जयगुरुदेव
✦ वो दिन जब याद आते हैं
खितौरा में अमृत कुआ के पास जो मन्दिर है, वहां खड़े होकर अपना पैर जमीन पर पटकते हुए बाबा जयगुरुदेव जी ने कहा था कि ‘मैं खुले आसमान के नीचे आया था।’ मथुरा में मामी ने कहा था कि बाबा जी के ये शब्द आज भी चर्चा होने पर मेरे कानों में गूंजने लगते हैं और स्वामी जी का चेहरा मेरे सामने खड़ा हो जाता है।
-- शाकाहारी पत्रिका 7 से 13 जुलाई 2013
✦ स्वामी जी ने कहा-
⍟ आप लोग अपने साधन भजन में लगे रहो, इधर उधर की बातों में अफवाहों में मत पड़ो। आप यह समझिये कि बाबाजी आप को क्या बताना चाहते हैं। वह कौन सी योग विद्या है जिसके करने से परमात्मा की प्राप्ति होती है। भ्रम में पड़े रहोगे तो आजकल करते करते जीवन समाप्त हो जाएगा।
⍟ जो बातें अच्छी हैं वह अच्छी ही निकलेंगी भले ही आप अपनी अज्ञानता में ये कह दो कि बाबा जी पढ़े लिखें नहीं हैं। पढ़े लिखे भले न हों पर अच्छाई बुराई तो पहचानते ही हैं। उससे अधिक की जरुरत नहीं है।
⍟ आज देश में इतने बड़े बड़े स्कूल कालेज, विश्वविद्यालय खोल दिए गए हैं पर उससे देश का नुकसान ही हो रहा है। इस बात को आप भी समझ रहे हो और रो रहे हो। पढ़े लिखे होकर आप सबको धोखा दे रहे हो। अच्छे बुरे की पहचान नहीं रह गई।
⍟ अगर सृष्टि को आनंदमय बनाना चाहते हो, पवित्र बनाना चाहते हो, सेवा सदाचार लाना चाहते हो तो बखुशी अपने विचारों को बदल देना चाहिए। कानून और डण्डे से किसी को बदला नहीं जा सकता है। जो डण्डा खाकर जागता है, होश में आता है उसे कोई यश नहीं मिलता, आप अपने को बदल दो, आप को देखकर लोग बदल जायेंगे। इसमें आपकी कीर्ति होगी, आपको यश मिलेगा।
✦ क्या आपको पता है कि-
सतयुग आगमन यज्ञ वाराणसी में गंगा के तट पर दशाश्वमेध घाट के उस पार 5-6 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में आयोजन किया गया था, जिसमें 2 करोड़ से ऊपर स्त्री-पुरुष व बच्चों ने भाग लिया। गोलाकार यज्ञ-स्थल में 277 यज्ञ कुण्ड थे जिसमें 1500-2000 तक भक्तजन यज्ञ करते थे। आहुति प्रातः 8 बजे से सायं 5 बजे तक चलती थी तथा एक घण्टे की आहुति के बाद यज्ञ कुण्डों पर दूसरे भक्त स्थान ले लेते थे, इस प्रकार कार्यक्रम के 11 दिनों में लाखों भक्तों ने यज्ञ में भाग लिया। यज्ञ स्थल जिसका घेरा लगभग 1 किलोमीटर था उसके चारों ओर लाखों की संख्या में भक्तजन खडे़ रहते थे। तब वह प्रभु मनुष्य रूप धारण करके पृथ्वी पर अवतरित होता है और अच्छे लोगों की रक्षा करता है और बुरे लोगों का विनाश करता है।
✦ यादों के झरोखे से- सरिता
बात तब की है जब 1500 मील की सायकिल यात्रा निकली थी सोनपुर से दिल्ली तक। लखनऊ में यात्रा का पड़ाव मकबरा ग्राउण्ड पर पड़ा था। स्वामी जी महाराज ने मुझसे कहा कि चल माडल हाउस (मेरा निवास स्थान) मैं वहां से फ्रेश होकर मैदान में आऊंगा।
हम घर पर आये। स्वामी जी महाराज बाहर चले गए और मुझसे कहा कि मेरे कपड़े निकाल देना। मैंने स्वामी जी का पूरा ड्रेस निकाल कर रख दिया। स्वामी जी महाराज जब आये तो मैंने जो धोती निकाली थी उसे न पहनकर स्वयं एक दूसरी धोती निकालकर पहना तब स्वामी जी चाय पिया करते थे। स्वामी जी तैयार हो गए और चाय मांगा।
मैं चाय लेकर गई। मेरी नजर स्वामी जी की धोती पर पड़ी तो मैंने देखा कि जो धोती मैंने निकाली थी उसे न पहनकर स्वामी जी ने स्वामी जी ने दूसरी धोती पहनी थी जो मोटी और साधारण सी थी। मेरे शब्दों में वह रफ धोती थी। मुझे वह धोती अच्छी नहीं लगी। मैंने कह भी दिया कि स्वामी जी आप ने यह कैसी धोती पहन ली ? ये अच्छी नहीं लग रही है।
स्वामी जी ने मेरी तरफ देखा और ऐसे प्यार भरे शब्दों में कहा कि नहीं देख ये धोती तो कितनी अच्छी है और कहकर अपनी धोती सहलाने लगे। फिर कहा कि सच ये धोती बहुत अच्छी है और मुस्कुराते हुए बोले कि ये मोटी है न। इससे मुझे बड़ा आराम मिल रहा है। मेरे घुटने में दर्द होती है उसको ये गर्म रक्खेगी कहकर स्वामी जी महाराज उस धोती को सहलाते रहे और हमारी तरफ देखते रहे।
मैं सोचने लगी कि किसी प्रेमी ने बड़ी श्रद्धा से स्वामी जी को अर्पित किया होगा। स्वामी जी महाराज तो श्रद्धा और भाव भक्ति के भूखे हैं, क्वालिटी के नही। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।
-- शाकाहारी पत्रिका 21 से 27 जुलाई 2010
✦ बाबाजी का पत्र मथुरा आश्रम 29.11.1977
प्रेमी भक्तों साधकों, नाम के प्यारों,
सदा हमारा स्नेह तुम्हारे साथ.
नाम की कमाई में लगे रहो। जीवन अनमोल है। प्रभु की दया से बहुत दिनों के बाद मनुष्य शरीर भजन के लिए निरंजन भगवान ने किराये पर दिया है। तुम्हारा सौभाग्य है जो नामों का भेद मिला, प्रभु की दया गुरु पर हुई और गुरु ने आप पर कृपा की, सुरत शब्द योग की साधना के लिए प्रेरणा दी। सुरत शब्द योग सार है। नाम के साथ सुरत को जोड़ने में तड़प की जरुरत है। शब्द से आशनाई व गुरु से प्रथमआशनाई, गुरु के बाद शब्द के साथ हो जाएगी।
मांसाहार से अनेक कुविचार
मांस का आहार महान दूषित गन्दा है। मन, बुद्धि, चित्त गन्दे होते हैं। सुरत पर भारी कालिमा का पर्दा जमा होता है। अनेकों जन्मों का यह पर्दा हटता नहीं है। कर्म के भोगने पर ही खतम होगा। जीव क्या करे ? मन भोग में लिप्त है। विचार साथ नहीं देते हैं क्योंकि मन, बुद्धि गन्दे हैं।
ह./तुलसीदास
✦ स्वामी जी ने कहा-
⍟ जब जीवात्मा अपने निज घर सत्तलोक में पंहुच जाती है फिर वापिस नहीं आती। यदि सत्तपुरुष किसी जीवात्मा को भेजते हैं तो जीवों को पटाने के लिए । जीवात्मा अपना कार्य कर फिर अपने देश सत्तलोक वापस लौट जाती है।
⍟ मन की शक्ति का स्थान अन्तःकरण में है और इसका प्रतिबिम्ब नीचे हृदय चक्र में उतरता है और यहां से आगे संसार में विचरण करता है।
⍟ नामदान एक बीज बोने के समान है जिसके ऊगने के लिए सत्संग और एकाग्रता के जल की जरुरत है और फलने फूलने के लिए प्रेम तथा विश्वास की। अगर नाम ली हुई आत्मा को यह जल नहीं मिलता और वह संसार के साथ बंधी रहती है तो संभव है कि इस बीज के ऊगने में देर लगे लेकिन यह नाम का बीज कभी नष्ट नहीं होता। जीव के कर्म बीज के बढ़ने और फूलने फलने में रुकावट पैदा कर सकते हैं पर जब कर्मों का भार हल्का हो जाता है तो बीज जरूर अंकुरित होता है।
⍟ सारा विश्व धर्म की तरफ झुक जाएगा। सब लोग सुख शान्ति की तलाश करेंगे और शान्ति अब यहीं से मिलेगी।
✦ क्या आपको पता है कि-
⍟ सृष्टि के सभी जीवों को यहां तक कि देवी देवताओं से भी मनुष्य का जन्म उत्तम है। इंसान को परमात्मा ने अपनी शकल पर बनाया है। सृष्टि कर्ता और सारी सृष्टि उसके अन्दर है और उसे जीते जी इसी चोले में परमात्मा से मिलने का अधिकार प्राप्त है।
⍟ जीवनकाल में जब प्रारब्ध कर्म खतम हो जाते हैं तब मौत आ जाती है। मौत के बाद इस जन्म में जब क्रियामान कर्म के कुछ भाग तो आगामी जीवन के प्रारब्ध बन जाते हैं और क्रियामान का शेष भाग संचित कर्म मेंं जोड़ दिए जाते हैं। अगले जन्म की रुपरेखा इस प्रकार निर्धारित की जाती है। सुमिरन के समय शब्द को नहीं सुनना चाहिए। एक समय में एक ही काम करना है। सुमिरन के द्वारा तारा मण्डल, सूर्यमण्डल और चन्द्रमण्डल को पार करके गुरु स्वरुप का दर्शन किया जाता है। गुरु का स्वरुप सूक्ष्म अतिसुन्दर तथा प्रकाशवान है। गुरु स्वरुप के दर्शन के बाद सुमिरन का अन्त हो जाता है। सुमिरन साधक को इसके आगे नहीं ले जा सकता।
⍟ सन्तों की शक्ति का अनुमान लगाना असम्भव है। वो असम्भव को भी सम्भव कर सकते हैं और उनसे बड़ा कोई नहीं है।ईश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म, महाकाल सब उनके आधीन है और बराबर डरते रहते हैं। उनकी शक्ति का जलवा अन्तर में साधक देखते हैं।
⍟ भोजन से पहले अदरक को चिप्स की तरह कतर कर उसमें काला नमक मिलाकर चबा चबाकर खाने के बाद भोजन किया जाय तो अपच दूर होती है, पेट हल्का रहता है और भूख लगती है।
⍟ भजन बिना बावरे, तूने हीरा जनम गंवायो। सभी महात्माओं ने भजन पर जोर दिया है लेकिन भजन किसको कहते हैं। किसी को मालूम नहीं। हारमोनियम, ढोलक मंजीरे पर गाना गाने को भजन नहीं कहते। आसमानों के ऊपर से आवाज आ रही है, शब्द आ रहा है या आयतें उतर रही हैं उस संगीत के सुनने को भजन कहते हैं। उसी को नाम कहा जाता है। नाम परमात्मा के मुख से निकली आवाज है, वाणी है जिसे जीवात्मा सुनती है और यह वाणी निरन्तर दोनों आंखों के ऊपर तक आ रही है। इसको सुनने से कर्म नाश होते हैं, पाप धुलते है।
✦ स्वामी जी की रचना
जगेगा भारत जगेगा भारत भारत जगाने आ रहा।
आओ प्यारे आओ प्यारे जमाना बदलने जा रहा।।
समय से आओ समय से आओ समय तुम्हारा आ रहा।
बिगड़ चुके तुम बिगड़ चुके तुम, बताने तुमको आ रहा।।
दुखी हो तुम दुखी हो तुम, दुख तुम्हारा छुड़ाने आ रहा।
लड़ मरे तुम लड़ मरे तुम, मिलाने तुमको आ रहा।।
श्रद्धा भाव सब कुछ खो चुके तुम, तुमको दिलाने आ रहा।
प्रेम तुम्हारा सो चुका, प्रेम तुम्हारा जगाने आ रहा।।
आपस के प्रेम सब जा चुके, उन प्रेमों को देने आ रहा।
हो चुके तुम मुक्ति से निराश, उनको मुक्ति दिलाने आ रहा।।
पापों के बोझ थे जो न उठा सके, उन बोझों को उठाने आ रहा।
ईश्वर भक्ति जिनसे जा चुकी, उनको भक्ति दिलाने आ रहा।।
पुरुष सोचें सोचें नारियां, उनको जगाने आ रहा।
पति जो हो सुल्फा शराब, इनको छुड़ाने आ रहा।।
बिगड़ी जो तुम्हारी आदतें, इनको बदलने आ रहा।
झगड़े जो तुम्हारे घर घर के, इनको खतम करने आ रहा।।
जिन कर्मों को तू पहचान न सके, उनकी पहचान कराने आ रहा।
गुरु भक्ति से तुम हो दूर, वह गुरु भक्ति दिलाने आ रहा।।
✦ अभी समय है- रास्ता लेकर घर की ओर चल पड़ो
अपने सत्संग में परम पूज्य बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने कहा कि आप सबको सौभाग्य से यह समय मिला जो करते हो, कमाते हो, इकट्ठा करते हो यह सब छूट जाएगा। न खेती साथ जाएगी न बारी। बाल बच्चे, दोस्त, मित्र सगे सम्बन्धी कोई साथ जाएगा नहीं। न कोई मदद करेगा। ले जाकर हिसाब कर देगा, नर्का में भेज देगा। आपको वहां कौन बचाने जाएगा।
ईमानदारी मेहनत से काम करो। बच्चों की सेवा करो। जब काम ईमानदारी मेहनत से करोगे तो बरक्कत मिलेगी। खाने, पहनने, रहने को मिलेगा किसी चीज की कमी नहीं होगी। तुम भी स्वस्थ बच्चे भी स्वस्थ रहेंगे हम आपको रास्ता बता दें, भगवान का भजन कर लो।
हमारी तरफ देखो। शरीर में दो आंख, दो कान, दो नाक, कितनी हुई तीन। तो सबक अन्दर तीन आंख, तीन कान, तीन नाक हैं। तुमने बहुत कथायें सुनीं। किसी ने बताया कि तीन आंख, तीन कान, तीन नाक होते हैं।
जयगुरुदेव नाम हमारा नहीं- ये उस अनामी मालिक का नाम है जो हमेशा से मौजूद रहा- ‘‘एक अनीह अनामा, अज सच्चिदानन्द प्रभु धामा’’
बाबा जयगुरुदेव, उरई- 17 फरवरी 2006
शाकाहारी रहो - भजन करो।
-- शाकाहारी पत्रिका 21 से 27 अगस्त 2013
जयगुरुदेव
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