जयगुरुदेव
11.06.2024
प्रेस नोट
ठीकरिया (जयपुर)
*सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने समझाया दान-पुण्य से पाप कैसे बन जाते हैं*
*कर्मों की वजह से भजन से दूर होने पर दुनिया का भूत सवार हो जाता है*
इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि लक्ष्मी का रुपया पैसा का यह सिद्धांत है कि जब अच्छी जगहों पर खर्च करते रहते हैं तब तो रुकी रहती है और नहीं तो वही लक्ष्मी, माया की जो चेली है, वही माया अंदर में लोभ-लालच पैदा कर देती है और उसी में धन इधर-उधर चला जाता है और उसी से हो जाता है पाप।
बहुत से लोगों को नहीं मालूम है कि पाप कैसे बन जाता है। यह भी थोड़ा बता देता हूं। जैसे दान-पुण्य पर लोग विश्वास करते हैं। कोई भी आ गया तो दान दे दिया। लेकिन अगर उसने वो रुपया-पैसा हत्या पर खर्चा किया तो बजाय पुण्य के पाप लग जाता है। कोई मान लो भिखारी है और मांस खाने, शराब पीने का आदी है। दिन में भिखारीपन, रेकी करते, मांगते रहते हैं और रात को चोरी करते हैं।
अब वो जो चोरी किया, किसी के यहां भीख मांगते समय औरत पर गलत नजर पड़ी और व्यभिचार कर लिया और दान में मिले पैसे को उसने अगर उन गलत कामों में खर्च कर लिया तो उसका पाप लग जाता है। तो अब पता तो चलता नहीं है कि कहां हमसे पाप और कहां पुण्य बन गया। कोई कहता धन मिल जाएगा, लॉटरी खुल जाएगी, चलो तुम बकरा काट करके चढ़ा दो तो धन के लालच में बकरा भी काट कर के लोग चढ़ा देते, ऐसे ही लक्ष्मी खिसक जाती है।
*सतसंगियों को भी वहीं सजा मिलेगी*
सतसंगियों के, सबके कर्मों को काटने की जरूरत है। देखो सतसंगी अगर कर्म वाले रह जाएंगे तो सतसंगियों को भी वहीं सजा मिलेगी। इसलिए जो भी नामदानी है, सबको इसमें लगना चाहिए। लोगों की जान के बचाने में, प्रचार-प्रसार में लोगों को लगने की आवश्यकता है।
*लोग अपना कर्तव्य भूल जाते हैं*
इंद्रियों के स्वाद में 24 घंटे मस्त रहोगे तो फंस जाओगे। जैसे शहद से भरे कटोरे में एक मक्खी कटोरे के किनारे पर बैठ करके शहद को खाकर के उड़कर के चली जाती है और दूसरी मक्खी उसी में कूद पड़ती है, खूब खाती है जैसे आप खाने-पीने में लग जाते हो तो मन खाने-पीने में ही लगा रहता है।
बढ़िया-बढ़िया चीज ही खाने को मिलनी चाहिए। बच्चे में मन लग गया तो बच्चे को छोड़ नहीं पाते हो, ट्रेन छूट जाए, दफ्तर में लेट हो जाए, अधिकारी का डांट पड़े, दुकान से ग्राहक लौट जाए, इसकी कोई फिक्र नहीं रहती है। फंस जाते हो उसी में। पति, पत्नी, भाई, दोस्त के, किसी के भी प्रेम में, आदमी अपना कर्तव्य भूल जाता है।
कर्म ही नहीं करता है, कर्म भूल जाता है। तो ऐसे ही मक्खी शहद में कूदी, खूब पेट भर के स्वाद लिया, खाया, जबान से शहद का मिठास का पूरा स्वाद लिया लेकिन फंस गई, निकल नहीं पाई और उसी में मर गई, खत्म हो गई। ऐसे ही मरने-जीने के काम में मत लगे रहो। रहो गृहस्थ आश्रम में ही लेकिन उससे थोड़ा सा अलग रहो। काम सब करो लेकिन उससे थोड़ा समय निकाल करके गृहस्थी के 24 में से 2 घंटा समय निकाल करके ध्यान भजन कर लिया करो। जब जीवात्मा सतसंग सुनती है तब इच्छा जगती है, मन उधर से हटता है लेकिन जाने के बाद फिर उसी में फंस जाते हो।
*दुनिया का भूत कब सवार होता है*
गुरु के वचनों का पालन करो। देखो अलग-अलग लोगों के लिए कभी-कभी गुरु जब जरूरत पड़ता है, जब जनहित का काम करते हैं तब अलग-अलग आदेश देते हैं और कभी-कभी सबको एक तरह का आदेश दे देते हैं। नामदान देते समय भी गुरु महाराज कहा करते थे कि बच्चा रोज भजन करना। उपदेश जब करते थे, सतसंग सुनाते थे तब भी कहा करते थे बच्चा भजन रोज करना। दो-चार लाइन की चिट्टी में कहते थे भजन ध्यान सुमिरन रोज-रोज करते रहना। वह तो असल आदेश है।
अब भजन में जब मन नहीं लगता है या जब भजन नहीं हो पता है तभी दुनिया का भूत सवार होता है। चाहे वह मान सम्मान, धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा, जातिवाद, भाई-भतीजावाद, कौमवाद, एरियावाद, भाषावाद का हो तभी भूत सवार होता है। जब भजन में मन नहीं लगता है तो मन उधर चला जाता है। भजन ध्यान में मन क्यों नहीं लगता है? क्योंकि कर्म आ जाते हैं, कर्म नहीं बैठने देते हैं। कर्म शरीर से ऐसा बन गया है, चाहे जान में बन गया है, चाहे अनजान में बन गया हो, जो बैठने नहीं देता है। मन कर्म की वजह से पापी हो गया है तो मन लगता नहीं है। तब कर्मों को काटने के लिए सन्तों ने सेवा करने का रास्ता निकाला है।
https://www.youtube.com/clip/UgkxQ-9KERNsr6ETeBucptLrcDApuaEzF_91
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baba umakant ji maharaj |
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