हंसी खेल नही । कहानी संख्या 41.

✪   गुरु बनना हंसी खेल नही.  

एक महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक सांप घायल अवस्था में पड़ा हुआ था और उस पर तमाम चीटियां लग रही थी। सांप हिल सकता नहीं था, बेचैन होकर अपना फन उठाता था फिर गिर जाता था। महात्मा जी उसे देख कर रो पड़े। 

शिष्यों को समझ में नहीं आया। उन्होंने कहा, महाराज जी आप क्यों रो रहे हैं? महात्मा जी बोले कि कर्मों का ऐसा विधान है जिसे जीव अपनी अज्ञानता में नहीं समझ पाता है। 

यह सांप कभी गुरु बना था। महात्माओं की नकल की थी और इतने शिष्य बनाए शिष्यों से इसने हर तरह की तन-मन-धन की सेवा ली लेकिन उनकी आत्माओं का कल्याण न कर सका क्योंकि इसने अपनी आत्मा का भी कल्याण नहीं किया था। 

अब कर्मों के जाल में फँसकर वह गुरु सांप बना और उसके सारे शिष्य चीटियां बन गए हैं। अब यह चीटिया इस घायल सांप को काट रही हैं और कह रही हैं कि मेरी सेवाओं का बदला दो तुमने मुझे क्यों धोखे में रखा मेरा आत्म कल्याण नहीं किया और यह बेचारा साप ऐसी अधोगति में पढ़ा हुआ पीड़ा सह रहा है लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा है।

स्वामी जी महाराज ने इस कहानी को सुनाते हुए कहा कि गुरु बनना कोई हंसी खेल नहीं है, सबसे खराब काम है। चैले बनाकर उनकी सेवाओं को लेकर अगर आत्म कल्याण उनका न किया गया तो वह आत्माएं अपना बदला मांगती हैं। गृहस्थों के खून-पसीने की कमाई की रोटी खाकर जो साधु उनका कल्याण नहीं करता तो यह रोटियां उसके आँतों को फाड़ देती हैं।

 ( शाकाहारी पत्रिका वर्ष- ९, अंक-27. 21 जनवरी 1980 पृष्ठ संख्या-4 ) 

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Param purush jaigurudev ji 


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