*संगत की प्रार्थनाएं* (post no.9)

परम् पूज्य महाराज जी का आदेश...
*प्रार्थना रोज होनी चाहिए एवं २-३ प्रार्थना -*
*सभी प्रेमियो को याद होनी चाहिए।*
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● प्रार्थना 47 ●
jivan ka bhar hai
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जीवन का भार है सौप दिया,
गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।
यह विनती है पल- पल, छिन- छिन,
रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ।।१।।

अच्छा हो या बुरा हो,
ज्ञान हो अज्ञान हो।
हम तो अब आप ही के हैं,
गुरुदेव तुमहारे चरणों में।।
यह विनती है पल- पल, छिन- छिन,
रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ।।२।।

जप तप संयम सभी हम छोड़े,
नेम आचार सभी हम तोड़े।
अब लाज हमारी तुमको है,
गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।।
यह विनती है पल- पल, छिन- छिन,
रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ।।३।।

जाति पाति की लज्जा छोड़ी,
कुटुम्ब लाज की नीति तोड़ी।
अब कुछ रहा न कोई मेरा,
गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ।।
यह विनती है पल- पल, छिन- छिन,
रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ।।४।।

आस हमारी अबकी स्वामी,
जीवन सफल हो स्वामी हमारा।
मन मे आस तुम्हारी हो,
गुरुदेव तुम्हारे चरणों मे।।
यह विनती है पल- पल, छिन- छिन,
रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ।।५।।

सुरत डोर चरणन मे लागे,
चरण छोड़ कहीं और न जावे।
आस विश्वास तुम्हारी हो,
गुरुदेव तुमहारे चरणों मे ।।
यह विनती है पल- पल, छिन- छिन,
रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ।।६।।

शब्द डोर में लगे रहें,
चरण कमलों में पड़े रहें।
रज चरणों की बनी रहे,
गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।।
यह विनती है पल- पल, छिन- छिन,
रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में ।।७।।

जीवन का भार है सौप दिया,
गुरुदेव तुमहारे चरणों में।
यह विनती है पल-पल, छिन-छिन,
रहे ध्यान तुमहारे चरणों में ।।


● प्रार्थना 48 ●
Jo Ham bhale bure to tere
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जो हम भले बुरे प्रभु तेरे--२
तुम्हैं हमारी लाज-बड़ाई, विनती सुनी प्रभु मेरे।
जौ हम भले बुरे प्रभु तेरे....

सब तजि तुम शरणागत आयो, दृढ़ करि चरण गहेरे।
जौ हम भले बुरे प्रभु तेरे....

तुम प्रताप बल बदत न काहू, निडर भये घर चेरे।
जौ हम भले बुरे प्रभु तेरे....

और देव सब रंक भिखारी, त्यागे बहुत अनेरे।
जौ हम भले बुरे प्रभु तेरे....

सूरदास प्रभु तुम्हरी कृपा तै, पाए सुख जु घनेरे।
जौ हम भले बुरे तो तेरे....


● प्रार्थना 49 ●
Jab dar pe tumhare hi
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जब दर पे तुम्हारे ही अधमों का ठिकाना है।
फिर मेरी ही किस्मत में क्यों रंज उठाना है॥

तारोगे तो तर लेंगे, छोड़ोगे तो बैठे हैं।
दरबार से अब हरगिज उठकर नहीं जाना है॥

अपनी तो कोई करनी निभने की नहीं भगवन।
जैसे भी निभाओगे अब तुमको निभाना है॥

फरियादों को सुनने में है कौन सिवा तेरे।
जब तुम न सुनो मेरी फिर किसको सुनाना है॥

दृग ‘बिन्दु’ की शक्लों में
हैं ख्वाहिशें इस दिल की।
जरिया तो है आँखों का आँसू का बहाना है॥

जब दर पे तुम्हारे ही अधमों का ठिकाना है।
फिर मेरी ही किस्मत में क्यों रंज उठाना है॥


● प्रार्थना 50 ●
Jag me guru saman nahi
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जग में गुरु समान नहिं दाता।।
वस्तु अगोचर दई मेरे सतगुरू, भली बताई बाता।

काम, क्रोध कैद करि राखे, लोभ को लीन्हों नाथा।।

काल्हि करे सो हालहिं करिले, फेरि मिले न यह साथा।

चौरासी में जाय गिरोगे, भुगतो दिन औ राता।।

शब्द पुकार पुकार कहत हैं, करि ले सन्तन साथा।।

सुमिरन बन्दगी कर साहिब की, काल नवावै माथा।।

कहैं कबीर सुनो भई साधो, मानो बचन हमारा।।

परदा खोल मिलो सतगुरु से, उतरो भव जल पारा।।
जग में गुरु समान नहिं दाता।।


● प्रार्थना 51 ●
Bhakti karte chute mere pran
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भक्ति करते छूटें मेरे प्राण गुरु जी यही माँगू सदा,
रहे जनम जनम तेरा ध्यान गुरु जी यही मांगू सदा ।।१।।

तेरी भक्ति मे खुद को मिटाता चलूं,
तेरी महिमा निरंतर सुनाता चलूँ ।
तेरा गाऊँ सदा गुणगान गुरु जी यही मांगू सदा ।
भक्ति करते छूटें मेरे प्राण गुरु जी यही माँगू सदा ।।२।।

तेरा मुखड़ा निरंतर निहारा करुँ,
तेरी मूरत को अन्तर मै धारा करुँ ।
देना आकर के दर्शन दान गुरु जी यही मांगू सदा ।।
भक्ति करते छूटें मेरे प्राण गुरु जी यही माँगू सदा ।।३।।

मेरी आशा निराशा करना नही
मेरे अवगुण को चित्त मै धरना नही ।
मेरे मेटो भरम अज्ञान गुरु जी यही मांगू सदा ।।
भक्ति करते छूटें मेरे प्राण गुरु जी यही माँगू सदा ।।४।।

मेरे पाप और ताप मिटा देना,
मुझको चरणों का सेवक बना लेना।
छूटे काम क्रोध मद मान,
गुरुजी यही मांगू सदा।।
भक्ति करते छूटें मेरे प्राण गुरु जी यही माँगू सदा ।।४।।

काल माया के झूला मे झूलूँ नही
निश दिन तेरे चरणों को भूलूँ नही ।
दाता देना यही वरदान गुरु जी यही माँगू सदा ।।

भक्ति करते छूटें मेरे प्राण गुरु जी यही माँगू सदा ।
रहे जनम जन्म तेरा ध्यान गुरु जी यही माँगू सदा ।।५।।


● प्रार्थना 52 ●
Kab tak rahoge ruthe
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कब तक रहोगे रूठे विनती सुनो हमारी,
कुछ तो हमें बता दो क्या भूल है हमारी ।।१।।

सब लोक लाज छोड़ा एक गुरु से नाता जोड़ा,
मुख मोड़ आप बैठे बिगड़ी दशा हमारी ।।२।।

पापी हृदय पिघलकर आँखों से निकल आया,
इन आँसुओ की माला लो भेंट है तुम्हारी ।।३।।

पतितों को तारते हो पापों की क्षमा करके,
क्यों हो गुरुवर रूठे आई हमारी बारी ।।४।।

मै भिक्षु हूँ तुम्हारा दाता हो स्वामी मेरे,
खाली न मुझको भेजो होगी हँसी तुमहारी ।।५।।


● प्रार्थना 53 ●
Kabhi na kabhi satguru
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कभी न कभी सतगुरु प्यारे मिलेंगे,
जीवन के एक दिन सहारे मिलेंगे।।
कभी ना कभी सतगुरु प्यारे मिलेंगे.....

तड़पता हूं दिन-रात रट यह लगाए,
अगर प्यार की है तो प्यारे मिलेंगे।।
कभी ना कभी....

तरसते हैं जिनके लिए यह फरिश्ते,
वही प्यार के परवाने मिलेंगे।।
कभी ना कभी...

बसा ले तू नैनों में इनकी यह मूरत,
इसी मोहिनी में आधारे मिलेंगे।।
कभी ना कभी...

नहीं रह सकेंगे अब हमारे बिना वो,
हरिहार के एक दिन द्वारे मिलेंगे।।
कभी ना कभी....

इसी याचनाई में जीवन बिताई,
दयालु दया सिंधु द्वारे मिलेंगे।।
कभी ना कभी सतगुरु प्यारे मिलेंगे ।
जीवन के एक दिन सहारे मिलेंगे।।


● प्रार्थना 54 ●
Karo ri jatan sakhi sai
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करो री जतन सखी साईं मिलन की -२ ।।१।।

गुड़िया गुड़वा सूप सुपलिया,
तज दे बुद्धि लड़कैयां खेलन की।
करो री जतन सखी साईं मिलन की ।।२।।

देवता पित्तर भुइयां भवानी,
यह मारग चौरासी चलन की ।
करो री जतन सखी साईं मिलन की ।।३।।

ऊँचा महल अजब रंग बंगला,
साईं की सेज वहाँ लागी फूलन की।
करो री जतन सखी साईं मिलन की ।।४।।

तन मन धन सब अर्पण कर वहाँ,
सूरत सम्हाल पड़े पइयाँ सजन की।
करो री जतन सखी साईं मिलन की ।।५।।

कहें कबीर निर्भय होय हंसा,
कुंजी बताऊँ तोहे ताला खोलन की।
करो री जतन सखी साईं मिलन की ।।६।।


● प्रार्थना 55 ●
Kai janmo se bula rahi hu
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कई जनम से बुला रही हूं,
कोई तो रिश्ता जरूर होगा।
अब तक नजरें मिला ना पाई,
मेरी नज़र का कसूर होगा ।।

तुम ही तो मेरे माता पिता हो,
तुम ही तो मेरे देवता हो ।
इतने सारे मैंने रिश्ते बनाए,
एक ना एक तो जरूर होगा ।।

आ जाओ सतगुरु बस जाओ मन में,
खाली जगह है मेरे दिल में ।
आंखों का पर्दा दूर करो तुम,
तब ही तो तेरा दर्शन होगा ।।

तू ही तो सतगुरु एक है अपना,
बाकी जगत है झूठा सपना।
आकर मुझको गले लगाओ,
तभी तो मुझको सरूर होगा।।


● प्रार्थना 56 ●
Khoj ri piya ko nij ghat me
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खोज री पिया को निज घट में।।

जो तुम पिया से मिलना चाहो,
तो भटको मत जग में ।
खोज री पिया को निज घट में।।

तीरथ बर्त कर्म आचारा
यह अटकावे मग में ।।
खोज री पिया को निज घट में।।

जब लग सतगुरु मिले ना पूरे
पड़े रहोगे अघ में ।
खोज री पिया को निज घट में।।

नाम सुधा रस कभी ना पाओ
भरमो जोनि खग में।
खोज री पिया को निज घट में।।

पंडित काजी भेख शेख सब
अटक रहे डगडग में ।
खोज री पिया को निज घट में।।

इनके संग पिया नहीं मिलना
पिया मिले कोई साधु समग में ।
खोज री पिया को निज घट में।।

यह तो भूले विषय बास में
भरम धसे इनकी रग-रग में ।
खोज री पिया को निज घट में।।

बिना संत कोई भेद ना पावे
वे तोहि कहें अलग में ।
खोज री पिया को निज घट में।।

जब लग संत मिले नहीं तुमको
खाए ठगौरी तू इन ठग में ।
खोज री पिया को निज घट में।।

सतगुरु शरण गहो तो, 
रलो जोत जगमग में।
खोज री पिया को निज घट में।।

जयगुरुदेव ★
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