होली महोत्सव 2023 का सुहावना संदेश (8.)

✩ जयगुरुदेव ✩ 

✶ शंका-समाधान ✶

प्रश्न- है सतगुरु! फागुन से क्या आशय है ? संतों की होली कैसे और कब मनाई जाती है ?

फागुन से आशय मनुष्य शरीर से है। होली का तात्पर्य है "होनी थी सो होली'। अब आगे चैत आ रहा है। यानी चेत जाओ। जब जीव संतों के पास पहुंचता है और वे उसे नामदान की बख्शीश देते हैं । उसी समय उसके पिछले कर्मों की जिम्मेदारी लेते हुए कहते हैं कि अब तक किया सो किया, अब आगे गलत काम मत करना यानी हो-ली सो होली ।


✵ गुरू आन खेलाई घट में होली 

होली का मतलब आंतरिक आनंद से है । संसारी लोग बाहरी तीज त्योहार मनाकर क्षणिक इंद्रिय सुख प्राप्त कर लेते हैं। आत्मा का स्थाई सुख और आनंद देने वाला त्योहार मनाना तो केवल सन्त सतगुरु जानते हैं और जो उनके मार्ग पर चलते हैं, वही असली होली मना सकते हैं। दुनिया का रंग तो नकली है ये तो कुछ समय के बाद उतर जाता है । लेकिन भक्ति का रंग जो हमारे भीतर छुपा हुआ है वही असली रंग है। वह रंग एक बार चढ़ जाता है तो फिर कभी नहीं उतरता है। उस रंग में स्थाई खुशबू है। अंतर की होली संतों ने स्वयं खेली और लोगों को खेलाई ।


फागुन मास रंगीला आया, धूम धाम जग में फैलाया।
 यह नरदेही फागुन मास, सुरत सखी आई करन बिलास ।

जब तक नर देही रहती है यानी जन्म लेने से लेकर मौत होने तक फागुन का महीना रहता है, जिसमें हमने बाहर के झांझ-मंजीरे, मन और इंद्रियों से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, तथा विकारों की होली खेल कर आत्मा गंदी कर ली।

परिणाम यह हुआ कि इस मनुष्य शरीर में दोनों आँखों के पीछे बैठी अचेत आत्मा मालिक की तरफ से सो गई और इंद्रियों की तरफ से जाग गई। चौरासी लाख योनियों से निकालकर आत्मा की होली खेल कर मालिक से जुड़ने के लिए यह नर तन मिला था। 

आत्मा की होली का हमें पता ही नहीं है । यह सृष्टि भूल भुलैया की तरह से है। यहाँ हर तरफ पीड़ा, रोग, शोक, तकलीफों एवं भोगों की होली हो रही है। संसार वालों ने तो त्योहार खाने-पीने का बना लिया और आत्मा को जगाने का कार्य नहीं किया। 

शरीर व्याधियों की खान है इस पर अहंकार नहीं करना चाहिए। आत्मा को पहले भी फागुन मास मिला होगा और उस समय भी यह मैली हुई। अब यदि हम होश में आ जाएं, तरंगों को न उठने दें, भोगों में न फंसे तो सन्त हमारी आत्मा को जगा दें। इस काल माया के देश में दुख ही दुख है जबकि दयाल निर्मल देश, जहां से आत्मा उतारी गई है, वहाँ कोई दुख है ही नहीं।


✵ देखो गुरु दरबार मची होली

देखो गुरू दरबार मची होली, सखी देखो ।। 
उड़े अबीर गुलाल चहुं दिशि, ले लाल फुहार पवाल डोली, सखी देखो ।। 
लाल आकाश लाल रवि मण्डल, कण-कण भूमि लाल धूलि, सखी देखो ।। 
भए गिरि लाल लाल कानन में, लाल लता तीन पर फूली, सखी देखो ।। 
बजत मृदंग मेघ जनु गर्जहिं, होत मलार कहीं होली, सखी देखो ।। 
हंस-हंसनी नाचे गावें, रंग भूमि में राम धनुष तोड़ी, सखी देखो ।। 
सीता सुरत सुमन की माला, ले श्री राम गले मेली, सखी देखो ।। 
सोई बड़ भागी जो यह होली, जयगुरुदेव कृपा खेली, सखी देखो ।।



✵ संत आग्रह व चेतावनी मानव जाति से

समय जो मोड़ ले रहा है, उसके संकेत अच्छे नहीं हैं। ऐसे समय में संतों के सन्देश एवं उनकी वाणी आशा की किरण बनकर उभरी हुई मानवता का मार्गदर्शन करती है। ऐसे सन्देश दूसरे देशों में भी इन्टरनेट के माध्यम से भेजे जा रहे हैं ताकि वहाँ के निवासियों को भी दिशा मिल जाय, • उनका विवेक जाग जाये। 

मानव धर्म क्या है, मानव कर्म क्या है, जीते जी भगवान कैसे मिलता है, हम कहाँ से आए? मरने के बाद कहाँ जायेंगे ? कौन हमारे कर्मों का इन्साफ करेगा? आदि प्रश्न ऐसे हैं जिसे समझना है और उनका हल ढूँढना है। यही समय की मांग है। वक्त के संत मानव जाति की भलाई के लिए सदैव पहले से ही चेता देते हैं। कहा है-

ज्यों केले के पात के पात-पात में पात.
त्यों संतन की बात के बात-बात में बाल।

परम संत बाबा उमाकान्त जी महाराज के सन्देशों को सुनकर व पड़कर आपको शान्ति मिलेगी, उनकी वाणी धैर्य बँधायेगी । आप समझ लेंगे, मान लेंगे तो आप का भला होगा । आपसे अनुरोध ही किया जा सकता है।

बाबा जी तो बचा रहे हैं. शाकाहारी बना रहे है। 
अभी समय है बचना चाहो, फिर मत कहना हमें बचाओ। 
बाबा जी की अर्जी है, आगे आपकी मर्जी है।

होली के पावन पर्व पर आप सब ये संकल्प लीजिए कि हम सदैव शाकाहारी, सदाचारी, नशामुक्त रहेंगे और अपने इष्ट मित्रों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे तथा पूरे गुरु से नाम लेकर अपनी सुरत को निर्मल कराकर उस पर उनकी भक्ति का रंग चढ़वा लेंगे। जिससे यह जीवात्मा जो युग-युगों से चौरासी के चक्कर में भटक रही है, वह अपने निज पर यानी सतलोक में पहुंच जाए और इस आवागमन से मुक्त हो जाए। यही मनुष्य शरीर का असली उद्देश्य है।

✩ जयगुरुदेव ✩ 
साभार, (पुस्तक) होली  2023
Holi-book-2023


Apnaye huye jivo ki samhal karne wale baba umakantji maharaj

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