*कबीर गुरु की भक्ति बिन... गुरु की भक्ति बिना तो कहीं ठौर नहीं*

जयगुरुदेव

06.10.2023
प्रेस नोट
करनाल (हरियाणा)

*सन्त बाबा उमाकान्त जी ने मांसाहारी और शाकाहारी में कुदरती अंतर बता कर समझाया मांस, मनुष्य का भोजन नहीं है*

*कबीर गुरु की भक्ति बिन... गुरु की भक्ति बिना तो कहीं ठौर नहीं*

प्रकृति के नियमों को पूरा जानने समझाने वाले, सरल शब्दों में उसे समझा कर मनुष्य को कुदरत के नियम न तोड़ने की शिक्षा देने वाले, आगामी कुदरती कहर से बचाने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 17 जून 2023 सायं करनाल (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

दुनिया की यह सारी चीजें प्रकृति, कुदरत (भगवान) जिसको कहते हो, उसने आदमी के फायदे के लिए बनाई है। नदी तालाब इसलिए बनाया कि बरसात में गड्ढा रहेगा तो पानी वहां इकट्ठा हो जाएगा और आदमी, जानवर, पशु-पक्षी सब पानी का इस्तेमाल करेंगे। लेकिन गंदा पानी कोई पीना पसंद करता है? गंदा पानी जानवर भी जल्दी नहीं पीते हैं, शुद्ध साफ पीते हैं। जब धूल, मक्खी, मच्छर उसमें गिरेंगे तो पानी गंदा होगा। शुद्धता उसमें कैसे आएगी? उसके लिए मछली को बना दिया। मछली का काम तालाब में पड़ी हुई गंदगी को साफ करना होता है। कोई मुर्दा, बकरा, मुर्गा या पेशाब-टट्टी का टुकड़ा डाल दो तो मछली खाती है। देखो कुदरत ने कैसा हिसाब बनाया है। जब मर जाती है तो मछली, मछली को नहीं खाती है।

 गिद्ध और कौवे का भोजन मछली है। इस समय तो लेट्रिन घर-घर में बन गई। पहले इतनी नहीं थी। जो इसमें (आई हुई भक्तों की भारी भीड़ में) सतर साल के बैठे हुए हो, आप लैट्रिन जानते भी नहीं रहे होंगे कि कैसी होती है। उस समय होती भी थी तो बड़े आदमी के यहां। दो ईंट और बीच में गड्ढा होता था। सफाई करने वाले आदमी सफाई किया करते थे। लोग जल्दी उठते, खेतों में जाते थे। स्वास्थ्य सही रखने के लिए सूरज निकलने से पहले उठना फायदेमंद होता है। सुबह अंधेरे में जाकर स्त्री-पुरुष बाहर लेट्रिन करके चले आते थे। अगर गांव भर का लेट्रिन इकट्ठा हो जाए तो सड़ेगा, हवा से बदबू फ़ैलेगी। तो कुदरत ने (व्यवस्था किया)। 

लंबे मुंह वाले सूकर होते हैं, सोलह-अट्ठारह बच्चे एक साथ देती है, वह सूकरी अपने पूरे परिवार को सूर्योदय से पहले ले जा कर साफ करके चली आती थी। तो यह उन्हीं के लिए बनाया है। जब ऐसे जानवर मर जाते थे तो गिद्ध, कौवा, पक्षी, कुत्ता आदि जो मांसाहारी है, उनको खाते थे। कुदरत ने पहचान बना दिया। सींग वाला जानवर को कोई देखता है तो होशियार हो जाता है कि दौड़ कर मारेगा। नुकीले दांतों वाले जानवरों से लोग दूर रहते हैं कि नोंच कर न खा ले। तो पहचान बना दिया है कि यह जानवर मांसाहारी है। मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के जानवरों की पहचान अलग-अलग है, और आदमी की पहचान अलग है। प्रकृति ने बनाया है।


*कुछ पहचान आपको बता दें*

कुत्ता, बिल्ली, शेर आदि मांसाहारी जानवरों की आंखें गोल, चमकीली होती है। अंधेरे में आपको दूर तक नहीं दिखेगा लेकिन इनको रात में दूर तक दिखाई पड़ता है। बड़ा जानवर, छोटे को खा जाता है जैसे शेर खा जाता है। आहार, आहार के लिए इनको बनाया गया है। आदमी की आंखें लम्बी होती है। इन जानवरों के बच्चों की आंखें तीन-चार दिन बाद खुलती है। इनका मुंह भी साफ करने में कुछ समय लगता है। इनकी माँ चाट-चाट के गंदगी को हटाती है तब मुंह साफ होता है उसके बाद बच्चे दूध पीना शुरू करते हैं। मनुष्य के बच्चे की आंख, मुंह पैदा होते ही खुल जाते हैं, तभी जोर से चिल्लाता, रोता है। जानवर और कीड़े जल्दी आंख नहीं खोल पाते हैं। 

बिच्छू, बच्चा देने के बाद दूसरा बच्चा नहीं देती है। एक बिच्छू एक बार में सौ बच्चे तक देती है। वह अपने बच्चों को अपने से अलग नहीं करना चाहती है, कहां जाएंगे, भटक जाएंगे, शिकार न बन जाएं तो संभाल कर पीठ पर ही लादे रखती है, इतना प्रेम होता है। पीठ पर सब बच्चों को बैठाए, लादे रहती है। जब बच्चों का मुंह खुलता है तो उनको (बिच्छू के बच्चों को) वही अपनी (माँ की पीठ) दिखाई पड़ती है तो बिच्छू को उसके बच्चे ही खा जाते हैं। कलयुग के प्रथम सन्त कबीर साहब ने बहुत समझाया, कहा- कबीर गुरु की भक्त बिन, राजा गधा होए, माटी लदे कुम्हार की घास न डाले कोए। कबीर गुरु की भक्त बिन, नारी कुकरी होए, गली गली भूकत फिरत, थूक न डाले कोई। कबीर गुरु की भक्त बिन, बेटी बिच्छू होए, जन्म देत ही अपना जीवन खोए। 


*शाकाहारी और मांसाहारी जीवों में अंतर*

मांसाहारी जानवरों का दांत एक बार जमता है और जीवन भर रहता है। मनुष्य के बच्चे का दांत एक बार जमता, निकलता है, फिर बाहर हो जाता है फिर दूसरा मुंह में जमा होता है। चाहे घोड़ा, गधा कोई भी शाकाहारी जानवर हो, (सामने) मांस डाल दो, सूँघ करके छोड़ देते हैं। आदमी भले ही कुछ न सूंघे, सब खाता दबाता चला जाए, लेकिन वह छोड़ देते हैं। शाकाहारी के, आदमी के भी दांत चपटे होते हैं। मांसाहारियों के दांत नुकीले होते हैं। बाहर से पहचान के लिए कुदरत ने बाहर निकले दो दांत बना दिए। जिनके दांत बाहर से निकले हो समझ लो खतरनाक है। यह कहीं नोच लेंगे आपको। यह मांसाहारी होते हैं। इसलिए इनसे खतरा है, दूर रहो। उनके दांत नुकीले होते हैं। उनमें जबड़ा, जिसमें से दांत निकलता है, वो नहीं होता है। 

इसलिए आदमी जिसके जबड़ा होता है, वो मुंह (दाएं-बाएं) घुमा करके खा लेता है। आसमान को मांसाहारी (ऐसे मुंह उपर उठा कर) नहीं देख सकते हैं। बैठे-बैठे आदमी पीछे मुंह करके गर्दन घुमा करके देख सकता है। लेकिन यह नहीं देख सकते हैं। आदमी मुंह बंद करके खा सकता है। मांसाहारी जानवर मुंह बंद करके खा नहीं सकते हैं क्योंकि इनका मुंह ऊपर-नीचे ही होता है। यह तो नोचे, चप-चप खोदे, खाए और निगल गए। पानी कम पीते हैं।

 लावारिस जैसे तो पानी कहां मिलता है? बहुत दूर जानवर निकल गए तो नदी कहां मिलेगी? वहां जंगल में नहीं है तो ये कैसे जीते हैं? जैसे कुत्ते को गर्मी के महीने में पानी नहीं मिलता है तो जीभ बाहर निकालता-अंदर करता है। हवा में मौजूद नमी से पानी ले लेते हैं। उसमें सारे तत्व समाए हुए हैं तो हर तत्व में हर तत्व समाए हुए हैं। तत्व से यह तत्व बनते हैं, तत्व में यह मिल जाते हैं। आदमी को पानी की ज्यादा जरूरत पड़ती है। मनुष्य को पसीना ज्यादा आता है। उनको पसीना नहीं आता है। मांसाहारी के बच्चे पेट में जल्दी बनकर पैदा हो जाते हैं। मनुष्य के बच्चे 9 महीने मां के पेट में बनकर के बाहर निकलते हैं। तो यह सब पहचान है। तो जीवों पर दया करो, शाकाहारी बनो और बनाओ।


इस समय के महापुरुष बाबा उमाकान्त जी महाराज 

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