✴ स्वामी जी की हिदायत ✴
➥ तुम्हारी छोटी मोटी बातों का जवाब तो मेरे ये प्रेमी देते रहेंगे और प्रेमियों अब तुम्हें चुप रहने की जरूरत नहीं है। तुम लिख करके, मुंह से जैसे भी जरूरत पड़े तुम सबकी बातों का खूब जवाब दो। जिस दिन देश का कर्णधार मेरे लिये कुछ कहेगा उस दिन मैं जवाब दूंगा।
➥ तुम्हारी ये बड़ी बड़ी डिग्रियां धरी रह जायेंगी और इनकी कोई कदर नहीं होगी। भविष्य में आने वाले वे सीधे साधे लोग सेवा और कर्मठता का आदर्श दिखा देेंगे।
➥ तुम क्या सेवा की बात करते हो ? अभी तो वे सेवादार आये ही नहीं जो एक इशारे पर अपना सबकुछ निछावर कर देंगे और फिर भी ये कहकर जायेंगे कि मैें कुछ न कर सका। तुम थोड़ी सी सेवा करके ढिढोरा पीटना चाहते हो।
➥ आगे देश में ऐसी स्थिति आ जायेगी कि एम.पी. यों को इस्तीफा देकर चुनाव लड़ना पड़ेगा।
➥ पास मे रहने वाले इस भ्रम में न रहें कि वे नर्कों और चौरासी से बच जायेंगे। अगर वह भ्रम और संशय में पड़े रहेंगे तो बच नहीं सकते। निजामुद्दीन ओलिया से एक आदमी ने पूछा कि आपके पास आने वाले जितने भी लोग हैें तो क्या दोजख से बच जायेंगे ? उन्होंने जवाब दिया जो मुझमें खुदा देखेगा वह जरूर बचेगा। जो इंसान देखेगा उसे कोई नहीं बचा सकता।
➥ लक्ष्मण को राम साथ में लेकर वन गये थे तो इसके माने यह तो नहीं कि भरत उनको कम प्यारे थे।
➥ जो गुरु के साथ लग जाते हैं उनका काम अवश्य पूरा होगा लेकिन साथ रहने का मतलब शरीर के साथ घूमना नहीं है। साथ का मतलब है कि गुरु के वचनों को दिल में उतार लें और अन्तर में नाम की कमाई करे। गुरु उसके अंग संग रहता है।
➥ संत मत में रहकर चरण स्पर्श केवल गुरु का ही करना चाहिए। जो सत्संगी दूसरों से चरण स्पर्श कराता है वह अपना तो नुकसान करता ही है दूसरों का नुकसान भी करता है।
➥ साप्ताहिक सत्संग में जो आदेश से जगह जगह पर होता है वहां मालिक मौजूद रहकर सबकी हाजिरी लेता है। जो लोग नामदान लेकर सत्संग में हाजिरी नहीं देते हैं और शिकायत करते हैं कि उससे उनका भला तो नहीं होता है किन्तु वे जिसकी निन्दा करते हैं उनकी बहुत बड़ी भलाई हो जाती है। निन्दक आप तो नरक जाता ही है मगर जिसकी वह शिकायत करता है उसका भला हो जाता है।
✴ हिजड़ों का राज्य हटाना है ✴
सुख धरम करम यदि लाना है, हिजड़ों का राज्य हटाना है।
ये व्यभिचारी पापाचारी, मां बहिनों की लाज उतारी,
गउ माता की गर्दन मारी, पापियों से देश बचाना है। हिजड़ों का........।।
कछनी धोती युवक बिसारी, टोपी, साफा सभी उतारी,
जम्पर पहन चले जस नारी, सिर पर बाल जनाना है। हिजड़ों का........।।
पैन्ट पहनकर चलती नारी, ओढ़नी आंचल एक न डारी,
लाज शरम सब दिया उतारी, बिगड़ा सभी जमाना है। हिजड़ों का........।।
ये गांधी के भक्त कहाये, मदिरा पीयें मांस खायें,
मंत्री घाटों का बजट दिखाये, जनता को नहीं दाना है। हिजड़ों का........।।
बार बार हम शासन दीया, धन हमार से निर्धन कीया,
जमीदार राजे हटवाये, अब हमको चाहत खाना है। हिजड़ों का........।।
बीस तीस के शाकाहारी, जिनका जीवन हो सदाचारी,
संत कृपा हो जिन पर भारी, उनको राज्य दिलाना है। हिजड़ों का........।।
आगे समय भयंकर आई, उससे बचना जो तुम चाहो,
धरम करम को धारो भाई, सबको यही बताना है। हिजड़ों का........।।
अब तुम खबरदार ही रहना, बाबा का मानो तुम कहना,
ठीक कराओ वोटर गणना, बहुमत से इन्हें गिराना है। हिजड़ों का........।।
✴ कितने जयगुरुदेव बाबा बनेंगे
बम्बई। जयगुरुदेव बाबा ने बताया कि सत्संग एक ऐसा अखाड़ा है जहां हर तरह के दांव देकर मन को परास्त किया जाता है। इस मन को कैसे काबू में किया जा सकता है इसे महापुरुष ही समझते हैं। किसी भी बाहरी साधन से यह मन काबू में नहीं आता है। जब इस पर सत्संग की चोट लगती है तब यह धीरे धीरे इसको शब्द का रस मिलने लगता है तब कहीं जाकर यह काबू में आता है।
यह मन काल का वकील है। जीव को हरदम बहकाता रहता है। जीवों को बहकाने के अनेक रास्ते हैं। अभी क्या देखते हो अभी तो कितने जयगुरुदेव बाबा बनेंगे और लोग भ्रमित हो जायेंगे जो नकल करेगा वह मार खा जायेगा। इसलिये सब लोग सम्हले रहें। पहले से आगाह कर देना मेरा काम है ताकि आगे तुम कह न सको। संगत बहुत बढ़ गई है और आगे बहुत बढेगी। तुम सब लोग होशियारी से अपने लक्ष्य पर डटे रहो।
सत्संग एक ऐसा बाजार है जहां हर तरह का साधन मिलता है। अब तुम खुद सोचो कि तुम किस वस्तु के ग्राहक हो। सत्संग का दरबार सबके लिये खुला है। तुम अपने को देखो और मुझको देखो। इधर उधर देखोगे तो बहक जाओगे।
बाबा ने आगे कहा कि इस वक्त काल और माया की धारे बहुत तेजी से काम कर रही हैं। दयाल की धार भी तेजी से अपना काम कर रही है। तुम्हारी बुद्धिमानी इसी में है कि तुम दयाल की धारें ग्रहण करो। अगर ऐसा नहीं करते हो और काल माया की धार में बह जाते हो तो तुम जानो ओर तुम्हारी काम जाने।
✴ मैंने नमाज पढ़ी
जयपुर। धर्म की चर्चा करते हुये प्रेमियों को जयगुरुदेव बाबा ने बताया कि जब मैं परमात्मा की तलाश में घूम रहा था तो एक दिन मुसलमान के पास गया। वह मुझे मस्जिद में ले गया। मैंने कहा कि अगर नमाज पढने से खुदा मिल जायेगा तो मैं जरूर पढ़ूंगा। खुदा के दर्शन के लालच में मैंने एक महीने नमाज पढ़ी।
एक दिन मैंने देखा कि मुल्ला साहब मस्जिद के पीछे बकरा हलाल कर रहे हैं। मैंने उनसे कहा कि आपको रहम करना चाहिए तो वे बोले कि मैं खुदा को खुश कर रहा हूं। मैंने कहा कि इसको तो तकलीफ हो रही है। फिर खुदा कैसे खुश हो जायेगा ? मैंने उसी वक्त कहा कि आज से नमाज पढ़ना बन्द और वहां से चल दिया।
➥ जब मैंने सत्संग शुरु किया तो बड़े बड़े तूफान आये। सत्संग में हर तरह के अड़ंगे डाले गये किन्तु मेरा काम रुका नहीं। आखिर बाबा जी की बात सबको माननी पढ़ी।
➥ सन 1952 के लोग मेरे पास आज भी हैं। उस समय जब मैं इन लोगों से कहा करता था कि ऐसा हो जायेगा, सत्संग की यह पतली धार एक दिन समुद्र का रूप ले लेगी तब ये लोग हंसते थे और कहते थे कि ये कैसे होगा। परन्तु अब इनकी जबान आज बन्द है।
➥ मैं तो शुद्ध अध्यात्मवाद से अपना सत्संग शुरु किया था। तुमने आकर अपने दुखड़े रोने शुरु किये कि महाराज खाने की तकलीफ है, रहने की तकलीफ है, परिवार का कष्ट है, समाज का कष्ट है, राज्य का कष्ट है, न्याय नहीं मिलता है, सुरक्षा नहीं है। फिर मजबूर होकर सत्संग के साथ ही साथ पारिवारिक सुधार, सामाजिक सुधार, राजनैतिक सुधार की भी बातों को बताना शुरु कर दिया।
➥ तुम मुझे राजनैतिक कहकर बदनाम मत करो। न कभी मैं राजनैतिक था और न अब हूं। मुझे प्रधानमंत्री राष्ट्रपति नहीं बनना है। मैं तो केवल यह चाहता हूं कि सबको रोटी मिले, कपड़ा मिले, मकान मिले, न्याय मिले, सुरक्षा मिले और जन जन का जीवन खुशहाल हो जाये। इसे चाहे तुम कर दो या कोई ओर कर दे। काम होना चाहिये।
बाबा जी ने आगे बताया कि ऊपर स्वर्ग भी है, बैकुण्ठ भी है, ब्रह्मलोक भी है और इन लोकों में जीवात्मायें सदा विहार किया करती हैं। इन लोकों में अन्धकार का नामों निशान नहीं है। तुम ऐसे प्रकाश वान देशों में क्यों नहीं चलते हो जहां पहुंचकर तुम्हारी सारी तकलीफें , रोना धोना समाप्त हो जाये।
हमें यह सोचना चाहिये कि माता पिता ने हमें पैदा किया है और इनका ऋण मेरे ऊपर में है। इनका ऋण भी अदा करना चाहिए। अगर हम अधिक नहीं दे सकते है तो कम से कम उनकी सेवा तो करना ही चाहिए। मैं देखता हूं कि कम से कम 75 फीसदी लड़के लड़कियां अलग हो गये। माता पिता को पांच रुपया देना भी मुश्किल है क्या हमारी यही शिक्षा थी ? क्या यही हमारी संस्कृति और ऋषियों मुनियों का आदर्श है ? मैें परिवार सुधार, समाज सुधार, देश सुधार और आत्मसुधार सभी बातों की शिक्षा देता हूं। जीवन में रहते हुये आत्मकल्याण हो जाये परमात्मा की प्राप्ति हो जाये यह सबसे बड़ा काम है।
कहने की एक प्रथा चली आ रही है कि मरने के बाद स्वर्ग मिलता है। बात सच है अन्तर नजरिये का है। यानी कहीं स्वर्ग है जो मिलता है लेकिन वह पंचभौतिक शरीर से परे है। नारद जी के लिये कहते हैं कि वो जब चाहते थे ध्यान लगाया और स्वर्ग पहुंच गये, देवलोक पहुंच गये,शिवलोक, विष्णुलोक पहुंच गये।
यह सिद्ध करता है कि इस मानव शरीर के अन्द से रास्ता है जो स्वर्ग लोक को जाता है। वो जीते जी जाते थे और फिर आकर स्वर्ग का हाल बताते थे, ब्रह्मा, विष्णु, महेश के सन्देश को सुनाते थे ऐसा इतिहास में आता है। यह सब बातें इतिहास की पढ़ी सुनी तो पहले भी थीं। लेकिन तब ऐसा सोचते थे कि यह सब काम ऋषियों मुनियों का है हम साधारण इंसानों का नहीं है।
लेकिन जब से जयगुरुदेव बाबा का सत्संग सुना उनके चरणों में बैठे तब यह मालूम हुआ कि स्वर्ग क्या उसके आगे बड़े बड़े लोक लोकान्तर हैं जो मरने के बाद मिलते हैं लेकिन ये मरना जीते जी मरना है। पहले की क्या क्रियायें थी इसका तो ज्ञान नहीं मुझको पर सुरत शब्द योग की साधना के द्वारा जीते जी मरने की प्रक्रिया को जाना जाता है और इस शरीर से आजाद होकर आत्मा अनेक बड़े बडे मण्डलों को लोकों को पार करती हुई अपने सच्चे देश यानी सतलोक पहुंचती है।
शरीर से उसका सम्बन्ध तब तक रहता है जब तक श्वांसों की पूंजी रहती है। आत्मा आयेगी, जायेगी, वहां के भेद बतायेगी, सुख आनन्द को बतायेगी, नर्कों के कष्टों को बतायेगी, चौरासी लाख योनियों को समझायेगी, कर्मों के बन्धन को समझायेगी। ’ऐसी ही महान आत्मा को कहते हैं सन्त, फकीर।’
जब ऐसे सन्त फकीर जीवों को जगाने के लिये धरती पर आते हैं तो वो कहते हैं कि यह शरीर तो एक दिन मिटटी में मिल जायेगा, इसमे रहते हुये तुम कुछ दुनिया के भी काम कर लो और अपना आत्म कल्याण भी कर लो। वो रास्ता बताते है, भेद बताते हैं, हर तरह से मदद करते हैं।
इन्हीं सन्तों फकीरों की श्रेणी में बाबा जयगुरुदेव जी ने जीवों का आवाहन किया, सबके लिये एकसन्देश, सबके लिये एक भेद मानवमात्र की हर तरह से मदद करने को तैयार हैें। हम गलत फहमी में पड़ जाते हैं कि महापुरुष मिल गये तो अब हमें कोई तकलीफ नहीं होगी, कोई बीमारी नहीं होगी, कोई मुसीबत नहीं आयेगी पर ऐसा नहीं है।
बाबा जी के शब्दों में शूली का कांटा कर दिया जायेगा लेकिन कांटे की चुभन को तो सहना पडे़गा और भजन करना होगा। भजन करने से कर्म साफ होंगे तो कष्ट तो अपने आप कम क्योंकि कर्म कर्जे का लेन देन ही तो दुख सुख का कारण है। भजन करेंगे, अच्छे बुरे कर्म कटेंगे, सुख दुख की बेड़ी कटेगी।
इसलिये जयगुरुदेव बाबा कहते हैं कि जब तक श्वांसों की पूंजी है अच्छे काम कर लो, जीवों पर रहम करो, किसी की मदद कर सकते हो तो मदद कर दो अपनी हस्ती के अन्दर। कोई भूखा प्यासा दरवाजे पर आ जाये तो उसे रोटी खिला दो पानी पिला दो और फिर भजन करो।
महापुरुष मिल गये बड़े भाग्य हैं, उनको सर्वांगीण समर्पण कर दो और भजन करो फिर तुम दुख सुख से छूट जाओगे। समय की जो रफ्तार चल रही है उससे बचोगे और जब तक महापुरुष नहीं मिलते हैं तो नेक पाक जीवन रखो शाकाहारी रहो, शरीर से जिसका भला हो सके कर दो।
बुरा तो करो ही मत तो इतना तो होगा कि फिर मनुष्य शरीर मिल जायेगा। और ये भी हो सकता है कि दरवाजे पर आये भूखे प्यासे को रोटी पानी देते हुये कोई महापुरुष मिल जायें ओर परमार्थ की जिज्ञासा जगा दें, भजन करने लगोगे तो लोक परलोक दोनों बन जायेगा। इसीलिए कबीर साहब ने कहा कि - ‘देह देह तूं देह तूं, जब लगि तेरी देह।’
जयगुरुदेव
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sabhar, yug mahapurush baba jaigurudev ji maharaj bhag 5
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बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की गूँजती वाणियाँ |
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