✦ 23 जनवरी का धमाका ✦
कुछ पढ़े लिखे सत्संगीजन समझ रहे थे कि स्वामी जी कानपुर 23 जनवरी 1975 को फूलबाग निमंत्रण पर गये बड़ा नुकसान हुआ। उन्हें मालूम होना चाहिए ज्योतिषियों का मत था कि जयगुरुदेव नाम का धमाका सन् 75 में होने वाला है। सत्संगी या तो सत्संग सुनते ही नहीं या सत्संग में पहुंचते ही नहीं हैं। बाबा हमेशा अपना आशय, काम सब बताया करते हैं। 23 जनवरी से 29 जनवरी तक सारे देश में धमाका तो हुआ ही विश्व के रेडियों पर जयगुरुदेव होने लगा।
बुद्धिजीवों जनों को समझना और चाहिए कि कानपुर में सरकारी बैन्ड बज रहा था, पुलिस अधिकारी कितने थे यह तो कानपुर 23 जनवरी के बाद बच्चे बच्चे की जुबान पर जयगुरुदेव आ ही गया बल्कि बच्चा बच्चा जयगुरुदेव को जान गया। यह ख़ुशी की बात है भीड़ जनमत की अब देखने को आ रही है।
10 मार्च को बाबतपुर हवाई अड्डे पर 11 बजे से 12 बजे तक काशी विद्यापीठ, ढाई बजे से जौनपुर लाखों लाख की भीड़ को देखकर, सफल कार्य को देखकर, राजनीतिज्ञों के हौंसले पस्त हो गये। सोचा हमारा षडयंत्र तीर खाली गया। बाबा जी का ही प्रचार हुआ। हम नेकनामी बदनामी दोनों तरह से प्रचार विरोधियों द्वारा कराकर दिखा देेंगे।
✦ 16. धर्म और न्याय ✦
घटना लिखने से पूर्व कुछ बातें बताना आवश्यक है। अरब में इन्साफ कुरान शरीफ की शरीयत के मुताबिक होता है। न्याय होने में देर नहीं होती है। थाने पर ही मजिस्ट्रेट सुना देता है। यदि राह चलते किसी की कोई वस्तु गिर जाये, खो जाये तो उसका काम केवल यह है कि थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दे। वस्तु के पता लगाने की पूरी जिम्मेदारी पुलिस विभाग की है। ये बातें घटना सुनाने वाले मेरे परिचित ने बताई है। छोटी मोटी चोरी पर उंगलियां काट देते हैं, बड़ी चोरी पर बाहें काट ली जाती हैं।
एक भारत के मुसलमान भाई अरब देश किसी काम से गये। वे वहां रास्ते में जा रहे थे। दो सौदागर जो घोड़े पर सवार थे उधर ही से गुजरे। उनका बटुआ सड़क पर गिर गया। भारती बन्धु ने भागलपुरी चादर ओढ़ रखी थी। उन्होंने बटुआ उठाया और बगल में दबाकर आगे बढ गये। जब दोनों सोदागर कुछ आगे आये तो उन्होंने देखा कि उनका बटुआ गिर गया। वे थाने पहुंचे और रिपोर्ट दर्ज करा दी।
दो कांस्टेबिल तुरंत मोटर सायकिल लेकर उस तरफ को आये जहां बटुआ गिरने की बात सौदागर ने बताई थी। ढूंढ़ने पर उन्हें बटुआ न मिला। उन्होंने सोचा कोई विदेशी यहां आ गय हैं उसी का यह काम है।
दोनों सिपाही दो सड़कों पर अलग अलग अपनी मोटर सायकिल से चल पड़े। विदेशी बन्धु खरामा खरामा सड़क पर चले जा रहे थे। सिपाही ने उन्हें रोका और कहा आप अपनी तलाशी दीजिए। उनके तो होश उड़ गये। जब चादर हटाया तो बटुआ निकला। उन्हें मोटर सायकिल पर बिठाकर सिपाही थाने ले आये। वहां मजिस्ट्रेट भी मौजूद था। उसने पूछा तुम कहां से आये हो ? उत्तर मिला भारत से। फिर पूछा मुसलमान हो ? जी हां। मजिस्ट्रेट ने कहा तुम्हें नहीं मालूम कि कुरान शरीफ में चोरी की सजा क्या है ? तुम्हें क्या मैं तो समझता हूं कि भारत के किसी भी मुसलमान को नहीं मालूम होगा। तुमने चोरी की है उसकी सजा यह है कि तुम्हारें दोनों हाथ काट दिये जायें। किन्तु तुम विदेशी हो तुम्हें नहीं मालूम था इसलिए 15 दिन की कड़ी कैद तुमको भोगनी पड़ेगी।
मजिस्ट्रेट ने उनका नाम, पता, कहां के रहने वाले हैं, किस विभाग के कर्मचारी हैं सब हवाला पूरा ले लिया और बोला कि जब तुम यह सजा भोगकर अपने वतन लौटोगे तो तुम्हारी नौकरी भी खतम हो जायेगी। जब वो सज्जन भारत लौटे तो उस समय तक वास्तव में उनको बर्खास्त कर दिया गया था।
बाबा जयगुरुदेव के साथ जेल में - राम भेज वर्मा
गोसाईंगज थाने पर पहुंचते ही दरोगा जी ने मुझसे पूछा कि क्या आपका नाम राम भेज वर्मा है? बलरामपुर दहलवा गांव के रहने वाले हैं? क्या आप ही जयगुरुदेव धर्म प्रचारक हैं ? क्या आपने ही पूरे जिले की गांव गांव की दीवालों को गेरू से नसबन्दी के खिलाफ, सरकार के खिलाफ लिखावट कराया है?
एक साथ ही इतने प्रश्नों को सुनकर मैंने कहा कि जी हां मैंने ही लिखवाया है। दरोगा जी गरज उठे और बोले कि क्या आपको पता नहीं है कि इमरजेंसी लगी है, डी.आई.आर और मीसा लग रहा है। क्या आपको इनसे डर नहीं है?
मैंने सीधा सा उत्तर दिया कि जी नहीं। समाज सेवा के लिए, सत्य और धर्म की रक्षा के लिए, मातृभूमि की रक्षा के लिए, राम, कृष्ण, लक्ष्मण, हनुमान, ईसा, प्रहलाद आदि कुर्बानी के लिए तैयार हो गए तो मुझको गुरु के लिए डी.आई.आर. मीसा की क्यों धमकी देते हो ? गुरु के रास्ते पर यदि फांसी के तख्त पर भी झूल जाना पड़े तो मेरा काम और बन जाएगा।
वार्ता लम्बी चलती रही और परिणाम यह हुआ कि मैं 16 सितम्बर 76 की शाम को लिखापढ़ी के पश्चात थाने के कटघरे में बन्द कर दिया गया। रात्रि में वहां मच्छरों और खटमलों का साम्राज्य था। 36 घण्टे तक बिना दाना पानी के रखकर मुझे जिला कारागार फैजाबाद में भेज दिया गया।
5 अक्टूम्बर को मुझे बरेली सेन्ट्रल जेल पहुंचा दिया गया। मैं दो दिन का भूखा था। किसी प्रकार रात कटी। दूसरे दिन फांसी घर की कोठरी से निकाल कर अपराधी बन्दियों के बीच रख दिया गया। खाने में सड़े गेहूं, मिट्टी व रेत की रोटी, कंकड़ के टुकड़ों से भरी दाल, गोभी के पीले पत्तों को चारे की मशीन से काटकर व नमक छिड़ककर बनाया हुआ साग मिला। प्रतिदिन का भोजन यही था। दाल में घुन तैरते हुए दिखाई देते थे। सुबह नाश्ते में लाल शंकर मक्का जिसमें 10 दाने भुने हुए और बाकि दाने कच्चे रहते थे यही मिलता था।
मेरे बैरिक में रोशनदान खिड़की कुछ भी नही थी। सूर्य भगवान व चांद का दर्शन कभी कभी भाग्य से हो जाया करता था। बिछाने व ओढ़ने के लिए तीन कम्बल मिले थे जिसे झाड़ने पर रोये चीलर और खटमल झड़ते थे। उस काल कोठरी की बनावट अत्यंत ही भयानक तथा दीवालों की दरारें खटमलों से भरी रहती थीं।
जिस समय चीलरों, खटमलों और मच्छरों का आक्रमण होता था उस समय परमात्मा ही याद आता था और आंसुओं की धारा अपने आप आंखों से बहने लगती थी। इतना ही नहीं चीलर मच्छर और खटमलों के काटने पर यदि कोई बन्दी सोते समय बदन खुजलाता अथवा उठ बैठता तो तुरन्त लाठी से मार पड़ने लगती थी।
मैं 5 अक्टूम्बर से 9 अक्टूम्बर तक परम पिता परमात्मा की याद करता रहा कि या तो मुझे अब फांसी के तख्त पर झुला दें या अपने पास बुला लें या स्वयं मेरे पास आ जाएँ। मेरी पुकार को समरथ पिता ने सुन लिया और 9 अक्टूम्बर की रात को आगरा केन्द्रीय कारागार से बरेली केन्द्रीय कारागार में पहुंच गए।
यह सूचना मुझे तुरन्त ही मिली कि स्वामी जी इसी बरेली जेल की बी क्लास में आ गए हैं। मेरी अन्तरआत्मा में प्रेम की ऐसी लहर उठी कि रात्रि भर बिना खाये पीये ही रोता ही रहा। किसी तरह रात कटी। दूसरे दिन से ही मैं अधीक्षक से अनुरोध करता रहा कि मुझे बाबा जी के दर्शन करा दो ताकि अपनी गाथा उन्हें सुना सकूं और आंखों की प्यास बुझा सकूं। मेरे सारे प्रयास निष्फल गए और मैं पपीहा की तरह तड़प- तड़प कर अपना जीवन बिता रहा था।
उसी बीच जेल में यह चर्चा सुनने को मिली कि प्रधानमंत्री श्री इन्दिरा गांधी रायबरेली दौरे पर गईं थीं और वहां दीवालों पर सरकार और नसबन्दी के खिलाफ लिखा हुआ देखा। इसी सम्बन्ध में पर्चें भी बांटे जा रहे थे। इन सबको देखकर वो घबड़ा गईं। नारायन दत्त तिवारी जी जो दौरे में साथ थे उन्हें खूब डांटा कि यह तुम्हारी जेल व्यवस्था कैसी है कि बाबा जी के शिष्य बाबा जयगुरुदेव से सम्पर्क बनाये रक्खे हैं और उन्हीे के आदेशानुसार यह सब कार्य हो रहा है।
जल्दी से जल्दी उनके पैरों में बेड़ी डलवा करके तनहाई में खूब सख्ती करो। कोई आदमी उनसे मिलने न पावे। यह सुनकर श्री नारायन दत्त तिवारी ने 20 अक्टूम्बर 76 को जेल अधीक्षक बरेली को आदेश दिया कि बाबा जयगुरुदेव के पैरों में बेड़ी डालकर वहां सख्ती से पहरा लगा दो तथा उनसे कोई मिलने न पावे।
जेल के अन्दर फिर यह खबर उड़ी कि दुबारा मुख्यमंत्री का वायरलेस आने पर जेल अधीक्षक ने प्रातः दस बजे स्वामी जी महाराज को अपने ऑफिस में बुलवाया। बाबा जी के साथ दो नेता, बाबू गुलाब सिंह परिहार तथा प्रोफेसर रमाशंकर सिंह भी गये। इन दोनों नेताओं को स्वामी जी के साथ नही जाने दिया गया और डी.एम. ऑफिस में रोककर वहीं बैठाया गया।
बाबा जी को डी.एम. और सुपरिन्टेन्डेंट दोवाड़ा की सर्किल नम्बर 6 की तन्हाई में ले गये और वहीं पर बन्द कर दिया। वहीं पर फांसी के बन्दी बन्द होते थे। मुझे याद है उसी सर्किल नम्बर 6 के उसी कमरे में मुझको जेल में आते ही पहले दिन रखा गया था।
डी.एम. सुपरिन्टेन्डेन्ट से परिहार जी और रमाशंकर सिंह जी ने बात किया तो उन्होनें बताया कि मुख्यमंत्री जी का वायरलेस कई दिनों से आया था लेकिन मैें टालता रहा। फिर आज सख्त वायरललेस आया है जिस पर मुझको यह करना पड़ा। सुना जाता है कि प्रधानमंत्री का दौरा रायबरेली में हुआ था जिसमें नसबन्दी और सरकार के खिलाफ सत्संगियों का प्रचार तेज देखा था।
जब नेताओं ने समझ लिया कि ये बाबा जी को नहीं छोड़ेंगे तो बाबा जी का बिस्तर तख्त व सामान बैरक नम्बर 9 में पहुंचा दिया लेकिन भोजन और नाश्ता की व्यवस्था की जिम्मेदारी आग्रह पूर्वक इन लोगों ने अपने ऊपर ले ली।
परम पूज्य स्वामी जी महाराज को 21 अक्टूम्बर को जेल अधीक्षक ने बुलाया और लोहार खाने में ले गऐ। वहां बाबा जी के पैरों में सवा चार किलो की बेड़ी डालकर फिर उन्हें तन्हाई की कोठरी में भेज दिया गया।
धार्मिक संस्था के लोगों में भी भय था। जो दृढ़ थे वे जेल की दीवारों में थे। नसबन्दी गर्भपात के दानवों ने मठों आश्रमों को भी नहीं छोड़ा। बाबा जी ने सभी कष्टों को बिना उफ किए झेला, उनके भारत में फैले करोड़ों अनुयाइयों ने भी उनकी दया का सहारा लेते हुए अपनी आवाज बुलन्द की। इसके लिए उन्हें जो कुछ भी सहना पड़ा सबको उन्होंने सर माथे रखा।
मुझे याद है कि जब लोकसभा के चुनाव नहीं हुए थे भूतपूर्व प्रधानमंत्री उनके 20 सूत्री कार्यक्रम और उनके हृदय सम्राट का सितारा बुलन्दी पर था सबके जुबान बन्द थे तब आवाज उठी थी केवल जयगुरुदेव वालों की। उस समय जगह जगह जनता ने यही कहा था कि अगर कुछ करेंगे तो जयगुरुदेव वाले ही। सबकी बोलती बन्द है। एक यह हैं कि निर्भीक होकर अपनी आवाज उठाये हुए हैं। इस बात को भी कोई इंकार नहीं कर सकता है कि वर्तमान जनता पार्टी की सफलता बाबा जी के आशीर्वाद एवं सहयोग से मिली है।
जयगुरुदेव
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बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की गूँजती वाणियाँ |
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