जयगुरुदेव
06.03.2024
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
*जयगुरुदेव सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया काल और माया के अनेक रूपों के जगत जाल से जीव के निकलने का उपाय*
सर्वज्ञ, सर्व समर्थ, सर्वत्र विराजमान, समय के समर्थ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
माया का बड़ा रूप है। माया किसको कहा गया? रूपया पैसा को माया कहा गया। रूपया पैसा ही सोना चांदी हीरा मोती जवाहरात, जमीन जायदाद खरीदवाता है तो वो दूसरे रूप में माया हो जाती है, वो जड़ माया हो जाती है। कल (सतसंग में आपको) सुनाया था कि जमीन जायदाद, हाठ हवेली हो गई तो उसी में आदमी फंसा रहता है।
तो यह माया का पसारा है। "गो गोचर जहां मन लग जाई, सो सब माया जानो भाई"। जहां तक ये मकान हाठ बाजार, दुनिया, दुनिया की चीजें दिखाई पड़ती है वो सब माया ही है, माया का ही पसारा है। और दूसरी माया औरतों को कहा गया। माया का कई रूप है, ऐसे काल का भी रूप है।
लड़की जब पैदा हुई तो वो भी माया ही है। देखो कितना मोह लड़कियों से हो जाता है। बच्चियां (औरतें), लड़कियों से उतना मोह नहीं करती है जितना पुरुष मोह करता है। दो बच्चे- लड़का और लड़की हो और कहा जाए उठाओ इनको, दोनों रो रहे हैं तो पत्नी लड़के को और पति लड़की को उठाएगा। उनसे ज्यादा प्रेम होता है। लड़कियां सेवा भी करती है। लड़का बैठा रहेगा, नहीं उठेगा और लड़की दौड़ करके रोटी बना करके, पानी लेकर के आ जाएगी, अगर गर्मी से आये हो तो पंखा लेकर आ जाएगी, झलने लगेगी।
तो ये सब क्या है? ये सब सेवा करके वश में करने प्रेम बढ़ाने वाले गट्स (गुण) होते हैं उसमें। माया इस धरती पर पैर रखते ही सबसे पहले मां के रूप में मिली फिर बहन, पत्नी, बेटी के रूप में मिली। माया साथ नही छोड़ती है। जब तक इस दुनिया में आदमी रहता है तब तक माया से छुटकारा नही पा सकता है। माया पैदा होते ही मां के रूप में मिलती है और कब्र पर पहुंचा करके पत्नी फिर छुटकारा पाती है। कहने का मतलब कि ये सब माया का पसारा है। माया का ये सब रूप है। जब समझदारी आ जाती है, जब रहना मालूम हो जाता है तो जैसे दुष्टों के बीच में ही सज्जन रहें हैं।
*जयगुरुदेव नाम की शक्ति का प्रमाण*
इतिहास बता रहा है। राक्षसों के बीच में ही तो विभीषण थे। वो राम के भक्त थे, राम की पूजा करते थे। उनका प्रमाण मिलता है। जब हनुमान जी लंका जलाने गए थे, कहा यहां भी राम के भक्त हैं, तो लंका दहन में लंका पूरी जल गई लेकिन विभीषण का घर बच गया। क्योंकि उस समय राम नाम में शक्ति थी, (घर पर) राम नाम लिखा हुआ था। इसलिए इस समय जयगुरुदेव नाम में शक्ति है।
ऐसे लोगों ने अपना अनुभव बताया कि भूसा (चारा) भरा हुआ था। पूरे गांव में आग लग गई। उधर के घर जल गए। लपटें इस तरह उठें कि मालूम पड़े कि अभी छप्पर आग पकड़ लेगा और हमारा फूस का घर जलने लगेगा। लेकिन घर पर गेरू से जयगुरुदेव नाम लिखा हुआ था। हमारे एक मामाजी थे।
उन्होंने हमें खुद बताया, इस बात को। वो सतसंगी नहीं थे। उस समय हम नए-नए नामदान लिए थे। जब हमारे घर आए और बोले कि भैया मान गए जयगुरूदेव नाम को। हमारे गांव में ऐसी-ऐसी घटना हुई। अब आप इस बात को समझो कि शक्ति थी। विभीषण उन्ही के बीच में रहते थे। कहने का मतलब ये है कि जब जानकारी हो जाती है तो मनुष्य रहता इसी के बीच में है (लेकिन बचा रहता है)।
*साधना में काल और माया के जालों का इशारा*
अब आप कहो कि भाई हमको तो माया के बीच में ही रहना है, इसी जगत जाल में रहना है, हमको कैसे छुटकारा मिलेगा? मिलेगा। ये माया का पसारा है। जगत जाल में जीव फंसा हुआ है। ये पिंडी शरीर है। इससे जब आत्मा निकलेगी, जो जड़ और चेतन की गांठ अंदर में लगी बंधी हुई है, जब वो खुलेगी, आत्मा ऊपर प्रकाश में जाएगी, अंड लोक में पहुंचेगी तब भी माया का असर रहेगा लेकिन उस समय ये माया कमजोर हो जाएगी। सबसे ज्यादा पिंडी माया ही सताती, परेशान करती है।
अंडी माया कमजोर होती है, इतना परेशान नहीं कर पाती है। मन की डोर माया के हाथ में है, ये अंडी मन हो जाता है तो ये भी कमजोर पड़ जाता है। लेकिन जब इनके नाके से आगे बढ़ते है तब हँस-हँस माया जाल बिछाया। निकसन की कोई राह न पाया।। निकसन का, निकलने की कोई राह नहीं मिल रही है। तब राह मिल जाती है लेकिन कदम-कदम पर रोड़े हैं। जब जीव काल के नजदीक पहुंचेगा तब वो काल जाल फैला रहा है और जो गया उसको भ्रम-भूल में (डालकर), किसी भी तरह से लौटा रहा है, उसी में फंसा रहा है कि जीव आगे न जाने पाए। मालिक का भी रूप धारण कर लेगा, अपने ही लोक में सतलोक बना देगा जहां इतनी साधन सुविधा है कि जीव उसको छोड़ कर के, ऐश-आराम को छोड़ कर के आगे नहीं जा सकता है।
जीवों के लिए ये सब जाल बिछा हुआ है। यही कारण है कि जब से जीव आया तब से निकल नहीं पाया। और भी अगर आगे बढ़ गया तो महाकाल का जाल। "नीलम कुंड अमिद नर पाला, महाकाल ने जाल पसारा" तो समझो उधर के जाल में तो बंधन ही बंधन, जकड़ ही जकड़ है आगे। टूटेगा कैसे? टूटेगा उस शक्ति से, उस ताकत से जो समय के महापुरुष देते हैं। वक्त के गुरु, वक्त के महापुरुष जो ताकत देते हैं, उससे ये काम होता है।
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बाबा उमाकान्त जी महाराज के जनहितकारी परमार्थी वचन |
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