☀ सतसंग की पाठशाला ☀
1963 में सम्भवतः 20-21 मई को सीकर का सत्संग था। उसके बाद स्वामी जी जयपुर पधारे थे और 22 का प्रोग्राम नई ठानी मोहल्ले में हुआ था। काफी लोग आये थे। 24 तारीख को 154 स्त्री पुरुषों ने नामदान लिया। फिर दो दिन के बाद 26-27 को रामलीला मैदान बढ़ता गया। 1965 से होली का प्रोग्राम जयपुर में होने लगा और कुछ वर्ष तक होता चला है।
फूलचन्द जी बियाणी की पुत्री सुशीला बाई का विवाह इन्दौर में झावर परिवार में हुआ है। इनके पति इनकम टैक्स के वकील हैं। इनके कारण स्वामी जी ने मध्यप्रदेश में जाना शुरु किया। फूलचन्द जी को स्वामी जी पर विश्वास नहीं था और घर में विरोध करते थे। चरित्र के प्रति तो उनके मन में कोई शंका नहीं थी किन्तु सेठ जी को यह डर था कि गुलाब बाई सीधी सादी है कहीं ऐसा न हो कि सब धन सम्पत्ति उठाकर बाबा जी को दे दे।
अतः इस तरफ से वो हमेशा सतर्क रहते थे। माताजी गुलाब बाई रात में साधन करती थीं। तो सेठजी बड़े असमंजस में पड़े रहते थे कि ये क्या करती है। इसी का पता लगाने के लिए उन्होंने सुशीला बाई को नामदान दिलाया। अब बियाणी परिवार की दो सदस्याएं नामदानी हो गईं।
सुशीला बाई ने अपने पिताजी को समझाया कि स्वामी जी का मार्ग सच्चा है। उसके बाद धीरे धीरे बियाणी परिवार को स्वामी जी का विश्वास होने लगा। सेठ जी ने जो पहले स्वामी जी के सामने आते तक नहीं थे प्रणाम करना शुरु कर दिया।
अपने व्यक्तिगत अनुभवों को सुनाते हुए श्रीधर जी ने कहा कि 1960 में गोपीनाथ जी के मन्दिर से प्रातः मैं लौट रहा था कि विदरू टेलर मास्टर ने कहा कि गोरीलाल जी की हवेली पर एक महात्मा रुके हैं वे सबेरे बैठकर भगवान से मिलने का प्रेक्टिकल साधन करवाते हैं। उसमें कुछ कुछ उजाला प्रकाश आता है बाद में यह भी सुनने में आया कि वो विराट पुरुष विभूति हैं एक आदमी पुस्तक पढ़ता और वो प्रवचन करते हैं।
मैंने तय किया कि दर्शन करने चलेंगे। दूसरे दिन जब हवेली पर पहुंचा तो उस समय प्यारे लाल जी और फूलचन्द जी मौजूद थे। जाते ही प्रणाम किया तो स्वामी जी ने कहा कि कल शाम को पांच बजे नामदान मिलेगा।
दूसरे दिन मैं समय पर पहुंचा और नामदान लिया। भजन के बाद स्वामी जी ने पूछा कि कुछ अनुभव हुआ तो मैंने जबाव दिया कि हल्की हल्की वंशी की आवाज सुनाई पड़ती है। स्वामी जी बोले कि सत्संग में आना। हम खाने पीने वाले आदमी थे। दो तीन दिन बाद मेरे घर में मांस बन गया। संयोग की बात उसी दिन सबेरे साधन करने गया तो प्यारे लाल जी ने कहा कि चादर बकस जी का नामदान दिला देते। मैंने कहा कि कां के बिसर ? (कौनसी रुकावट है) उन्होंने कहा कि हड्डी चबाते हैं।
मुझे तब मालूम हुआ मैंने सोचा कि एक खुद भी यह काम करते हैं तो अब ये नहीं करना चाहिए। मैंने उसी समय निश्चय कर लिया। शाम को मीट बन गया तो हमने दूसरे मकान में रोटी लेकर खा ली और सत्संग सुनने के लिए चले गऐ। स्वामी जी ने प्रवचन के दौरान कहा कि हमारे ऐसे-ऐसे सत्संगी भी हैं जो एक घर में बनता है तो दूसरे घर में खाना खाते हैं। हम समझ गये कि हमारे ही ऊपर है।
उस समय सत्संग में भीड़-भाड़ 25 लोगों की होती थी। बड़े दुःख के शब्दों में श्रीधर जी ने बताया कि तीन चार दिन के बाद फिर हमारे यहां मीट बन गया तो हमने उस रोज खाना बन्द कर दिया। बच्चे की ससुराल से मिठाई आई थी उसी को खाकर मैं रह गया। मैं 25 वर्ष तक गोपीनाथ जी के मन्दिर में माला घुमाता रहा। आप देखते हैं वह माला कितनी लम्बी है। मैंने कहा कि अगर एक मील नही हो तो कम से कम 6 फलिग की लम्बी होती। मन्दिर के माले की मैंने तीन चित्र लिए।
अपनी कुछ घटनायें बताते हुए श्रीधर जी ने कहा कि एक बार मैं मथुरा में था डीलक्स से स्वामी जी मथुरा से बम्बई पधारें मुझसे कहा कि जीप सीकर ले जाओ और सीकर बोर करा के मथुरा ले आओ। भयंकर गर्मी थी। हम लोग जीप लेकर आये गुलाब ड्राइवर और उनकी पत्नि थीं।
गुलाब के नींद आने लगी तो जीप चलानी शुरु कर दी। मथुरा 150 मील आये। मैंने 1933 से चलाना छोड़ दिया था। गाय सामने बैठी थी। पैर से ब्रेक नहीं मिला घबड़ा गया किन्तु अचानक ही पैर ब्रेक पर पड़ गया और गाड़ी रुक गई। स्वामी जी बैठै थे तो फरमाय कि हर एक को मोटर चलाना सीखना चाहिए। पूछा कि सरकार मैं भी सीखूंगा महाराज जी हंसकर बोले कि ब्रेक लगाना भूल जाओगे।
एक और घटना बताते हुए श्रीधर जी ने बताया कि तीन चार साल पहले की बात है। स्वामी जी जब भी राजस्थान आते थे मैं बराबर साथ सेवा में लगा रहता था। सरकार मगलूना से सीकर आये। यह बीकानेर रोड पर पड़ता है। मैंने कहा कि स्वामी जी गुर्दे का दर्द है हुकुम हो तो घर जाकर विश्राम करुं।
स्वामी जी ने कहा जाओ सबेरे जल्दी मत आना। 11 बजे रात में दर्द बड़ा कोई दवा ली ओर सो गये। उधर फूलचन्द जी की हवेली में सरकार की तबियत खराब होने लगी। पसीने से उनकी धोती तर होने लगी। रात को डेढ़ बजे गोपाल जी डाॅक्टर को लिवा आये। इलाज शुरु हुआ। स्वामी जी नीचे ही लेटे रहे। सवेरे साढे़ आठ बजे जब मैं देर से पहुंचा तो गोपाल जी ने सब हाल बताया अभी डाक्टर लोहानी फिर आयेंगे। स्वामी जी की तबियत रात बेहद खराब हो गई थी।दो दिन बाद स्वामी जी ने तिवारी जी से कहा कि तिवारी! परसों यहां श्रीधर न होते तो खतम हो जाते।
चर्चा के दौरान में श्रीधर जी ने बताया कि जवाहरलाल जी के मरने के एक दिन पहले स्वामी जी ने इन्दौर सत्संग में सुनाया था तुम्हारा बादशाह जा रहा है अगर तुम रोक सकते हो तो रोक लो। राजे महाराजे प्रधानमंत्री सब उसके दरबार में पेश किये जाते हैं और उनका इंसाफ होता है वहां किसी किस्म की सिफारिश और बेईमानी नहीं होने पाती है।
लालबहादुर शास्त्री के मरने के पूर्व स्वामी जी मथुरा में नये आश्रम पर थे। हम सब भी साथ में थे। स्वामी जी की धोती कांटे में लगकर फट गई। स्वामी जी ने धोती को फाड़कर टांग दिया और बोले कि ये लालबहादुर का कफन है। उसी के बाद खबर आई कि लालबहादुर दुनिया से चल बसे।
श्रीधर जी हम लोगों से बड़े प्रेमभाव से मिलें। अपना मकान दिखाया गुरु महाराज का बार बार शुकराना अदा करते रहे कि उनका मकान बन गया। उन्होंने कहा कि सरकार की दया का आभास हमें बराबर होता रहता है। श्रीधर जी राजपूत हैं और एक भरे पूर परिवार के गृह स्वामी हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सीकर में सत्संग का विस्तार राजस्थान के जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, झुंझुनू, चुरु, अजमेर, भीलवाड़ा, चित्तोर, भरतपुर, सवाईमाधोपुर, नागौर, पाली, टोंक, कोटा, झालावाड़, उदयपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, अलवर, बूंदी, जालौर, आदि सभी जिलों में हुआ।
श्री प्यारेलाल माथुर सीकर के नामी एडवोकेट हैं और सीकर से प्रकाशित सुरत शब्द योग के सम्पादक हैं प्युनिसपल बोर्ड के भूतपूर्व चैयरमेन रह चुके हैं। स्वामी जी के साथ काफी दिनों से हैं। उन्होंने अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा- मैं सीकर में घंटा घर पर होटल के सामने बैठा था, मेरे साथ एक मुसलमान था। मिश्रा जी (गोरखपुर वाले) लाउडस्पीकर से एलान कर रहे थे कि एक महात्मा जी मियाणियों के प्रवचन करेंगे।
मैंने सोचा कि रघुनाथ जी के मन्दिर में तो रामायण गीता पर प्रवचन होता है पर वियाणियों के मन्दि में तो कुछ नहीं होता है और वह प्रायः बन्द ही रहता है केवल झूले के समय में खुलता है और वहां दर्शन के लिए लोग जाते हैं। यह बात 1958 की है। मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि देखा जाये। मैंने पूछा कि प्रवचन करने वाले महात्मा कहां हैं ? मिश्रा जी ने बताया की वे फूलचन्द जी के बियाणी के हवेली में ठहरे हैं।
मैं उस समय नगरपालिका का चैयरमेन था। मैं जब हवेली पहुंचा तो लोगों ने कहा कि चेयरमैन साहब आये हैं स्वामी जी ऊपर घूम रहे थे फिर नीेचे चले आये। मैंने प्रणाम किया। स्वामी जी ने कहा कि सत्संग सुनने आइयेगा। रामायण पर प्रवचन करेंगे। गर्मी का महीना था। स्वामी जी के साथ उनके गुरुभाई राजा साहब भी थे। शाम को सत्संग में आया। मन्दिर में एक बार लाइट बन्द हो गई तो पुजारी ने कहा कि घंटा बजाना बन्द करो। जब फिर लाइट आई तो घन्टा बजने लगा।
स्वामी जी ने इसका जिक्र सत्संग में करते हुए सुनाया कि आपने देखा कि जब प्रकाश बुझ गया तो घन्टे की आवाज भी बन्द कर दी गई। यह एक उदाहरण महात्माओं ने रखा है। यह बात मुझे अपील कर गई। दूसरे दिन नामदान साधना गृह में हुआ। 70, 80 रहे होंगे अधिकतर म्युनिसपैलिटी के मैम्बर, विद्वान वैद्य थे। लक्ष्मण सीकर से 14 मील है दो चार दिन बाद हम लोग लक्ष्मणगढ़ गये।
स्वामी जी ने बड़ा आन्तरिक सत्संग किया मैं बाहर छत पर गया। उस दिन पता लगा कि अनुभव क्या चीज है। मेरी एकाएक आंख खुली और प्रकाश ही प्रकाश नजर आने लगा। मैं उस लाइट का बरदावूत न कर सका। मैं फिर बैठा तो प्रकाश इतना अधिक था कि बर्दाश्त नहीं हुआ।
जयगुरुदेव
शेष क्रमशः अगली पोस्ट no. 12 में...
पिछली पोस्ट न. 10 की लिंक...
sabhar, yug mahapurush baba jaigurudev ji maharaj bhag 5
 |
भेद खोलने वालें |
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev