; ये प्रमुख है। गुरु भक्ति प्रमुख है। गुरु से प्रेम करना ये आवश्यक है।* 

प्रार्थना हम लोग बोलते हैं लेकिन मुंह से बोलते चले जाते हैं, उसका अर्थ नहीं समझ पाते हैं। *जब प्रार्थना बोली जाए, जिसकी प्रार्थना की जाए, उसको याद किया जाए। जिसको याद किया जाए उनको अंतर में आंख बंद करके देखें।* 

चेतावनी को भी समझकर के चेत नहीं पाते हैं। मुंह से तो बोलते हैं- “जीवन है बेकार भजन बिन दुनिया में” लेकिन खाली बोल करके और उसको वहीं खत्म कर देते हैं। करते नहीं है। जीवन बेकार (कर देते हैं)। ये दिन-रात का समय, जीवन का निकला चला जा रहा है। सुनते भी हैं, समझते भी हैं लेकिन कर नहीं पाते हैं। काल भगवान के देश में काल अपना दांव लगा रहा है, माया ने बाजार लगा रखा है; उस बाजार में फंसकर गुरु के वचन भूल जाते हैं। कारण क्या है? कारण यही है कि गुरु से प्रेम नहीं हो पाता है। कहा गया है-

*जैसी प्रीति कुटुंब से,*
*वैसी गुरु से होय।*
*कहैं कबीर ता दास का,*
 *पला न पकड़ै कोय।।* ”

इसका मतलब भी समझा देता हूं- जितना प्रेम अपने परिवार से होता है, पति से, पत्नी से, माता-पिता से; उतना ही प्रेम अगर गुरु से हो जाए तो उसका वेग कोई रोक नहीं सकता है। बच्चियां धोती पहनती हैं। इनका अगर धोती का एक कोना पकड़ लो तो ये नंगी होने के डर से भाग नहीं पाएंगी कि हमारी बेइज्जत हो जाएगी, रुक जाएंगी, पला उसको कहते हैं। तो काल उसका पला नहीं पकड़ सकता है कि वो रुक जाए, रुक नहीं सकता है। अब ये हो नहीं पाता है। कारण क्या है - *गुरु को भूल जाते हैं, गुरु के वचनों को भूल जाते हैं और दुनिया के कर्मों को इकट्ठा कर लेते हैं और कर्म प्रेम पैदा नहीं होने देता है।* इसलिए प्रेमियों आज पूर्णिमा के दिन इस बात को गांठ बांधने की जरूरत है कि गुरु भक्ति की जाए, गुरु से प्रेम किया जाए। 

अब गुरु भक्ति कहते किसको हैं? गुरु भक्ति कहते हैं कि गुरु की सेवा करो, गुरु को बराबर याद रखो, गुरु को मस्तक पर सवार रख करके चलो, गुरु मस्तक से उतरने न पावें कि काल अपनी तरफ खींच ले जाए आपको। अब गुरु मस्तक पर सवार कब रहेंगे और गुरु मददगार कब होंगे? जब गुरु के वचनों का पालन किया जाएगा। गुरु महाराज के नामदानी हैं हम लोग। गुरु महाराज तो चले गए, अब तो उनको एक गिलास पानी भी नहीं पिला सकते, जैसे पहले कभी खिलाते-पिलाते थे। गुरु महाराज की दया रही, हर तरह की सेवा मुझको दिया लेकिन अब वो कैसे हो सकता है? लेकिन गुरु के जो वचन हैं, उनको अगर पकड़ लें और उनका पालन करने लग जाएं तो वही है गुरु भक्ति। सबके लिए है कि सुमिरन करो। कहा करते थे गुरु महाराज कि बच्चा ध्यान करो, भजन करो, इसी से तुम्हारा काम बनने वाला है। उसको पकड़ने की जरूरत है। *प्रेमियों आदत डालो। कहीं भी रहो, सुमिरन करो रोज, ध्यान भजन में समय निकालो।*




समय का संदेश 
12.05.2025
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश 

*देश-विदेश में अखण्ड साधना शिविर का हाल।* 

7.50 - 10.15

देखो ये साधना शिविर जगह-जगह लगाई गई। शुरू में लगाया गया कई जगहों पर लेकिन उसमें एक स्थिरता नहीं आई, मन नहीं रुका। देर सवेर हो गया लोगों को जाने में, चौबीस घंटा बैठने में, ज्यादा समय बैठने में लोगों को दिक्कत आई इसलिए फिर ये पांच दिन के लिए अखण्ड साधना शिविर के लिए कहा गया। ये अखण्ड साधना शिविर पूरे देश में चल रही है। अब आप ये समझो कि केरल में भी पांच दिन के लिए अखण्ड साधना शिविर चला रहे। लगभग जहां-जहां हैं प्रेमी, प्रांतों में चला रहे हैं, विदेशों में भी चला रहे हैं लोग। 

अब आप ये समझो उत्तर प्रदेश में आपका गाजियाबाद पड़ता है लेकिन सबसे ज्यादा पांच दिन की साधना शिविर उत्तर प्रदेश में चली है और चल रही है अभी तक। अब खत्म हो जाएगी। आपके यहां चला, दो बार चला, हमको खबर लगा। एक पहले चला और एक की शुरुआत हमने ही किया आ करके यहां और फिर समापन भी आपका कल यहां पर हुआ। तो जब इतने लोग बैठने लगे तो इसी में देख लो बैठने वालों का चेहरा–मोहरा, भाव भक्ति। जिनको कुछ अंतर में मिल जाता है, उनको कुछ अच्छा नहीं लगता है। 

मैं यहां कोशिश तो करता रहा पांचों दिन आने की और आया भी, एक-आध दिन नहीं आया। क्यों नहीं आता था? क्योंकि देखते रहते थे। ये ज्यादातर शिकायत इनसे रही हमको, ये बस फट से आंख खोल दे कि कब हमको देखने को मिल जाए। अरे हमको क्या देखना है भैया? जिनको देखना है अंतर में देखो। 

अंतर में आपको सबका पता लग जाएगा कि किसको देखना है, किसको नहीं देखना है। किसको देखना चाहिए, किसको नहीं देखना चाहिए। गुरु को देखने लग जाओ तो गुरु आपको अंदर में सब दिखा देंगे।




समय का संदेश 
12.05.2025
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

*सब लोग साधना में लगो, लोगों को लगाओ। आगे बहुत खराब समय आ रहा है।*

10.16 - 13.02

तो गुरु भक्ति किसको कहते हैं? गुरु भक्ति इसको कहते हैं कि *"गुरु भक्ति पहले करे, दृढ़ कर करे, मजबूती से करे"।* गुरु भक्ति करो और सब लोग साधना में लगो, लोगों को लगाओ। 

देखो प्रेमियों, बच्चों एवं बच्चियों! एक माहौल तैयार कर दो कि जितने भी नामदानी हैं, सब लोग साधना करने लग जाएं। एक तो आगे बहुत खराब समय आ रहा है। आप यह समझो कि *लाशों पर लाशों का होगा नजारा। ये अस्पतालें जो हैं, ये सब भर जाएंगी, खून से लथपथ बिस्तर दिखाई पड़ेंगे; विदेशों में ज्यादा होगा लेकिन उसका असर अपने देश में भी पड़ेगा। परिवर्तन बड़े-बड़े होंगे।* तो "जान बचे बड़ भाग" जब जान बच जाती है तो कहते हो जान बच गई, तो बड़े भाग। जान चली गई तो क्या कर पाओगे? ना तो घर का काम कर पाओगे, ना भजन-भाव-भक्ति कर पाओगे। तो कौन बचेंगे और बचाएंगे? जो भजनानंदी होंगे! उनके प्रताप से, उनके असर से, और लोगों की जान बचेगी और अगर करने लग जाओगे (भजन) तो अपनी भी जान बचेगी। 

दूसरी बात यह है कि जब माहौल ऐसा तैयार हो जाएगा, तभी तो सतयुग आएगा। आजकल का यह जो माहौल है, आजकल का जो वातावरण है, वो तो कलयुगी बनता चला जा रहा है लेकिन अगर जितने भी नामदानी हैं, उनको आप भजनानंदी बना ले जाओ; चाहे गुरु महाराज के नामदानी हों, चाहे उनके बाद के हों, तो माहौल बदल जाएगा। तो जितने भी आप साधक हो, जितने भी कार्यकर्ता हो, आप सब लोग इसकी योजना बनाओ और इस काम में लगो। 

देखो! मेरी तबियत ठीक नहीं है, बोल नहीं पाता हूं, सीढ़ी से चढ़-उतर नहीं पाता हूं, मुझे बड़ी कमजोरी है लेकिन मजबूरी में आया हूं। आपकी हार्दिक इच्छा थी कि हमारे बीच में आ जाएं। तो मैं कोई दर्शन देने नहीं आया हूं, दर्शन की हमको कोई लालसा नहीं है, हम तो आप साधकों का दर्शन करने चले आए हैं और हम आपको, साधक जितने भी हैं, सबको प्रणाम करते हैं। हमको आप कोई प्रणाम मत करो। तो हम तो आपके बीच में चले आए हैं।






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