जयगुरुदेव
07.08.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
*भारत का स्वर्णिम इतिहास- जब अरब के एक हकीम ने धन्वंतरी वैध की परीक्षा ली*
*बाबा उमाकान्त जी ने नरकों की पीड़ा का इशारों में वर्णन कर चेताया, आत्म कल्याण बहुत जरुरी है*
भारत को विश्व गुरु बनाने में, वो स्वर्णिम युग वापस लाने में स्वयं लगने और सबको लगने की प्रेरणा देने वाले, देश सेवा का वास्तविक अर्थ समझा कर जन चेतना जगाने वाले, अपनी दिव्य द्रष्टि से नरकों का आँखों देखा वर्णन कर जीवों को अपने आत्म कल्याण के प्रति जगाने चेताने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 12 नवंबर 2020 दोपहर उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
धनवंतरी का बड़ा नाम था। अरब से एक हकीम ने परीक्षा लेने के लिए एक आदमी को भेजा। तो आदमी चला। चिट्ठी लिख करके भेजा और कहा इमली के पेड़ के नीचे रात को सोना, इमली की लकड़ी से भोजन बनाना और इमली की दातुन करना। 6 महीने लगा वहां से यहां (भारत) पहुंचने में। तो उसको चर्म रोग (कोढ़) हो गया, उंगलियां सुन्न, टेढ़ी होने लग गई, शरीर में घाव भी बन गया।
जब यहां पहुंचा, चिट्ठी इनको दिया, इन्होंने पढ़ा। समझ गए। तो उन्होंने उससे पूछा कि क्या हकीम जी ने तुमको इसी हालत में भेजा या जब चले थे तब तुम ठीक थे। बोला तब ठीक था। पूछा तुम रात को कहां रुके थे? उस समय होटल तो होते नहीं थे। पूछे क्या पकाया खाया? बोला इमली के पेड़ के नीचे। लकड़ी किसकी जलाई? इमली की। दातुन किसका किया? इमली का किया। तो उन्होंने कहा अच्छा, इस चिट्ठी का जवाब मैं तुमको दे देता हूं। लेकर जाओ और हकीम साहब को दे देना। लेकिन इधर से जब तुम जाओ तो नीम के पेड़ के नीचे सोना, नीम की दातुन करना, नीम की पत्ती को सुबह उठकर करके खा लेना और नीम की लकड़ी से भोजन पका करके खाना।
तो वहां तक पहुंचते-पहुंचते बिल्कुल ठीक हो गया। पहले की तरह का हो गया। तो हकीम साहब ने पूछा जब तुम पहुंचे तब शरीर में कोई फर्क पड़ा था? तब उसने दिखाया कि मेरी ये उंगलियां बिल्कुल टेढ़ी हो गई थी, देखो यह चकता पड़ा हुआ है, यहां पर घाव हो गया था। जाते समय आपके बताये अनुसार किया था लेकिन उधर से आते समय उनके बताये अनुसार करता रहा तो मैं बिल्कुल ठीक हूं। पूछा- क्या बताया तुमको? उसने नीम के बारे में बताया तो उनको विश्वास हो गया कि धन्वन्तरी मेरे से भी ज्यादा जानकार हैं।
हकीम ने सोचा था कि जाएगा, उसका खून खराब हो जाएगा, लौटेगा तो फिर मैं अपने तरीके से इलाज करूंगा। तो आज धनतेरस के दिन उनका भी जन्मदिन होता है। इसके बाद महाराज जी ने अपने सतसंग में दीपवाली का असली अर्थ बताया।
*नरको की सजा*
महाराज जी ने 29 नवंबर 2020 दोपहर उज्जैन आश्रम में बताया कि छोटी मोटी गलतियां होती है, मनुष्य शरीर में रहते हुए यहां माफ नहीं हो पाती है तो उनकी सजा अलग है। वह सजा नरकों में भोगनी पड़ती है। जैसे कीचड़ ही कीचड़ भरा हो और उसमें डाल देते हैं।
वहां इतनी तकलीफ नहीं होती है लेकिन पेशाब के नर्क में डाल दो तो बदबू आएगी, जलन पैदा करेगा। लैट्रिन के नर्क में डाल दो तो और बदबू आएगी और गंदगी रहेगी। ज्यादा दिन लैट्रिन में पड़े रहोगे तो बदन में सड़न, बदबू पैदा हो जाएगी, शरीर जहरीला हो जाता है। मवाद के नर्क में ऐसे डाल देते हैं।
तो उसमें ज्यादा तकलीफ होती है। अब लोहे के नर्क बने हैं, लोहे की ही दीवाल है। जैसे पूड़ी सब्जी बनाने के बड़े-बड़े कढ़ाह होते हैं ऐसे ही अत्यंत गर्म लोहे के बड़े-बड़े तालाब जैसे बने हुए हैं, जलन पैदा करते हैं उसमें डाल देते हैं। उसमें ज्यादा तकलीफ होती है। तो ज्यादा जो गलती करते हैं, उसमें डाला जाता है। ऐसे भी नरक है जिसमें ज्वालायें निकलती रहती है, उसमें डाल दिए जाते हैं। उसमें जलते, भुनते, तड़पते हैं।
लोहे की सलाखें सुई जैसे नुकीले होते हैं, उस पर डाल देते हैं। चुभ जाता है, उसमें तकलीफ होती है। ऐसे भी हैं जो लोहे के सलाखें सुई जैसे, वो जलते रहते हैं। जैसे खाली इंजेक्शन लगा दो तो दर्द करेगा। लेकिन अगर उसी इंजेक्शन में, सुई में अगर जहर भरा हुआ है तो शरीर जहरीला हो जाता है, आदमी मर जाता है। इसी तरह से, जैसे यहां तकलीफ का विधान है, उसी तरह से वहां भी तकलीफ का विधान है।
लाह/लाख की चूड़ियां देवीयां पहनती थी। लाख को छोटा-बड़ा कर लेते थे। बड़ी चूड़ी को थोड़ा काट कर थोड़ा गर्म करके मिला देते थे तो छोटी चूड़ी बन जाती थी। लेकिन लाख अगर कहीं लग जाए तो खाल उधड़ जाती है। लाख के ही नर्क है। एक दो नहीं, बहुत तरीके के हैं। कर्मों की सजा वहां भोगनी पड़ जाती है। जिनको जानकारी नहीं है, कर्म होता क्या है, अच्छा-बुरा होता क्या है, वो तो बेचारे फंस जा रहे हैं।
कुछ ऐसे भी है जिनकी आदत खराब, बिगड़ गई तो जानते हुए भी, आदतवश कर्म खराब कर ले रहे हैं। इसलिए बताने-समझाने के लिए, नरकों में न जाए, आराम से शरीर छूट जाए, जब तक यहां रहे सुखी रहे, एक दिन यह जीवात्मा अपने मालिक के पास पहुंच जाए, उसके लिए वह मालिक दया करके सन्तों को भेजता है, समझो दुखी जीवों को देख करके वह (मालिक) खुद आता है।
*ये तो पक्का नेता बनेगा*
महाराज जी ने 4 मार्च 2019 प्रातः लखनऊ में बताया कि नेता किसको कहते हो? एक जमीदार बड़ा आदमी था। तो उसका लड़का पढ़-लिख करके आया। तो उसने सोचा, देखें यह किस विचारधारा का होगा। खेती, गृहस्ती, किसानी, व्यापार करेगा या अधिकारी कर्मचारी बनना चाहेगा या और कोई काम करेगा।
जमींदार बुद्धिमान था। सोचा ऐसे पूछेंगे तो नहीं बताएगा। तो उसने एक कमरे पर टेबल के ऊपर गीता पुस्तक रख दिया, पास में एक नौजवान औरत को बैठा दिया, एक शराब की बोतल, सस्ते का जमाना था तो 100 रूपये का नोट और कुछ मांस के टुकड़ों को तलवा करके रख दिया।
लड़के से कहा देखो यह तुम्हारे उपभोग की चीजें हैं। इनमें से जो तुमको पसंद हो, उसको तुम उपयोग कर सकते हो। सोचा कि हम इसी से अंदाजा लगा लेंगे। लड़का गया तो क्या किया? गीता को उठाया, मस्तक पर लगाया। बगल में पुस्तक को दबा लिया। फिर नोट को उठा कर जेब में रख लिया। फिर मांस खाया, शराब पिया और औरत का हाथ पकड़ कर चल दिया।
तब पिता ने कहा भाई यह तो पक्का नेता होगा। इसके अंदर सारे नेताओं के गुण हैं। जो नेता थे, जिन्होंने देश के लिए कुर्बानी दी, जो विदेशों में भी जाकर के नौजवानों के बीच में भाव पैदा किये तो सुभाष जैसा नेता तो खत्म हो गए। फिर महाराज जी ने सुभाष की जापान यात्रा के माध्यम से परोपकार करने के महत्व को समझाया।
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इस समय के महापुरुष बाबा उमाकान्त जी महाराज |
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