स्वामी जी की हिदायत ( शाकाहारी पत्रिका से 1.)

✶ स्वामी जी ने कहा

↳  इंसान के खून और पशुओं के खून में बड़ा अन्तर है। मांसाहार से पशुओं के खून के कीटाणु जब मनुष्य खून में मिल जाते हैं तब मनुष्य की बुद्धि पशुओं के समान हो जाती है और साथ ही अनेक बीमारियों का जन्म हो जाता है।

↳  जो प्रेमी नामदान ले चुके हैं उनको चित्त से चेतकर सत्संग सुनना चाहिए। सुनोगे और उसके मुताबिक काम करोगे तो जल्दी आपको लाभ होगा। सुनो और छोड़ दें इसलिए नहीं सत्संग सुनाया जाता। दूसरा ये कि आप अपना खान पीन सही रक्खो। संगदोष में पड़कर जो खराब खान पीन करने लगे तो ऐसे लोगों को नामदान नहीं लेना चाहिए, बल्कि उसकी और भारी सजा मिलेगी । अगर आप को खाना है तो पहले खूब खा पीकर जी भर लो। जब कुछ आनन्द नहीं मिल सके तब फिर पक्का इरादा बनाकर यहां आओ और जो बताया जाय उसका पूरा पूरा पालन करो । नामदान वहीं लोग लें जो अपना खानपीन शुद्ध रक्खे। सत्संगी जो नए लोगों को ले आते हैं उन्हें इन सब बातों को अच्छी तरह समझा दें।

↳  यहां ऐसे ही भीड़ नहीं लगती है। इन लोगों को कुछ मिलता है तब आते हैं। ये लोग अपनी आत्मा का कल्याण करवाना चाहते हैं। इनमें बहुत से ऐसे लोग भी बैठे हैं जिनकी तीसरी आंख खुली हुई है और ऊपर के देविक लोकों स्वर्ग, बैकुण्ठ आते जाते हैं

↳  भारत की जनता को और देश को मेरे ऊपर छोड़ दें। देश के अन्दर शराब बन्द हो जाएगी, मांसाहार बन्द हो जाएगा। शराब, मांस बन्द होगा तो बहुत सी बुराईयां खत्म हो जाएंगी, लोगों में धार्मिकता आएगी। धर्म और राजनीति दोनों साथ साथ चलेंगी तो देश की जनता का लाभ होगा।



✶ क्या आपको पता है कि-

↳  सन्त मत में दीक्षा यानि नामदान लेने से पहले मांसाहारी भोजन से परहेज करना होता है। नामदान लेने के बाद मांस, मछली, अण्डा सेवन करने वाला व्यक्ति बहुत बड़ा गुनाहगार होता है और इसकी माफी नही होगी।

↳  महात्माओं की वाणी कभी असत्य नहीं होती। इस कलयुग में कलयुग जाएगा और कलयुग में सतयुग आएगा। दोनों की जब टक्कर होगी तो महाभारत होगा और विनाश होगा। जो अच्छे लोग होंगे, विचारधारा और कर्म अच्छे होंगे वही बच पायेंगे।

↳  प्रातःकाल का समय भजन के लिए अच्छा होता है, वातावरण शान्त रहता है। महात्माओं ने कहा है कि प्रातःकाल की अमृत बेला में जो साधना की जाती है उससे आत्मिक उन्नति में बड़ी मदद मिलती है। मन की एकाग्रता के लिए अमृत बेला के समय को चतुर साधक बेकार नहीं जाने देते।


✵ बाबा जी की विनम्र प्रार्थना 

सदा सोचो! मौत पीछा कर रही है। मनुष्य शरीर यानि इंसानी जामा किराये का मकान है। मालिक की जीवात्मा यानि रुह इसमें बन्द की गयी है। बद कामों से यानि बुरे कर्मों से यह गन्दी हो गयी। किसी महात्मा फकीर की खोज करो वह तुमको सबकुछ देगा। तुम्हारे अन्दर तीसरी आंख है जब तक वो नहीं खुलेगी तब तक नजात यानि मुक्ति नहीं पा सकते। यह इंसानी जामा मिला है रुह को मालिक के पास पहुंचाने के लिए।

सच्चे हिन्दु जिनमें दया है, प्रेम है, सेवा है, सत्यता है। अहिंसा परमो धर्मः यह हिन्दुओं की जड़ है। 

सच्चा मुसलमान जिसके पास ईमान और रहम है, सच बोलता है, मेहनत मसक्कत की कमाई करता है, शराब की बून्द का एक कतरा भी नहीं लेता, रुहों का कत्ल नहीं करता, यह सच्चा मुसलमान है।

वक्त सबके लिए नाजुक है। मनुष्य शरीर में इस नाजुक समय से तभी रक्षा कर सकोगे जब भगवान का भजन करोगे। तुम्हारी अन्दर की आंख खुलते ही हिन्दुओं को स्वर्ग दिखाई देगा और मुसलमानों को बहिस्त। जीते जी यदि पा लोगे तो पहुंच जाओगे, शरीर छोड़ने के बाद कुछ नहीं मिलेगा। 

जो तुमने गुनाह यानि पाप कर्म किये हैं, उन नर्कों में यानि दोजख में जाकर भोगना होगा। सख्त सजा मिलेगी, वहा कोई भी तुम्हारी हिफाजत नही करेगा।

यह जो कुछ भी देख रहे हो, बाहर मनुष्य शरीर की आंखों से, इसमें से तुम्हारा कुछ भी नहीं है। वह एक सेकेण्ड में अपना मकान ले लेगा और सामान तुम्हारा सब पड़ा रहेगा। क्यों इकट्ठा करते हो धन और दौलत, इसे छोड़कर सब चले जाओगे। न हिन्दु की बुराई, न किसी तीर्थ स्थान की बुराई। हरि का घाट तुम्हारे आंखों के बीचों बीच में है । नदियों में नहाना चाहते हो- निर्मल पानी और आनन्द चाहते हो तो अपनी तीसरी आंख तो खुलने दो। 

बाबा जी की सभी इंसानों से यह विनम्र प्रार्थना है कि आपस में प्रेम मुहब्बत करें इस खिलकत को प्रेम मुहब्बत से खुशहाल बनायें। 
- बाबा जयगुरुदेव


✵ जयगुरुदेव समाचार

वर्ष 1970 में हजारों सायकिल यात्री 1200 मील का सफर करके 3 दिसम्बर को दिल्ली नगर में प्रवेश किया। दिल्ली के उप महापौर खन्ना जी ने स्वामी जी तथा यात्रियों का स्वागत किया। स्वामी जी ने अपने सन्देश में जो कहा वो इस प्रकार हैः

बड़ी खुशी का दिन है कि आ करके हमारे माननीय नगर प्रमुख ने हम सभी अतिथियों को स्वागत किया। हम खन्ना जी को विश्वास दिलाते हैं कि यात्री कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे नगर के नर नारी दुखी हों। हम जिस कार्य के लिये आये हैं वह यह है कि आज संसार के सभी नर नारी जल रहे हैं और चाहते हैं कि कैसे शान्ति और ठंडक मिले। हम इस उद्देश्य के लिये आये। 

सभी प्रकार के सामाजिक भाई भाई के, पुत्र-पिता के सम्बन्धों का सुधार होना चाहिए और सभी आन्दोलन हड़ताल समाप्त हो जाना चाहिए। श्रमिकों के आन्दोलन से सामान बनते नहीं जिससे हमारा नुकसान और देश का नुकसान होता है। आन्दोलन बन्द होने से हम आराम पायेंगे तथा यातायात, कागज तथा हर प्रकार के अन्य सामान बनेंगे। परस्पर प्रेम बढ़ जाएगा। बिना प्रेम के द्वेष खतम नही हो सकता। 

नगर के सभी लोगों से अनुरोध है और बताया जाता है कि इन यात्रियों द्वारा कोई ऐसा कार्य नहीं होगा जिससे इंतजाम में गड़बढी हो या निवासियों को तकलीफ हो। नगर निवासी हमारे हैं और हम आपके हैं। आप अपना समय हमें दें जिससे आपकी सेवा कर सकूं। आज सांयकाल के कार्यक्रम को देखकर जो जाएंगे वे सदा याद करते रहेंगे। सन् 72 तक एक करोड़ लोगों को शाकाहारी बना दूंगा।
3 दिसम्बर, 1970 को दिल्ली रामलीला मैदान में दिन के 11 बजे मानव धर्म की स्थापना बाबा जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा की गयी।

-- शाकाहारी पत्रिका 28 से 6 दिसम्बर 2012


✶ सवाल जवाब

स्वामी जी! सत्संगी का क्या फर्ज होना चाहिए ?
पवित्र आचरण ही आध्यात्मिक महल की नींव है। जब तक हम भोगों के गुलाम हैं तब तक परमार्थ के बारे में बातें करना हास्यास्पद है। चुम्बक चमकते हुए लोहे को आकर्षित करेगा न कि जंग लगे हुए लोहे को। इस प्रकार शब्द भी नाम भी निर्मल मन को खींचेगा जो वासनाओं की मैल से रहित है। परन्तु जब मन वासनाओं और इच्छाओं के कीचड़ से भरा रहता है वह उस लोहे के समान है जिसके ऊपर जंग और कीचड़ चढ़ा हुआ हो। 

परमार्थी जीवन के लिए पहला जरुरी कदम शुद्ध आचरण है। हम अपने दोस्तों सम्बन्धियों और स्वयं को धोखा दे सकते हैं लेकिन जो ताकत हमारे अन्दर है उसको धोखा नहीं दे सकते। सत्संगी का यह फर्ज है कि वह अपने मन पर सदैव चौकीदारी रक्खे और उसे कभी भटकने न दे। जिस प्रकार माता अपने बच्चे की निगरानी रखती है उसी प्रकार प्रेमी सत्संगी की भी अपने मन के ऊपर देख-रेख रखनी चाहिए। ऐसा जब वो करेगा तभी ध्यान भजन में सफलता मिलेगी।


✶ एक संस्मरण

एक आदमी रामायण को गालियां दे रहा था साथ ही साधु महात्माओं को भी गालियां दे रहा था। मैं उधर से निकला तो वह ओर जोर जोर से गालियां देने लगा। मैं उसके पास चला गया और पूछा कि भाई रामायण ने और साधु महात्माओं ने तुम्हारा क्या नुकसान किया है, क्या बिगाड़ा है जो तुम सबको गालियां दे रहे हो।

उसने गुस्से में कहा कि रामायण में क्यों गोस्वामी ने लिखा ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी।’ मैंने उससे धीरे से पूछा कि एक बात तुम सच सच बताना कि कल तुमने नौ बजे अपनी स्त्री को क्यों घूंसे मारा था ?

यह सुनकर वह मुझे चुपचाप देखने लगा। मैंने कहा कि सच बता दे। वह बोला कि वह बड़ी गंवार है। सीधे से कोई बात उसकी समझ नहीं आती। 

मैंने हंसकर कहा कि यही तो गोस्वामी जी ने लिखा है। फिर तुम उनसे क्यों चिढ़ते हो ? इस पर वह कुछ देर चुप रहा, कुछ सोचता रहा फिर बोला कि मुझसे बड़ी भूल हुई । अब मैं कभी साधू महात्माओं की और धर्म पुस्तकों की आलोचना नहीं करुंगा और न तो कभी बुरा भला कहूंगा।

-- शाकाहारी पत्रिका 7 से 13 दिसम्बर 2012


✶  स्वामी जी का आदेश

सभी प्रान्तों के सत्संगी नर-नारियों को सूचित किया जाता है कि समय के अनुसार खुद बुरे रास्ते से बचने का विचार रक्खें और दूसरों को भी प्रेरणा देते चलें। अपनी देवियों को साथ लेकर सत्संग में जावें और वापस ले जावें। किसी सत्संगी को आदेश नहीं दिया जाता कि वह स्त्रियों और उनकी बच्चियों से मेल जोल करें और घरों में घुसकर आजादी से बातचीत करें। 

जिन-जिनकी बच्चियां 12 वर्ष या अधिक की हैं उनकी देखभाल स्वयं करें। पुरुष-पुरुष से मिलें। मर्यादा से चलने में जीवन सुखी रहेगा और साधन पथ से अभ्यासी गिरेगा नहीं। सेवा साधन करने से मंजूर होती है वह अच्छा रहेगा वरना हम किसी के घर के जिम्मेदार नहीं हैं। 

समय ने आदमी की बुद्धि हर ली है। किसी को यह नहीं कहा जा सकता है कि कब किसकी बुद्धि नष्ट हो जावें। समय और हवा के चक्कर में आदमी बह जाता है। गुरु स्मरण और दया से बचता है। गुरु कृपा को लेते रहो। हम सबके साथ हैं। गुरु सदा पास रहता है। अपने मन को दुश्मन मत करो। 

-- शाकाहारी पत्रिका 14 मई 1972 


✶  स्वामी जी ने कहा
 
1. मेहनत मशक्कत की कमाई से बरक्कत मिलती है। दया से विवेक जागृत होता है। मजदूरी से व खून पसीने से कमाये धन से शान्ति मिलती है जबकि बेईमानी की कमाई का धन बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है। - 2 जुलाई 2001

2.  महात्मा जीवों को बड़े प्यार से समझाते हैं कि घाट पर बैठो चाहे 2-4 मिनट ही सही। चेतन से चेतन का साथ दोगे तो वह अपना काम कर लेगा। सुरत कर्मो की गन्दगी से ढकी है उसको साफ करने का उपाय घाट पर बैठकर टकटकी लगाकर सुनना और देखना है। 
-3 जुलाई 2001

3.  मैं पहले भी कहता था और अब भी कहता हूं कि मैं कोई महात्मा नहीं हूं। यह शरीर है सेवा ले लीजिए। मैं तो अपने गुरुमहाराज की दौलत बांट रहा हूं।
- 3 जुलाई 2001

4.  सेवक बनना आसान नहीं है। कपट रख के कुछ बताया नहीं। लालच करने वाले को तो क्या फल मिलेगा ? फल की इच्छा मत करो।

-- शाकाहारी पत्रिका 14 से 20 जून 2013

जयगुरुदेव
शेष क्रमशः पोस्ट न. 02. में पढ़े ...


जयगुरुदेव नाम के प्रचारक बाबा जयगुरुदेव जी महाराज
Shakahair patrika 

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