जयगुरुदेव
प्रश्नः सुरत जब ऊपर सत्तलोक को जाती है तो मार्ग में क्या क्या लीलायें देखने में आती हैं?
उत्तर- जमीन व आसमान के पर्दे बदल जाते हैं। ज्योति से भरा हुआ आसमान व पृथ्वी नजर आती हैं। पृथ्वी के कण कण ज्योति से पूर्ण होते हैं। पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश का बना हुआ कोई भी सामान वहां पर नही होता है। सभी तत्व चिन्मय स्वरूप होते हैं। जिस तरह से नाटक के पर्दे गिरते व खेल होते हैं उसी तरह त्रिकुटी महल में क्षण क्षण में पर्दे गिरते व उठते हैं।
श्री प्रभु की योग माया विविध प्रकार के अनिवर्चनीय लीलाओं को दिखलाती है जिसे देखकर साधक मस्त हो जाता है। दीन और दुनिया की खबर उसे बिल्कुल नहीं होती। ख़ुशी का फूला बदन नहीं समाता है। जिस लीला को तीन लोक चौदह भवन में न कभी देखा है न कभी सुना है जो मन में न समाता है न वर्णन में आता है उस अद्भुत तमाशे को देख कर कह कहा मार मार कर उछल-उछल कर हंसता है।
प्रश्नः - उन अगाध लीलाओं का कुछ वर्णन ?
उत्तर- पांच रंग की पृथ्वी ज्योति से भरी हुई नजर आती है। जो नीले पीले सुर्ख सब्ज सफेद रंग के होते हैं। इन्हीं रंगों की विविध प्रकार की फुलवारियां और इन्हीं पांचों प्रकार के रंगों के पक्षी भी होते हैं। नीले पीले सुर्ख सब्ज सफेद रंगों के नर नारियां भी होती हैं। पशु जगत भी इन्हीं रंगों से भरा हुआ होता है।
जितने पक्षी देखते में आते हैं वे कोई भी एक दूसरे से मिलते हुए नजर नहीं आते । उनके अंग अंग में विविध प्रकार की कारगीरियां भी होती हैं जो विद्युत छटा से पूर्ण होती हैं। जिनके हर एक वृक्ष फल पत्ता लता डाली छाल रेशे सब कारीगिरियां से भरे होते हैं और विद्युत लता से लहराते हुअ नजर आते हैं।
कोई फूल कुम्हलाये हुए नहीं होते हैं। ताजगी ही ताजगी नजर आती है। हर वृक्ष की जड़ तना डाली सभी मखमल से भी कोमल होते हैं खुर्दरापन का नाम तक भी नहीं होता है। पृथ्वी भी मखमल के समान कोमल होती है। इन्हीं पांच रंगों की क्यारियां व सड़कें भी होती हैं। उस सृष्टि में कहीं कूड़े कचरे का नाम निशान नहीं होता है। कोई कहीं भी सड़क झाड़ते हुए नजर नहीं आता है। मल मूत्र से भरी नालियां व मोरियां कभी भी नजर नहीं आती हैं।
स्वर्ण और मणियों से जुड़े हुए नाना प्रकार के महल दिखाई पड़ते हैं। नाना रंग और कारीगिरियों से बने हुए झाड़ फन्नूस बिजली से जलते हुए नजर आते हैं। बिजली से बने हुए नाना प्रकार के बड़े विशाल फाटक विविध प्रकार की कारिगरियों से बने हुए बिजली से लहराते हुए दिखलाई पड़ते हैं।
पक्षियों के पर मारने से चलने से उड़ने से बोलने व आदमियों के चलने से व केशों के हिलने से आंखों की पलक ढकने से हंसने से बिजली के कण कण झरते हुए नजर आते हैं जिसकी शोभा व सुषमा वर्णन नहीं की जा सकती है।
जगह जगह पर नीेले, पीले, सुर्ख सब्ज, सफेद रंगों के वृक्षों के झुण्ड गुच्छे डालियों में लाखों में लटकते हुए नजर आते हैं। जगह जगह पर रत्नों की राशियां दमदमाती हुई चमकती हुई नजर आती हैं व दिखाई पड़ती हैं।
बड़े बड़े सरोवर और कुए तथा सरोवरों की सीढियां विविध प्रकार के रत्नों से जड़ी सरोवर भी सितारों से भरे हुए दिखाई देते हैं जिनको देखकर साधक का मन लट्टु व दिल बाग बाग हो जाता है। कहीं कहीं नीेले, पीले, सुर्ख, सब्ज सफेद रंग के फूल बिजली से दमकते हुए आसमान से बरसते हुए नजर आते हैं। कभी कभी पर्वतों से बिलौरी नहर छूटती हुई नजर आती है।
आतिशबाजियां भी विविध प्रकार की समय समय पर छूटा करती हैं। आतिश बाजियों का रूप उन्हीं नीले, पीले , सुर्ख सब्ज सफेद रंग के लट्टुओं के बने हुए हाथी व घोड़े नजर आते हैं। तथा लट्टुओं से ही चरखियां कभी गोलाकार दायें व बायें तथा ऊपर नीचे छूटती हुई नजर आती हैं और बीच बीच में उनमें गोले छूटते हैं और उनमें अद्भुत बिजली का प्रकाश होता हुआ नजर आता है और जो गोले छूटे थे वे फिर आकर उसी में जुड़ जाते हैं।
तथा घोड़े नाना प्रकार के तमाशे करते हुए नाचते हुए तथा बीच बीच में उनमें गोले छूटते हुए और बिजली के समान प्रकाश करते हुए नजर आते हैं। हाथी भी नीले पीले सुर्ख सब्ज सफेद रंग के लट्टुओं के बने हुए व अद्भुत तमाशे करते हुए नजर आते हैं। और उनके अंग अंग से गोले छूटते हैं। और वे गोले अत्यन्त प्रकाशवान हैं।
वह अगाध लीला अकथनीय है। साधक की ताकत नहीं जो वर्णन कर सके। जिस वक्त पर्दा खुलता है कोसों की जमीन नजर आती है । कहीं मोरों के बाग नजर आते हैं। मोरों का बाग यानी मोरों के बृक्ष लगे हुए होते हैं जिसमें फूल व पत्तों की जगह मोर के पंख ही लगे हुए नजर आते हैं जिनके हिलने से अद्भुत शोभा होती है। और उस बाग में सड़कें भी बड़ी सुन्दर तथा विविध रंगों की व रत्नों से विचित्र की हुई कोसों तक नजर आती हैं सुरत काम नहीं देती है ।
चारों तरफ दायें बायें ऊपर नीचे सर्वत्र ही वह सुन्दर और अनोखी सड़केें क्यारियां नजर आती हैं कि जिनके देखने से साधक का मन लालायित हो जाता है और देखने से मन तृप्त नहीं होता है। मन में यही गुब्बार उठते रहते हैं कि यहां से हटूं नहीं देखता ही रहूं। किन्तु यह अद्भुत दृश्य थोड़ी ही देर रहता है।
इसी प्रकार से नाना प्रकार के दृश्य तथा तमाशे नजर आते हैं। योग माया सीन फौरन गायब कर देती है जिसको कि साधक नहीं चाहता है। और यही हुलास पैदा होती है कि देखता ही रहूं। देखते देखते नेत्र तृप्त नहीं होते हैं। कभी कभी पर्वत भी देखने में आता है कि जिसमें शिखर से लेकर नीचे तक सीढ़ियां बनी हुई होती हैं।
उन सीढ़ियों पर सुन्दर सुन्दर सजे हुए सिंहासन कतार से लगे हुए नजर आते हैं जो कि स्वर्ण से बने हुए मणियों से जड़े जिनके ऊपर सब्ज सफेद सुर्ख रंग से देवी और देवता विविध प्रकार के वस्त्र और आभूषणों से सजे हुए और नाना प्रकार के किरीट और मुकुट लगाये हुए नजर आते हैं।
यह भी दृश्य बड़ा ही अनोखा है। कभी कभी सुन्दर से बाग भी नजर आते हैं जिसमें बड़े ही सुन्दर रंगीन बृक्ष लगे हुए होते हैं। जिस बृक्ष की डालियों में बजाय फल व फूल के सुन्दर नारी और नर विविध प्रकार के वस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित किरीट व मुकुट व कुण्डल पहने हुए वृक्ष सहित झूम झूम कर नृत्य करते हुए नजर आते हैं।
कभी कभी श्री रामचन्द्र व श्रीकृष्ण जी की मनोहर झांकी अद्भुत छटा से पूर्ण दिखाई पड़ जाती है जिसे देखकर साधक धन्य धन्य हो जाता है। कभी सुन्दर सुन्दर विविध रंगों के पुष्पों से गुथे हुए हार व गुलदस्ते जिनमें मणियां गुथी हुई होती हैं आसमान से बरसते नजर आते हैं। कभी कभी श्वेत वर्ण के झण्डे सुनहरे काम में रचे हुए विविध प्रकार के कारिगरियों से बने हुए आसमान में फहराते हुए नजर आते हैं।
पंच तत्व के पच्चीस विषय
1 आकाश तत्व- अन्तःकरण, चित्त, मन, बुद्धि, अहंकार।
2 वायु तत्व- प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान।
3 जल तत्व- शब्द, स्पर्ष, रूप, रस, गन्ध।
4 अग्नि तत्व- आंख, कान, जीभ, त्वचा।
5 पृथ्वी तत्व- हाथ, पांव, मुंह, गुदा, लिंग।
इन पच्चीस भोगों के साथ पच्चीस विषय
1 अन्तःकरण का विषय- निर्विकल्प
2 मन का विषय- संकल्प विकल्प
3 चित्त का विषय- अनुसंधान
4 बुद्धि का विषय- निश्चय
5 अहंकार का विषय- करतूत
6 प्राण का विषय- चलब
7 अपान का विषय- छोड़ब
8 समान का विषय- बैठब
9 उदान का विषय- उठब
10 व्यान का विषय- पौरब
11 कान का विषय- शब्द, सुनब
12 आंख का विषय- देखब
13 नाक का विषय- सूंघब
14 जीभ का विषय- बोलब
15 त्वचा का विषय- स्पर्श
16 शब्द का विषय- राग, सुर
17 स्पर्श का विषय- मृदुल, शीतल
18 रूप का विषय- सुन्दरत्व
19 रस का विषय- स्वाद
20 गंध का विषय- सुवास, प्रसन्नत्व
प्रश्नः भूल भुलैया किसे कहते हैं?
उत्तर- इस भूल भुलैया के भेद को कोई नहीं जानता है केवल सतपुरुष सतगुरु दयाल ही जानते हैं। उनके अनुग्रह से जो जान लेता है वह सिन्धु से पार हो जाता है।
प्रश्न - भूल भुलैया का रूप ?
उत्तर- सर्वप्रथम काल भगवान से ओंकार की उत्पत्ति हुई। ओंकार से समस्त प्रपंच उत्पन्न हुआ। सत्त सदानंन पद से जहां पर कुछ भेद नहीं है उसने काल के देश में नाना नाम, नाना रूपों में उत्पन्न करके अनन्त भेद उत्पन्न कर दिया। इस काल के देश में द्वेत का राज सर्वत्र ही दिखाई पड़ता है। यही भूल भुलैया है।
✡ नान भेद - सृष्टि का रहट चक्र
सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग, ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य, शूद्र, हिन्दु, तुर्क, जैनी, इसाई, बौद्ध, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शक्ति, सूर्य, गणेश, सर्गुण, ब्रह्म, निर्गुण, ब्रह्म, नाना देवी, नाना देवता, नाना तीर्थ, नाना मूर्ति, नाना उपासना, नाना ज्ञान, नाना कर्म, नाना जप, नाना तप, नाना यज्ञ इसकी गणना कहां तक कर मैं दिखलाऊं इनका कोई अन्त नहीं है।
प्रश्न - काल किसे कहते हैं?
उत्तर- जो बारम्बार सृष्टि को उत्पन्न करके पालन करता है और पालन करके निर्दयी होकर प्रलय कर देता है उसको काल भगवान कहते हैं।
जयगुरुदेव
शेष क्रमशः अगली पोस्ट 31. में..
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Parmarthi vachan sangrah
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