पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज से सम्बन्धित विशेष बातें..... सुनहरी यादें

🙏🙏 *Jai Guru Dev* 🙏🙏 
 
पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज से सम्बन्धित विशेष बातें..... 

1. ये पुरानों की सम्भाल करेंगे।

2. नयों को नामदान देंगे।

3. मेरी ये बातें याद रखोगे तो यहाँ भी सम्भाल होगी और वहाँ भी।

4. जो तुम भूल भटक जाते हो तो ये बतायेंगे समझायेंगे।

5. जो ये कहेंगे वही मैं कहूंगा।

6. मुझ बुड्ढ़े आदमी को क्यों परेशान करते हो, वो जो वहाँ बैठे हैं सब कुछ उनसे पूँछ लो मैंने पूरा अधिकार दे दिया है।

7. सारी सेवाएं जो भी मुझे देना चाहते हो इनके पास जमा कर दिया करो, समझ लो मुझे दे दिया।

8. नाम पूछना हो तो उनसे पूछ लिया करो जो मैं बताऊंगा,  वहीं वह भी बतायेंगे।

9 मुण्डन, जनेऊ, विवाह कोई भी संस्कार करवाना चाहते हो तो वह सब ठीक ठाक करा देंगे, शंका मत करना, नही नुकसान हो जायेगा।

10. मुकदमा, कचेहरी, लड़ाई झगड़ा झंझड या घर परिवार संगत का कोई विवाद हो , ये बता देंगे, मान लोगे तो उससे मुक्ति मिल जाएंगी।

11. साधना भजन में कोई दिक्कत आ रही हो तो इनसे पूछ सकते हो ये सब साफ साफ बता देंगे।

12. शरीर में कोई तकलीफ बीमारी परेशानी है तो इनसे दवा पूछ लो ठीक हो जायेगी।

13. यदि कोई नयी सम्पति जमीन प्लाट मकान दुकान लेना या करना हो तो बिना इनसे पूछे मत करना वरना नुकसान उठा लोगे।

14. यदि ये चीजें बेचना भी हो तो भी पूछ लेना, नहीं बाद में पछताओगे।

15. यहाँ आश्रम पे रह के कोई सेवा करनी हो तो भी बिना इनकी इजाजत के मनमानी ढंग से मत करना, जहाँ जो सेवा कहें , वही वहीं पूरी लगन निष्ठा से करना।

16. सेवा करने या रहने खाने सोने या मर्ज चोट आदि में कुछ पूछना हो तो इनसे ही पूछना, अन्य किसी से नहीं। 

17. सेवा बाद या बीच में घर जाओ तो भी बिना इनसे पूछे मनमाने दिन समय मत चल देना, रुकने को कहें तो अवश्य रुक जाना, हानि नहीं लाभ ही होगा, मनमानी ढंग से चल गये तो नुकसान होगा ही होगा।

18. झोली सेवा आश्रम की गुल्लक सेवा, संगत की सारी सेवाएं इनके ही पास जमा होगी।

19. आश्रम में जो भी निर्माण होगा या तोड़फोड़ मरम्मत होगी , इनकी ही देख रेख जानकारी में होगी।

20. आश्रम से जो भी सब्जी गन्ना आँवला घी दूध इत्यादि ब्रिकी होगा, सबका हिसाब -किताब इनको ईमानदारी से चेक करा के इन्ही के पास जमा करना होगा।

 21. आश्रम व  जिला प्रान्तों में जहाँ कही भी आश्रम हैं वहाँ के आय व्यय की सूचना स्तरो से होते हुये इन तक जरूर आनी चाहिये, मैं इनसे सब का हाल लेता रहता हूँ।

22 जिन्हें कार्यक्रम करवाना हो तो भी अपनी अपील अर्जी इन्ही के पास दे देना, मैं देख लूँगा पूछ लूँगा, ये खुद ही बता देते हैं।

23. कोई शरीर छोड़ने की हालत में परिवार के लिये दुःखदायी असहनीय परिस्थिति बन जाए तो भी इनको फोन से बता दो,  इनका फोन 24 घण्टे खुला रहता है।

24. राजनीति वैश्या है इसमें मत पड़ना यदि गाँव क्षेत्र के आपको ईमानदार समझ के जबरदस्ती समाज सेवा में चाह रहे हो तो, चुनाव में जाने से पहले इनसे पूछ लेना, नहीं मान सम्मान व परमार्थ चला जायेगा।

25. आश्रम के आस पास के व मथुरा के लोगाें से दूर रहना यदि जरूरत पड़ जाये तो इनसे एक बार अवश्य पूछ लेना।

26. जैसी टाट की टोपी ये पहनते वैसी लम्बी टोपी कोई भी टाटधारी या अन्य किसी कपड़े की मत पहनना, नहीं तुम्हारा नुकसान हो जायेगा।

27. राधेश्याम गर कोई तुमसे उमाकान्त की तरह की टोपी बनवाने की जिद करे तो साफ मना कर देना, न माने तो मेरे पास भेज देना।

28. श्मशान की मिट्टी जब मन्दिर के पीछे सत्संग स्थल में पाटी जा रही थी तो भयंकर विशैले सर्प निकलते थे लोगों ने स्वामी जी से कहा तो स्वामी जी ने कहा," उमाकान्त तिवारी से कह दो पकड़ कर कही दूर जंगल मे छोड़ आवे, कोई मारेगा नहीं,  एक तो उनका घर उजाड़ रहे दूसरे क्या जान भी ले लोगे ?" 

लोगो की हिम्मत पू. महाराज जी से कहने की नहीं पड़ रही थी, फिर भी हिम्मत बाँध कहा । ये चट पट कंधे पे गमछा डाल चल दिये, वहाँ पहुँच आवाज लगाई," जल्दी जल्दी आ जाओ दूसरे घर को चलो तुम्हे कोई नहीं मारेगा, नहीं मजबूरी में सेवादार मार डालेंगे।"

इतना सुनते ही सारे सर्प निकल आते और इनके बिछाये गमछे पे बैठ जाते, ये गमछे के चारों कोनों को मिला पोटली कंधे पे लटका सब्जी की तरह थामे चले जाते, ये नज़ारे कई कई बार लोगों ने देखे।

29. जब ये सोते हैं तो मैं जागता हूँ और जब मैं जागता हूँ तो ये सोते हैं।

30. मैं उमाकान्त तिवारी को भेज रहा है समझना मैं ही आ गया हूं, शंका मत करना, ये मेरी ही सारी बाते बतायेंगे अपनी कोई नहीं, इनका कहना मानता, इनके दिय गये दिशानिर्देश को संगत को बता पालन करना करवाना।

31. जब सागर में स्वामी जी की तबीयत खराब हुई तो महामंत्री RU Singh से कहा," उमाकान्त से कह दो, सत्संग सुना दे, मैं नामदान दे दूंगा, नामदान भी चाहे तो दे सकते हैं।"
 RU Singh ने जब कहा तो पू. महाराज जी ने कहा," स्वामी जी के रहते मैं कहाँ सत्संग सुनाऊँगा, नामदान तो कदापि ही नहीं।"
 RU Singh जब स्वामी जी से कहा," सत्संग तो सुना सकते हैं "
 
जब यह बात पू. महाराज जी को RU Singh ने बतायी तो पू. महाराज जी ने कहा ,"स्वामी मंच में हाजिर रहेंगे तो नहीं।"

स्वामी जी ने सहमति दे दी, जब राम कृष्ण यादव, दद्दू व उनकी मण्डली को बात पता चली तो सब स्वामी जी के पास जाकर कहन लगे, "स्वामी जी आपकी तबियत ठीक नही कर्मो का बोझा और आयेगा सरकार काफिला कैंसिल कर दें"

और काफिला कैंसिल हो गया अर्थात संगत को वहीं रोककर स्वामी जी आश्रम लौट आये, हालांकि काफिला पुन: पूरा हुया"

32. मथुरा की कड़ाके की ठण्डी में आदेशानुसार पू. महाराज जी जब 5 बजे छोटे मंच पर साधना कराने आते तो ऐसे ही बिना चादर ओढे चल देते या साधना बाद आश्रम में इधर उधर कहीं भी जाते तो चादर नहीं ओढ़ते वहीं बडे़ छेददार वाले टाट की बनियान कुर्ता व सदरी और नीचे पट्टीनुमा लंगोटी व पायजामा और कुछ नहीं।  ऊपर सिर में सिर्फ टोपी कान खुले चेहरा गर्दन हाथ पैर खुले के खुले । ऐसे में स्वामी जी कहते," शाल ओढ़ लिया करो, नहीं ठण्ड लग जायेगी"

आदेश मान ओढ़ लेते, गर्मी लगती तो उतार देते, स्वामी देखते तो पुनः टोकते, तो पू. महाराज जी कहते,' सरकार ठण्डी नही गर्मी लगती है।" स्वामीजी मुस्कुरा देते। 

33. जब आश्रम में रहना शुरु किया तो लाइन में लगकर परमार्थी भण्डारे का ही भोजन किया, कभी नियम नहीं तोड़ा, पीछे वाले को आगे कर दिया पर कभी कितने भी भूखे रहे पर आगे वाले को पीछ नहीं किया।

34. परमार्थी भण्डारे के मुख्य भण्डारी ठाकुर जी ने बताया कि तिवारी जी हमेशा पानी मिले मट्ठे को ही सिर्फ एक गिलास लिये गर्मियो में अत्यधिक गर्मी पड़ने पर बहुत कहने पर कभी दो गिलास लिया हो तो नही एक गिलास के आगे नहीं, वहीं अन्य अधिकारी बिना पानी मिला मट्ठा ही माँगते थे व 5-6 गिलास खींच देते व साथ भी लोटे या डोल में ले जाते।

35.  ठाकुर जी ने आगे बताया," दो फुल्के, थोड़ी दाल, बहुत थोड़ा चावल व नाममात्र की सब्जी, आचार चटनी कभी लिये ही नहीं न अन्य कुछ भी।

36. जहाँ कही भी जगह मिली बैठ जाते, वैसे एक कोने में बैठना पसन्द करते थे

37. बैठने के लिये कभी नीचे बिछाने के लिए कुछ न माँगे न लेकर आये न बिछी चीज को इधर उधर किये।

38. थाली में कुछ बचने का सवाल ही नही, चाहे भोजन तीखा या अधिक नमक वाला ही अरुचिकर ही क्यों न बन गया हो।

40. सदैव थाली स्वयं हीं धोये किसी के कहने में भी नहीं धुलवायी।

41. प्रान्तीय कार्यालय में सेवा में कोई कमी नहीं आने दी।

42. जमीन पर ही अपना खुद का बिस्तर लगा सोये आश्रम से कुछ भी सुख सुविधा का सामान नहीं लिया न ही किसी को अपना बिस्तर बिछाने दिया।

43. अच्छे रईस खानदान व ब्राह्मण कुल में तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय से राजनीति व इतिहास में डबल MA डिग्रीधारी पू. महाराज जी एक चपरासी की भाति चौधरी के लिये पानी लाते,  झाडू मराते, कुर्सी मेज साफ करते व हर छोटी से छोटी सेवा करते।

44. जब तक माता पिता रहे घर आना जाना भी रहा, जब स्वामी जी की निजी सेवा में लगे तो आना जाना कम हो गया, पहले माँ फिर पिता गुजरे, बड़े भाई जो जज थे हिस्सा बँटाने लगे तो मना कर दिया, उन्होंने भाई का अंश हिस्सा लेने से मना किया तो अन्ततः उन्ही को बँटाई पर जमीन देने पे राजी हुये व खर्च निकाल कर सारा अनाज जिला के राशन के साथ मथुरा को भण्डारे को भेज देते, गन्ना की नकदी संस्था में जमा करा देते। सर्वस्व सतगुरु पर समर्पित कर अधिकतम समय सेवा साधना में देते।

45. जब स्वामी जी अपने द्वारा किये जाने वालो कामों को जब पू. महाराज जी को दिया तो लोग जो गुरु को कुछ देकर मिलते पूछते व मुण्डन नामकरण आदि की अलग से दक्षिणा देते थे वे पू. महाराज जी से बिना कुछ दिए ही पूछ लेते।

 जब स्वामी जी को यह बातें मालुम हुयी तो स्वामी जी ने कहा," वह साधू है उससे खाली हाथ न मिला करो कुछ दे दिया करो। 

धीरे धीरे जब लोगों को पू. महाराज जी की बातों का भरोसा होने लगा तो अब सभी प्रेमी इन्ही से सब पूछने कराने लगे। परन्तु कुछ स्वामी जी के मुंह लगे मनमुखी स्वामी जी के मना करने के बावजूद स्वामी जी को ही परेशान करते थे। पता नही उन्हें पू. महाराज जी से सीनियारटी की एलर्जी थी या जातिगत उच्चता या निम्नता की।

जब लगभग सभी प्रेमी पूछने लगे व प्रेमियों की संख्या व परेशानियां बढने लगी तो दक्षिणा भी बढ़ गई पू. महाराज जी सारा पैसा संस्था में जमा करा देते थे जबकि यह उनकी व्यक्तिगत पूँजी थी।

संतमत में सतगुरु को जो भी सेवाएं दी जाती वे महापुरुष अपने गुरु की संगत की पूँजी मानते व उसी के सुधार विकास में लगाते सिर्फ दर्शन वक्त मिलने वाली सेवा को अपनी मानते व स्वयं के शरीर पर खर्च करते जबकि स्वशरीर को भी गुरु को सर्वांग सौप चुके होते फिर भी संगत की सेवा से अपने शरीर का खर्च नहीं उठाते | 

स्वामी जी कहा करते थे," अभी भी में अपने भर को कमा लेता हूँ।
       तभी तो गुरु का नहीं साध के दर्शन के लिये कबीर साहब कहते.....
   कबिरा दर्शन साध का, दिन में कर कई एक बार।
         असूज़ा का मेघ ज्यों, बहुत करे उपकार॥

कहा- कई बार नहीं तो सुबह शाम, गर ये भी नहीं तो एक बार , रोज नहीं तो दूसरे या तीसरे या चौथे पाँचवे छठें नहीं तो सप्ताह में एक बार, हफ्ते में नहीं तो पक्ष में जैसे अमावस पूनम, वो भी नही तो एक माह में, नही तो दो तीन चार पांच, नही छमाई में कर ही लें। अन्ततः गर एक वर्ष में न किया तो दोष लगता व मोक्ष नही प्राप्त होता।

     परम पूज्य स्वामी जी महाराज 60 वर्षों तक सत्संग में यही समझाते रहे गुरु का संग मत माँगो मत चाहो, गुरु तो अंग संग हैं ही, उन तक पहुंचने के लिए साध का संग करो, तो तुम्हारी कच्चाई खोल कर कहेगा। गुरु मर्यादा में हैं खोलकर नहीं कहेंगे व इशारे में तुम समझ नहीं पाओगे।

         अफसोस,  स्वामी जी (रूप) के पीछे लोग भागते रहे या फोटो के पीछे भाग रहे या संसारी कामनाओं के पीछे व अधिकारियों की चापलूसी में कुछ पाने की आशा में। 

 साधक जो तुम्हें अन्तर में गुरु से मिलाने में तुम्हारी पूरी मदद करेगा उसके पास गये नहीं सिर्फ सुबह शाम रटते रहे ," साधसंग मोहिं देव नित परम गुरु दातार"

परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने करोड़ो की संगत में सिर्फ पू. महाराज जी को साधू कहा था।

46. हरिपाल के ट्‌यूबवेल पर स्वामी जी बैठे थे, कुछ बहने शिकायत कर रही थी कि स्वामी जी तिवारी जी के पैर छुआ तो बड़ी तेज डाँट देते हैं।

उसी वक्त पू. महाराज जी कहीं से वहीं को आ रहे थे व सुन लिये, स्वामी जी महाराज ने कहा," छुआ लिया करो, तुम पूरे हो चुके"  यह 1996 के आसपास की बात है तब इनकी आयु लगभग 46 वर्ष की थी, जबकि 22-23 वर्ष की अवस्था में संगत से जुड़े थे।

47. संगत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जिससे कभी उलझे हों, गाली गलौज तो बहुत दूर की बात है।

मैं आपको कहाँ तक बताऊँ, बहुत सारे प्रसंग संस्मरण हैं कुछ अपने बहुत सार प्रेमियों के बताये, जिनको सुन के आप की सारी बची शंकायें खत्म हो जायेगी कि सतगुरु व जानशीन में कोई फर्क भी होता है।

अपन रहते ही सतगुरु अपना जानशीन चुनते बनाते घोषित करते, भटकने वाले होशियार चंट चालाक धूर्त हमेशा भटके व भटक रहें। आगे भटकेंगे या नही सतगुरु जाने।

जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव 

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