युग महापुरुष बाबा जयगुरुदेव जी महाराज (10.)

✶ गुरु का सन्देश ✶

मेरी बातें आपके अन्दर तुरन्त प्रवेश नहीं करेंगी, कुछ समय में घुसेंगी। जब प्रकृति का एक डंडा बजेगा तब समझ में आयेगा। उसी से सारे देश में शराब, ताड़ी, गांजा, भांग, अफीम, मांस, मछली, अण्डे, मुर्गी, आन्दोलन, तोड़फोड़, हड़ताल खत्म हो जायेंगे।

ब्राह्मण, वैश्य, हरिजन, हिन्दु, मुसलमान, सिख, इसाई सभी जाति और धर्म के लोगों में आत्मा एक है। सबका एक पिता है। सबके लिए सत्य प्रेम सेवा समानता एक है। आकाश से ऊपर बड़े बड़े ब्रह्माण्ड हैं जिनमें लोग आते जाते हैं। तुम्हारे अन्दर एक मशीन है जिससे तुम ऊपर के लोकों में पहुंच सकते हो। आप लोग साधु, ग्रहस्थ, कोई भी आन्दोलन, तोड़फोड़, निन्दा, हड़ताल करना छोड़ दें। एक स्वार्थी को सौ बेबकूफों की अकल होती है- 
‘स्वारथ रत परिवार विरोधी, लम्पट काम लोभ अति क्रोधी।।

आज जन जन में ईर्ष्या और वैमनस्य फैल गया। दुनिया में मूर्खों की क्या कमी है। 
अकबर ने बीरबल से कहा कि बीरबल मैंने आज रात को एक स्वप्न देखा । बीरबल ने पूछा हुजूर क्या देखा तो अकबर ने कहा कि आगरे के पूर्व और पश्विम में दो तालाब देखा। पूरब के तालाब में पाखाना भरा था और पश्चिम के तालाब में शहद भरी हुई थी। 

बीरबल ने कहा और क्या देखा हुजूर। अकबर ने कहा कि पाखाने के तालाब में तुम पड़े थे और शहद के तालाब में मैं पड़ा था। बीरबल ने कहा हुजूर फिर क्या आपने देखा, अकबर ने कहा कि बीरबल इसके बाद मेरी आंखें खुल गईं। 

बीरबल ने कहा कि हुजूर इसके आगे मैंने देखा। बादशाह ने कहा क्या देखा ? बीरबल ने कहा हुजूर मैं आपको चाट रहा था और आप मुझे चाट रहे थे। बादशाह ने कहा कि कैसा लाजवाब उत्तर दिया। 

बीरबल तुम इतने बुद्धिमान हो तो तुम्हारा पिता कितना बुद्धिमान होगा। मैं तुम्हारे पिता के दर्शन करना चाहता हूं। बीरबल ने सोचा कि ये बेबकूफ बनाना चाहता है। बीरबल ने पिता को गांव से बुला भेजा और एक दरबार की अच्छी पोषाक बनाकर पहना दिया। बीरबल ने कहा कि पिताजी, आप दरबार में जाकर बादशाह से सलाम कर लीजियेगा, परन्तु चुपचाप बैठै रहियेगा। कुछ न बोलियेगा। 

बीरबल के पिता दरबार में गये। बादशाह के आते ही उठकर बादशाह को सलाम किया। बादशाह ने कहा बैठ जाईये। आप कब आये ? कैसे आये ? आप को कोई तकलीफ तो नहीं है ? आपकी तबीयत कैसी है ? इस तरह से तमाम प्रश्न बादशाह करता गया। बीरबल के पिता चुप रहे। 

बादशाह ने कहा क्या मूर्खो से पाला पड़ा, दूसरे दिन बादशाह के पूछने पर बीरबल ने कहा की  मूर्खो से पाला पड़ने पर चुप हो जाना चाहिए। 

एक प्रेमी ने मुझसे कहा कि हुजूर, अयोध्या में एक आदमी ने मेरी टोपी उतार ली और एक चाटा मारा। मैंने कहा तुम्हारे भाई ने अन्जान से तुम्हें मार दिया होगा। तुमको तो ये कहना चाहिए था कि भाई तुम्हारे हाथ मे कोई चोट या घाव तो नहीं लग गई। मां तो बच्चों को रोज ही मारती है। तुम्हें ये समझना चाहिए कि मैंने तलवार के बदले एक चाटें से बसूल करा दिया।


 राजस्थान का इतिहास 

मुझे तीन दिन सीकर के सत्संगियों के बीच रहने का मौका मिला। उन लोगों के द्वारा राजस्थान में सत्संग किस तरह से शुरु हुआ और कैसे उसका विकास वहां से प्रारम्भ होकर मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि अन्य प्रान्तों में हुआ इसको जानने का अवसर मिला। मैं विशेष कर श्री श्रीधर जी पंवार, प्यारेलाल जी माथुर एवं नेत्रभान जी का आभारी हूं जिन्होंने मुझे यहां के बारे में काफी जानकारी दी। 

श्री गोपाल जी वियाणी ने स्वामी जी के प्रथम सीकर आगमन की चर्चा करते हुए यह बताया था कि मुझे इतना याद है कि सन् 1953 में पहली बार स्वामी जी महाराज भाई नरसिंह दास जी (आजमगढ़) के साथ आये थे। मेरी माताजी बहुत धार्मिक विचारों की थीं और साधु सन्तों का बहुत आवभगत करती थीं।  नरसिंह दास जी से वो कहा करती थीं कि कोई ऐसा सन्त महात्मा मिले जो भगवान को दिखा सके। नरसिंहदास जी मेरे मौसी के लड़के हैं। 

जब वो स्वामी जी को लेकर आये तो केवल मेरी माताजी ने ही स्वामी जी पर विश्वास किया और उन पर उनकी श्रद्धा हुई। हम सब लोगों  की कोई दिलचस्पी नहीं थी। मुझे केवल इतना याद है कि उन दिनों स्वामी जी सेकण्ड क्लास में यात्रा करते थे क्योंकि हम लोगों ने उनके लौटने के लिए सेकेण्ड क्लास का टिकट लिया था।

श्री गोपाल जी की माताजी श्रीमति गुलाबबाई सीकर की पहली सत्संगिन थी। गोपाल जी के पिताजी श्री फूलचन्द्र बियाणी जी ने अपने बातचीत के दौरान में बताया कि स्वामी जी पर गोपाल की मां का अटूट विश्वास था। बियाणी परिवार सीकर में प्रसिद्ध परिवार है। उसके बारे में बताते हुए गोपाल जी की धर्मपत्नि ने मुन्नी से बताया था कि मेरे दादा ससुर जी सीकर में धर्मराज के नाम से प्रसिद्ध थे। मेरा पूरा परिवार शुरु से ही पूजा पाठ में बहुत विश्वास करता था। 

जब मैं व्याह कर इस घर में आई तो आये दिन यहां पर पूजा पाठ कथा कीर्तन होते रहते थे मेरी सास जी बहुत धार्मिक भावना की थीं। उनके एक बच्चे की मृत्यु हो गई। जब भी कोई साधु सन्त दरवाजे पर आते तो हमारी सास जी उनसे यही पूछती थीं कि क्या भगवान कहीं मिल सकता है?  

नरसिंह काका जी ने जब स्वामी जी को सीकर लाने का पत्र सास जी को भेजा तो वो बड़ी खुश हुई। जब स्वामी जो को लेकर काका जी आये तो उन्हीं को स्वामी जी पर पूरी श्रद्धा हो गई और पूरा विश्वास हुआ। हम लोग तो पर्दे में रहती थीं। लेकिन हमारे घर के आदमी लोगों को भी कोई विश्वास न था।

हम लोग श्री फूलचन्द्र बियाणी जी के निवास स्थान पर ही ठहरे थे। स्वामी जी महाराज सन् 1953 से बराबर जब कभी सीकर जाते हैं वहीं ठहरते हैं। बियाणी जी का मकान बियाणियों की गली की पहली हवेली है। यह हवेली दो भागों में बनी हुई है। एक भाग फिलहाल खाली पड़ा था और दूसरे भाग में उनका परिवार रहता था। हवेली में रजवाड़ों के महल की झलक मिलती है। 

स्वामीजी महाराज जिस कमरे में ठहरते हैें वह कमरा बियाणी परिवार के पूजा पाठ के लिए बना था। स्वामी जी ने उस कमरे में मुझको बताया कि शुरु से ही इसी कमरे में ठहरता हूं। यहां बड़ी शान्ति रहती है। बाहर की कोई आवाज अन्दर नहीं आती है यह स्थान भजन के लिए बहुत अच्छा है।

श्रीधर जी पंवार ने अपने संस्मरण सुनाते हुए यह बताया कि श्री फूलचन्द्र जी बियाणी का सम्बन्ध राजघराने से था। महाराज कल्यााण सिंह जी सीकर द्वारा इनको सोना बख्शा हुआ था और इनके यहां सोना बरसता था। ये जागीरदार की हैसियत से रहते थे। इनके यहां स्त्रियां पैर में सोना पहन सकती थीं। पर्दा बहुत था। 

स्वामी जी ने फूलचन्द जी की पत्नि को अकेले नामदान दिया। वे साधना बहुत करती थीं। कई वर्ष के बाद प्यारे लाल जी व सेठजी ने नामदान लिया। स्वामी जी जयपुर आते जाते रहते थे. जयपुर हाल में कमरा नम्बर सात में अक्सर रुका करते थे। 1962 में जयपुर के रामलीला मैदान में सत्संग कार्यक्रम हुआ। सीकर के पांच सत्संगी जिसमें प्यारेलाल जी और ब्रह्मदत्त जी भी थे पधारे और उन्होंने सत्संग को सुना। 

स्वामी जीने एक तरफ पुरुषों की लाइन में तीन को बिठाया दूसरी तरफ स्त्रियों की लाइन में दो पुरुषों को बिठाया। स्वामी जी की इस व्यवस्था पर सब हंस पड़े थे क्योंकि पांचों आदमी पुरुष थे किन्तु आदेशानुसार उनमें से दो स्त्रियों की लाइन में बैठे। स्वामी जी ने कहा कि आगे एक वक्त ऐसा आयेगा कि यह रामलीला का विशाल मैदान सत्संग के लिए छोटा पड़ जायेगा। 

सत्संगियों को स्वामी जी की बातों पर उस दिन विश्वास नहीं हुआ लकड़ी के खोके पर चादर बिछाकर सत्संग मंच बनाय गया था जिस पर स्वामी जी बैठै थे। सायंकाल 7 बजे से 9 बजे तक सत्संग हुआ था। स्वामी जी की बातें आज लोग याद करते हैं। जयपुर रामलीला का विशाल मैदान आज छोटा पड़ गया है और इस वर्ष हम लोग मजबूर होकर होली के सत्संग का प्रबन्ध दूसरे स्थान पर कर रहे हैें जहां जगह बहुत अधिक हो।

जयगुरुदेव
 शेष क्रमशः अगली पोस्ट  no. 11 में...

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sabhar, yug mahapurush baba jaigurudev ji maharaj bhag 5

जयगुरुदेव नाम के प्रचारक परम सन्त बाबा जयगुरुदेव 

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