*यदि गऊ, जीवों की हत्या रोकने का कानून बन जाए तो यह अभी बंद हो सकता है*

जयगुरुदेव

25.10.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)

*अपना कर्त्तव्य को समझो, घर के बूढों-बुजुर्गों की खूब सेवा सम्मान करके उनका दिल जीत लो*

*यदि गउ, जीवों की हत्या रोकने का कानून बन जाए तो यह अभी बंद हो सकता है*

समाज के सभी वर्गों की चिंता करने वाले, उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए व्यवहारिक समाधान बताने वाले, देश के महान समाज सुधारक, सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 2 अक्टूबर 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

अक्सर देखा गया है घरों में छोटी-छोटी बातों में कुछ-कुछ हो जाता है। घर के बुजुर्ग उसको संभाल सकते हैं लेकिन ध्यान नहीं देते हैं। ध्यान देने की जरूरत है। 1 अक्टूबर को पूरे विश्व में वृद्ध दिवस मनाया। वृद्ध यानी बुड्ढा। कहीं डोकरा कहते हैं। सरकार सीनियर सिटीजन कहती है। 60 साल से ऊपर की उम्र होने पर सरकार उनको बुड्ढा मान लेती है कि इनका शरीर, दिल, दिमाग कमजोर हो गया है। 

अब इनको नौकरी से निकाल दिया जाए। सम्मान के साथ इनको विदा कर दिया जाए। दफ्तर के लोग माला पहनाते, मिठाई खिलाते हैं और आदर-सम्मान के साथ हाथ जोड़कर के दफ्तर से उनको विदा कर देते हैं। कहते हैं, मिलने-जुलने के लिए तो आना लेकिन कुर्सी पर बैठकर आप अब काम मत करना। सरकार ने पेंशन की व्यवस्था तो बनाई है। 

थोड़ा सरकार देती है, थोड़ा पेंशन तनख्वाह में से कटता है। रिटायर होने पर पैसा तो मिलता है लेकिन बुड्ढों की, रिटायर्ड, सीनियर सिटीजन लोगों की खाने-पीने, रहने की व्यवस्था ठीक से नहीं हो पाती है। स्वार्थ के समय में, स्वार्थ की दुनिया में जब पैसा घर में कम आने लगता है तो लोगों का भी मन खराब हो जाता है क्योंकि पैसा कमाने का ही लोगों का निशाना बन गया। 

पैसा आना चाहिए, कैसे भी आये, आना चाहिए। बहुत से लोग तो नीयत खराब कर लेते हैं। पैसे के लिए अपने ईमान को भी बेच देते हैं। कितनी कीमती चीज है, जबान, ईमान ही तो सब कुछ है। लेकिन उसको भी पैसे के लिए बेच देते हैं। तो घर में जब पैसा आना कम हो जाता है, केवल पेंशन आती है तब टेंशन हो जाता है। केवल पेंशन से ही लोगों का टेंशन बढ़ जाता है। सेवा में, देखरेख में कमी आने लगती है। लोग अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं। तो बुड्ढा भी जो पहले पूरी तनख्वाह दे देता था, वो अब पेंशन देने में कंजूसी करने लगता है। बस खाने-पीने, सेवा में कमी आ जाती है। 

*अपना कर्त्तव्य समझो, घर के बड़े-बूढों की खूब सेवा सम्मान करो*

अगर लोग अपने कर्तव्य को समझें कि बुजुर्गों की, माता-पिता की सेवा करनी है, घर में बूढ़े-बुजुर्गों का सम्मान करना है क्योंकि हमको भी एक दिन बुड्ढा होना है, यह बात अगर याद रहे कि यह हमारा कर्तव्य है, हमको भी एक दिन इसी स्टेज पर आना पड़ेगा, तो यह बात अभी न हो। 

माता-पिता से कोई उद्धार नहीं हो सकता है। बच्चों, बहुओं को कभी नहीं सोचना चाहिए कि हम इनकी सेवा न करें। सेवा खूब करो और सेवा से दिल को जीत लो। फिर वह यह सोच लेगा कि हमको रूपए-पैसे इकट्ठा करने की जरूरत नहीं है। 

इसलिए तो वह इकट्ठा करता है कि यह रोटी पानी जो देते हैं यदि इसे बंद कर दें तो हम कहीं होटल में चले जाएंगे, रहने लगेंगे, किसी को भी पैसा देंगे तो रोटी बना देगा, सेवा कर देगा इसलिए बचाते हैं। और यदि सेवा से दिल जीत लिया फिर तो आपके लिए अपना खजाना खोल देंगे। सरकारें व्यवस्था तो करती है लेकिन दुसरे देशों जैसी व्यवस्था भारत देश की सरकारें नहीं कर पाती है। 

अमेरिका में तो सरकार की तरफ से वृद्धावस्था पेंशन मिलता है। इंडिया की बात तो छोड़ो, दफ्तर से (रुपया भेजा गया) चला, कहां कितना पहुंचा और किसको मिला? लेकिन वहां तो मिलता है। वहां पर ऐसी व्यवस्था है कि सरकार की तरफ से गाड़ियां उनके यहाँ जाती है और उनको लेकर के आती है। वहां उनके नाश्ते-खाने की सारी व्यवस्था होती है। उसकी एजेंसीयां होती है। अभी हमारा एक सतसंग का कार्यक्रम उन्हीं के बीच में हुआ। अब यह जरूर है कि खर्चा वहां बढ़ता है, उसमें खर्चा लगता है। 

उस तरह की व्यवस्था यहाँ न भी हो पावे तो बुजुर्गों के लिए कुछ व्यवस्था करने के लिए सोचने की जरूरत है। सरकार भी सोचे, संस्थाएं भी सोचे, हम भी सोचेंगे। विश्व वृद्ध दिवस के अवसर पर, गांधी जयंती के अवसर पर प्रेमियों आपको भी सोचना है कि हम इनके लिए क्या कर सकते हैं। 

हम किस तरह इनकी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। हम किस तरह से इनके रोटी पानी दवाई की व्यवस्था कर सकते हैं। किस तरह से इनके दिमाग में जो अभाव भरा हुआ है, दुनिया से जो उब रहे हैं और जल्दी शरीर छोड़ने की, दुनिया से जाने के लिए कोशिश कर रहे हैं, हम इसको कैसे दूर कर सकते हैं। अभी तक तो बहुत से लोगों ने पेट के लिए, बाल-बच्चों और शरीर के लिए सब कुछ किया। 

अब बुढ़ापे उसी तरह से महसूस कर रहे हैं जैसे जुआरी, जुआ खेलने के लिए उत्साह से जाता है वैसे ही नौकरी करने के लिए गए और नौकरी में जीत कर के आए। पेंशन फंड भी मिल रहा है और पैसा, नाम, सम्मान भी हो गया। लेकिन जैसे जुआरी सब कुछ हार कर के चला आता है ऐसे ही बुढ़ापे में हार महसूस कर रहे हैं कि मैं तो कुछ कर नहीं पाया, शरीर से भगवान का नाम भी नहीं ले पा रहा, कोई पूजा-पाठ साधना भी नहीं कर पा रहा हूं। 

तो यह जो अभाव भरा हुआ है लोगों के उस अभाव को भी प्रेमीयों दूर करो। उनका सहारा आप जितना बन सकते हो, बनो। और विशेष रूप से जो नौजवान लोग हैं, नौजवानों को इसमें लगने की जरूरत है। जो सतसंगी आप पढ़े लिखे लोग, नौकरी व्यापार में रहे, अब बुड्ढे हो गए, व्यापार को बच्चों ने संभाल लिया, उनको अब आपकी जरूरत नहीं रह गई, नौकरी से आप रिटायर हो गए हो तो आप अन्य बुजुर्गों के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए भी सोचो। आपने अभी तक बच्चों के लिए सोचा, दुकान और कल कारखाने खुलवाया, अपने बच्चों को पढ़ाया, ट्रेनिंग करवाया, कंपटीशन में बैठाया, नौकरी दिलाया, अब उनका भविष्य आपकी तरह से न हो तो और जब बच्चे बुड्ढे हों तो उनको सुख-सुविधा, घर में सम्मान मिले तो आप उसके लिए कुछ सोचो। अपने ज्ञान, अनुभव योग्यता को बाँटते रहो।

*यदि कानून बन जाए तो...*

महाराज जी ने 15 अक्टूबर 2022 प्रातः पूर्णिया (बिहार) में बताया कि यदि कानून बन जाए कि गौ हत्या नहीं होगी, किसी भी जानवर की हत्या कोई नहीं करेगा तब तो यह अभी बंद हो सकता है। लेकिन आपको यह (करने की) पावर नहीं है। लेकिन अगर मांस खाना लोग बंद कर दें तो कोई हत्या होगी? कोई जानवर काटा जाएगा? कोई मुर्गा, भैसा, बकरा काटा जाएगा? नहीं काटा जाएगा।

 इसलिए यह अभियान तो आप चलाई ही सकते हो। नहीं कुछ है तो आपके घर में ही कोई मांसाहारी हो, उसी को समझा कर सही कर लो। जाति-बिरादरी में, पड़ोसी, मिलने-जुलने वाला है, उसी को सही करो तो आपका शरीर अच्छे काम में लगेगा तो। मनुष्य ही परोपकार, दूसरों की मदद, दूसरों के लिए कुछ कर सकता है बाकी जानवर तो आप-आप ही चरें, वह तो अपने लिए ही करते हैं। तो यह एक परोपकार का काम भी करो कि आप लोगों को शाकाहारी, नशा मुक्त बनाओ।




 जयगुरुदेव नाम के प्रचारक बाबा उमाकान्त जी महाराज


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